Post – 2018-01-07

मैं कल रात 10 बजे अस्पताल से निकला। अस्पताल में आदमी या तो बीमारियों के बारे में सोच सकता है, या मौत के बारे में या परलोक के बारे में । हमारा भौतिक परिवेश हमारे विचारों को कितना नियंत्रित करता है. भीड़ में बुद्धिमान व्यक्ति भी समूह की शक्ति और आवेश के दबाव में मूर्खों की तरह आचरण करता है या तिनके की तरह रौंद दिया जाता है। समझदारों की भीड़ भीड़ ही होती है।
जो भी हो, यह शान्ती गोपाल अस्पताल इतना अच्छा, इतना प्रोफेशनल है यह तो भर्ती हुए बिना जान ही नहीं सकता था। लोगों से शिकायत सुनने को मिलती है, निजी अस्पताल लूट रहे हैं। लाचारी में लुटने को तैयार हो कर भर्ती हुआ था, मित्रों के माध्यम से मैक्स और फोर्टिस और स्वयं मेट्रो और कैलाश का अनुभव था। पर जब बिल थमाया तो लगा मैने अस्पताल को लूट लिया।
वैसे इसके बाद भी अस्पताल पर जल्द डाका डालने का कोई इरादा नहीं।

Post – 2018-01-07

मैं कल रात 10 बजे अस्पताल से निकला। अस्पताल में आदमी या तो बीमारियों के बारे में सोच सकता है, या मौत के बारे में या परलोक के बारे में । हमारा भौतिक परिवेश हमारे विचारों को कितना नियंत्रित करता है. भीड़ में बुद्धिमान व्यक्ति भी समूह की शक्ति और आवेश के दबाव में मूर्खों की तरह आचरण करता है या तिनके की तरह रौंद दिया जाता है। समझदारों की भीड़ भीड़ ही होती है।
जो भी हो, यह शान्ती गोपाल अस्पताल इतना अच्छा, इतना प्रोफेशनल है यह तो भर्ती हुए बिना जान ही नहीं सकता था। लोगों से शिकायत सुनने को मिलती है, निजी अस्पताल लूट रहे हैं। लाचारी में लुटने को तैयार हो कर भर्ती हुआ था, मित्रों के माध्यम से मैक्स और फोर्टिस और स्वयं मेट्रो और कैलाश का अनुभव था। पर जब बिल थमाया तो लगा मैने अस्पताल को लूट लिया।
वैसे इसके बाद भी अस्पताल पर जल्द डाका डालने का कोई इरादा नहीं।

Post – 2018-01-04

जान देने की कोई शर्त न थी
फिर भी जब दे दिया तो रहने दे।।

Post – 2018-01-04

जान देने की कोई शर्त न थी
फिर भी जब दे दिया तो रहने दे।।

Post – 2018-01-04

जान देने की कोई शर्त न थी
फिर भी जब दे दिया तो रहने दे।।

Post – 2018-01-02

जाली भाषा, जाली भाषाविज्ञान, (8)

दूसरे प्रकार की शास्त्रजीविता अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से आई और पाश्चात्य ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिक श्रेष्ठता के आतंक में उतनी नहीं आई जितनी शोध और पड़ताल के क्षेत्रों को योजनाबद्ध में पश्चिमी विद्वानों द्वारा अपने कब्जे में ले कर पैदा की गई और भारतीयों को केवल सहायक की भूमिका में रख उनका उपयोग करने के कारण आई। अनुसंधान के बौद्धिक पक्ष से अधिक महत्वपूर्ण है उसका आर्थिक पक्ष। कोशपूर्वा समारंभा। यह नियम है, नियम से अलग घटित होने वाला चमत्कार होता है। साधनों के अभाव में, श्रम की सार्थकता के अभाव में कोई पहल संभव नहीं, और इसके अतिरिक्त किसी गृहस्थ को अपने घर के बारे में इतना ही जानना जरूरी होता है कि उसके घर में क्या है और क्या नहीं है। हमारी जरूरतें पूरी हों, हमारे लिए इतना ही काफी है, हम अपने घर के सामानों की फेहरिश्त नहीं बनाते, पर सबकी मोटी समझ रखते है, पर तस्कर को निश्चित पता होना चाहिए कि मेरे घर में क्या है जिसे वह उड़ा सकता है। हमारे समाज की जानकारी उनके लिए इसलिए जरूरी थी कि वे उसके कमजोर जोड़ो को समझ सकें कि इसे कहां कहां से अधिक कमजोर किया जा सकता है जिससे आवश्यकता होने पर उसे तोड़ा जा सके। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा सके, खनिज संपदा से मालामाल हुआ जा सके। इसी से जुड़ा इतहास का अध्ययन जिससे भारतीयों को सदा से सभी योग्यताओं से शून्य और पश्चिमी आक्रमणकारियों के कारण ऊर्जावान सिद्ध किया जा सके। अनुसंधान की उनकी जरूरतें हमारी अस्मिता और हितों के ही विपरीत नहीं थीं सभी क्षेत्रों में निचले स्तर पर भारवाही के रूप में या पड़ताल के कारिन्दों के रूप में हमारा ही उपयोग होना था पर निर्णायक स्थितियों में उन्हें ही रहना था। अंग्रेजी के माध्यम से ज्ञान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अपनी अग्रता की धाक का इस्तेमाल सचाई से अनमेल और हमारे हितों के प्रतिकूल अपने दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों को भी परीक्षित सत्य बनाकर हमारी चेतना में उतारने में सफल रहे। इसकी कुछ विस्तार से चर्चा तो कल तबीयत संभलने पर ही हो सकेगी।

Post – 2018-01-02

जाली भाषा, जाली भाषाविज्ञान, (8)

दूसरे प्रकार की शास्त्रजीविता अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से आई और पाश्चात्य ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिक श्रेष्ठता के आतंक में उतनी नहीं आई जितनी शोध और पड़ताल के क्षेत्रों को योजनाबद्ध में पश्चिमी विद्वानों द्वारा अपने कब्जे में ले कर पैदा की गई और भारतीयों को केवल सहायक की भूमिका में रख उनका उपयोग करने के कारण आई। अनुसंधान के बौद्धिक पक्ष से अधिक महत्वपूर्ण है उसका आर्थिक पक्ष। कोशपूर्वा समारंभा। यह नियम है, नियम से अलग घटित होने वाला चमत्कार होता है। साधनों के अभाव में, श्रम की सार्थकता के अभाव में कोई पहल संभव नहीं, और इसके अतिरिक्त किसी गृहस्थ को अपने घर के बारे में इतना ही जानना जरूरी होता है कि उसके घर में क्या है और क्या नहीं है। हमारी जरूरतें पूरी हों, हमारे लिए इतना ही काफी है, हम अपने घर के सामानों की फेहरिश्त नहीं बनाते, पर सबकी मोटी समझ रखते है, पर तस्कर को निश्चित पता होना चाहिए कि मेरे घर में क्या है जिसे वह उड़ा सकता है। हमारे समाज की जानकारी उनके लिए इसलिए जरूरी थी कि वे उसके कमजोर जोड़ो को समझ सकें कि इसे कहां कहां से अधिक कमजोर किया जा सकता है जिससे आवश्यकता होने पर उसे तोड़ा जा सके। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा सके, खनिज संपदा से मालामाल हुआ जा सके। इसी से जुड़ा इतहास का अध्ययन जिससे भारतीयों को सदा से सभी योग्यताओं से शून्य और पश्चिमी आक्रमणकारियों के कारण ऊर्जावान सिद्ध किया जा सके। अनुसंधान की उनकी जरूरतें हमारी अस्मिता और हितों के ही विपरीत नहीं थीं सभी क्षेत्रों में निचले स्तर पर भारवाही के रूप में या पड़ताल के कारिन्दों के रूप में हमारा ही उपयोग होना था पर निर्णायक स्थितियों में उन्हें ही रहना था। अंग्रेजी के माध्यम से ज्ञान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अपनी अग्रता की धाक का इस्तेमाल सचाई से अनमेल और हमारे हितों के प्रतिकूल अपने दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों को भी परीक्षित सत्य बनाकर हमारी चेतना में उतारने में सफल रहे। इसकी कुछ विस्तार से चर्चा तो कल तबीयत संभलने पर ही हो सकेगी।

Post – 2018-01-02

जाली भाषा, जाली भाषाविज्ञान, (8)

दूसरे प्रकार की शास्त्रजीविता अंग्रेजी शिक्षा के माध्यम से आई और पाश्चात्य ज्ञान, विज्ञान और प्रौद्योगिक श्रेष्ठता के आतंक में उतनी नहीं आई जितनी शोध और पड़ताल के क्षेत्रों को योजनाबद्ध में पश्चिमी विद्वानों द्वारा अपने कब्जे में ले कर पैदा की गई और भारतीयों को केवल सहायक की भूमिका में रख उनका उपयोग करने के कारण आई। अनुसंधान के बौद्धिक पक्ष से अधिक महत्वपूर्ण है उसका आर्थिक पक्ष। कोशपूर्वा समारंभा। यह नियम है, नियम से अलग घटित होने वाला चमत्कार होता है। साधनों के अभाव में, श्रम की सार्थकता के अभाव में कोई पहल संभव नहीं, और इसके अतिरिक्त किसी गृहस्थ को अपने घर के बारे में इतना ही जानना जरूरी होता है कि उसके घर में क्या है और क्या नहीं है। हमारी जरूरतें पूरी हों, हमारे लिए इतना ही काफी है, हम अपने घर के सामानों की फेहरिश्त नहीं बनाते, पर सबकी मोटी समझ रखते है, पर तस्कर को निश्चित पता होना चाहिए कि मेरे घर में क्या है जिसे वह उड़ा सकता है। हमारे समाज की जानकारी उनके लिए इसलिए जरूरी थी कि वे उसके कमजोर जोड़ो को समझ सकें कि इसे कहां कहां से अधिक कमजोर किया जा सकता है जिससे आवश्यकता होने पर उसे तोड़ा जा सके। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन किया जा सके, खनिज संपदा से मालामाल हुआ जा सके। इसी से जुड़ा इतहास का अध्ययन जिससे भारतीयों को सदा से सभी योग्यताओं से शून्य और पश्चिमी आक्रमणकारियों के कारण ऊर्जावान सिद्ध किया जा सके। अनुसंधान की उनकी जरूरतें हमारी अस्मिता और हितों के ही विपरीत नहीं थीं सभी क्षेत्रों में निचले स्तर पर भारवाही के रूप में या पड़ताल के कारिन्दों के रूप में हमारा ही उपयोग होना था पर निर्णायक स्थितियों में उन्हें ही रहना था। अंग्रेजी के माध्यम से ज्ञान, विज्ञान और तकनीक के क्षेत्र में अपनी अग्रता की धाक का इस्तेमाल सचाई से अनमेल और हमारे हितों के प्रतिकूल अपने दुराग्रहों और पूर्वाग्रहों को भी परीक्षित सत्य बनाकर हमारी चेतना में उतारने में सफल रहे। इसकी कुछ विस्तार से चर्चा तो कल तबीयत संभलने पर ही हो सकेगी।

Post – 2018-01-02

ठंढ पहले से कुछ अधिक है आज
दर्द कुछ और भी जियादा है।।

Post – 2018-01-02

ठंढ पहले से कुछ अधिक है आज
दर्द कुछ और भी जियादा है।।