#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (14)
एशियाटिक सोसायटी का लक्ष्य
भारत में जिस चरण पर कंपनी का प्रवेश हुआ उससे पहले भारत की दशा क्या थी, इसका चित्रण विल द्यूराँ ने निम्न शब्दों में किया है:
Nearly every kind of manufacture or product known to the civilized world – nearly every kind of creation of Man’s brain and hand, existing anywhere, and prized either for its utility or beauty – had long, long been produced in India. India was a far greater industrial and manufacturing nation than any in Europe or than any other in Asia. Her textile goods-the fine products of her looms, in cotton, wool, linen and silk-were famous over the civilized world; so were her exquisite jewelry and her precious stones cut in every lovely form; so were her pottery, porcelains, ceramics of every kind, quality, color and beautiful shape; so were her fine works in metal-iron, steel, silver and gold. She had great architecture-equal in beauty to any in the world. She had great engineering works. She had great merchants, great businessmen, great bankers and financiers. Not only was she the greatest ship-building nation, but she had great commerce and trade by land and sea which extended to all known civilized countries. Such was the India which the British found when they came. The case for India, 7
आरंभ में कंपनी भारत में खरीदे हुए माल को इंग्लैंड में पाँच गुनी कीमत पर बेचती थी। और फिर उसका इरादा बदला, क्यों न भारत पर ही कब्जा कर ले:
It was this wealth that the East India Company proposed to appropriate. Already in 1686 its Directors declared their intention to “establish ….a large, well-grounded, sure English -dominion in India for all time to come.” 8
जिस चरण पर विलियम जोंस का प्रवेश हुआ, उस समय तक बंगाल के उद्योग धंधों को नष्ट किया जा चुका था. जितने भाग पर कब्जा हो चुका था, उसमें लूटने के लिए अब मालगुजारी ही रह गई थी। जरूरत थी, यह पता लगाने की कि इसकी खनिज संपदा क्या है, वानस्पतिक संपदा क्या है, भारत के भीतर और भारत के बाहर किन-किन राज्यों को किस तरह कब्जे में किया जा सकता है।
उनका अध्ययन करना, उनकी कमजोरियों को समझना, जिस भाग पर कब्जा हो था उसकी अपनी कमजोरियों और शक्तियों को पहचानना, उसके कार्यक्रम का हिस्सा बन सकता था।
एशियाटिक सोसाइटी की स्थापना ब्रिटेन के इन्हीं उद्देश्यों की पूर्ति को ध्यान में रख कर, जरूरी अनुसंधान के लिए की गई, जिसका खाका जोंस ने अपने पहले व्याख्यान में खींचा था और सदस्यों काे इस दिशा में प्रोत्साहित करते हुए कहा था, …and you may not be displeased to follow occasionally the streams of Asiatic learning a little beyond its natural boundary और स्पष्ट किया था कि हमारा लक्ष्य साफ होना चाहिए, यही सोचकर उन्होंने ओरिएंटल, जिसका लोग अक्सर प्रयोग करते थे, की जगह एशियाटिक का चयन किया है।
यदि सौ साल पहले कंपनी का लक्ष्य भारत में एक बड़ा और स्थायी राज्य कायम करने का था, तो इस बीच की सफलताओं ने इसकी लालसा को उत्तेजित करके इस आकांक्षा को एशिया विजय तक पहुँचा दिया था और जोंस इस योजना के फलीभूत होने के सपने देख रहे थे। इन देशों को एक पर एक जीतते जाना कितना आसान था। कुछ समय बाद ही बर्मा और अफगानिस्तान का मोर्चा बिना किसी पूर्व योजना के नहीं खुला था।
भाषा, साहित्य, दर्शन और विधि-विधान का अध्ययन उनके दिमाग की बनावट को समझने और उसे नियंत्रित करने के लिए जरूरी था :If now it be asked, what are the intended objects of our inquiries within these spacious limits , we answer, MAN and NATURE; whatever is performed by the one, or produced by the other. Human knowledge has elegantly analysed according to the three great faculties of mind, memory, reason and imagination which we find constantly employed in arranging and retaining, comparing and distinguishing, combining and diversifying the ideas which we receive through our senses or acquire by reflection, hence the three main branches of learning are history, science and art.
नहीं, इतना ही पर्याप्त न था, उन देशों के लोग और विद्वान जो कुछ अपनी भौगोलिक, सामाजिक और धार्मिक सीमाओं में जानते हैं, उन्हें जानने और उनका इतना आधिकारिक ज्ञान रखने के लिए अपने मोर्चे स्वयं तय करने के लिए उकसाया जा रहा था, कि वे उन उन देशों, समाजों का जो कुछ अनोखा है, जो कुछ ग्राह्य हो उसे ग्रहण करके, उसमें अपना जोड़कर उनके ऊपर धाक जमाई जा सके और उनके विशेषज्ञों को भी अपने औजार के रूप में काम लाया जा सके:
You will investigate whatever is rare in the stupendous fabric of nature; will correct the geography of Asia by new discoveries; will trace the annals and even traditions of those nations, who from time to time have peopled or desolated it; and will bring to light the various forms of government, with their institutions civil and religious; you will examine their improvements and methods in arithmetic and geometry, in trigonometry, mensuration, mechanics, optics, astronomy, and general physics; their system of morality, grammar, rhetoric, the dialectic; their skill of surgery and medicine, and their advancement, whatever it may be in anatomy and chemistry.
हमने अपनी पड़ताल में पाया था कि विलियम जोंस असाधारण प्रतिभा के व्यक्ति थे, उनका ज्ञान सराहनीय था, जिसमें और कुछ जोड़ा जा सकता है तो यह कि उनके द्वारा अपनी और यूरोपीय श्रेष्ठता के बचाव के लिए ऐसे तर्क काम मे लाए जा सकते थे जिनकी विश्वसनीयता सुलझे दिमाग के लोगों के बीच भले नगण्य हो, परंतु अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए जिनको हथियार के रूप में काम मेे लाया जा सकता था और वह स्वयं ला रहे थे, जब कि वह उनमें विश्वास नहीं करते थे जो ऊपर उद्धृत वाक्य के एक अंश the annals and even traditions of those nations से समझा जा सकता है। इसके दो तरह के अर्थ लगाए जा सकते हैं जिनके विस्तार में जाना नहीं चाहेंगे।
अब यदि इस पृष्ठभूमि में इस बात पर ध्यान दें कि वह वस्तुस्थिति की पूरी जानकारी से पहले से ही एक निर्णय पर पहुंच चुके थे, कि उन्होंने भारत में पहुंच कर अपना फैसला पहले सुनाया, जानकारी बाद में जुटानी आरंभ की, तो इस कड़वे यथार्थ पर ध्यान गए बिना नहीं रह सकता है कि वह एक न्यायाधीश थे, न्याय प्रक्रिया पर उन्होंने निबंध लिखे थे फिर भी उन्होंने निर्णय प्रक्रिया को उलट क्यों दिया? कोई भी निर्णय वह अपनी पड़ताल पूरी करने से पहले नहीं कर सकते थे। इसे कदाचार कहते हैं। इस प्रक्रिया से न्याय संभव नहीं, परंतु परंतु अन्याय की हिमायत करते हुए उसे ही न्याय सिद्ध करने का काम किया जा सकता था।
हम पहले इस बात का संकेत कर आए हैं कि इतने लंबे समय तक वह यूरोप के संवेदनशील लोगों को आत्मग्लानि में पड़े रहने नहीं देना चाहते थे। वह भारत को यूरोप की जरूरत के अनुसार देखना और दिखाना चाहते थे इसलिए जहाँ वह भारत के प्रति उदार दिखाई देते हैं वहां भी केवल इतने ही उदार हो सकते थे, जितना उनकी अपनी परंपरा को विशेषतः ग्रीस को भारत का ऋणी न सिद्ध होना पड़े।
वह कृपालु भाव से भारत की कुछ अच्छाइयों को देखने को तैयार थे। इसलिए, हम उन्हें यह रियायत दे सकते हैं कि उनका पक्का विश्वास था कि वह पहली नजर में जिस नतीजे पर पहुँचे हैं, वह सही है। कमी है तो सबूतों की; वे मिल कर रहेंगे। छानबीन आरंभ की अरब से, यह सिद्ध करने के लिए कि इस्लाम से पहले अरबों का भारतीयों से और भारतीयों का अरबों से कोई संबंध नहीं था, परन्तु अपने अध्ययन के दौरान यह पा कर कि भारतीय धर्म और विश्वास का उस पर गहरा प्रभाव था, पहले तो इसे नकारते रहे, पर बाद में और कोई चारा न रह जाने पर यह मानने को बाध्य हुए कि यह भी उस स्रोत से आया होगा जिससे भारत में इसका प्रवेश हुआ।
यहाँ वह अपने ही जाल में फँस गए थे। जहाँ वह उस जननी भाषा की तलाश कर रहे थे वहाँ उस लुप्त धर्म और विश्वास के भी चिन्ह पाए जाने चाहिए थे, ग्रीस और रोम में भी उसे पहुँचना चाहिए था जिसकी जानकारी जोंस को नहीं थी। पर विलियम जोन्स निरुत्तर हो सकते थे, हार नहीं सकते थे।
ओलिवर गोल्डस्मिथ के नाटक She Stoops to Conquer की याद आती है जिसका पहली बार लंदन में मंचन 1773 में हुआ था और जिसे जोन्स ने देखा भी होगा। नाटक एक कॉमेडी था और अतिसुधी भारतीय विद्वानों ने उनके लेखन को उसी रूप में ग्रहण किया, यह ट्रैजिओ कॉमेडी था इसे हम बता रहे हैं जिसकी कोई सुनता ही नहींं।