रामकथा की परंपरा (29)
लंकाविजय
लंका का शाब्दिक अर्थ है द्बीप। लक्का, मलक्का उसी के उच्चारभेद हैं। यदि कोई किसी नदी के द्वीप (दीयर)को लंका कहे तो मुझे हैरानी न होगी, जैसे चक और चकिया (जिसके चारों ओर पानी हो) के लिए इसका प्रयोग देखकर) । गोरखपुर जनपद में उसका एक अधिक सुलझा स्थान नाम राप्ती के किनारे है चारपानी। इसी नाम का प्राचीन स्थल है चौपानीमंडो (It is situated in Belan river valley in modern Allahabad district of Uttar Pradesh state, India. A three phase sequence of palaeolithic, Mesolithic and Neolithic is attributed by archaeologists. विकीपीडिया) इन्हे कोई लंका माने तो इन गाँववालों को भले आपत्ति हो, मुझे न होगी।
यदि लंका और हाल में श्री लंका के लिए यह संज्ञा रुढ़ है तो अर्थतः अनेक द्वीपों के बीच वह लंका तो वही हो सकती है जिसे कुछ दिन पहले तक अंग्रेजी में सीलोन कहा जाता था। यदि रामसेतु के विषय में हमारी पीछे की व्याख्या सही है, अर्थात् मूंगे की दीवार के ऊपर मरम्मत करते हुए एक राजमार्ग बनाया गया था और यह लोह युग के महापाषाणी शिल्पियों के द्वारा बनाया गया था, और राम की पहल पर बनाया गया था, तो इतना प्रयत्न करने के बाद भी यदि राम श्रीलंका में प्रवेश न करते तो उनकी बुद्धि पर तो तरस आता ही, अपनी बुद्धि पर भी तरस आता।
हम यह सुझा आए हों कि सीता के हरण की कहानी, मायामृग की कहानी, सोने की लंका के दहन की कहानी, सीता की खोज ये सभी ऋग्वेद के आख्यानों से प्रेरित हैं। राम को ऐतिहासिक कहानी में अपनी पत्नी के साथ निर्वासन मिला भी हो तो अपहरण की कहानी उतनी ही गढी हुई है जितनी सीता का रामद्वारा परित्याग।
क्या इसके पीछे वर्षा की अनिश्चितता के कारण किसी समूह का यह विश्वास हो सकता है कि यदि वे चारों ओर से समुद्र से घिरे हुए देश में पहुंच जाएँ तो उन्हें जल संकट का सामना नहीं करना पड़ेगा? आप ध्यान दें कि श्रीलंका में प्रवेश करने और उसके अंतिम छोर तक पहुंचने से पहले उन्हें इस बात का भान भी नहीं हो सकता था कि लंका समुद्र से घिरा हुआ है। मैं तार्किक औचित्य का उल्लंघन कर गया, और इस तर्क को निरस्त करता हूँ फिर भी लंका की अपनी परंपरा के अनुसार भी राम ने लंका में प्रवेश किया था और उनसे जुड़े हुए अनेक स्थान ब्राह्मणवादी प्रभाव से मुक्त श्रीलंका में आज तक सुरक्षित है और उन्हें इस रूप में याद किया जाता है।
एक दूसरा पक्ष । यद्यपि बौद्ध साहित्य में बौद्ध धर्म से पहले श्रीलंका के निवासियों को यक्ष-रक्ष के रूप में ही चित्रित किया गया है, परंतु अशोक अपने पुत्र और पुत्री ( महेंद्र और संघमित्रा को) हैवानों के बीच नहीं भेज सकते थे। उन्होंने अपने पुत्र और पुत्री को सिंहल में तब भेजा था जब वहाँ एक राज-व्यवस्था कायम थी और यह कृषि के आधार के बिना संभव न था। संघमित्रा महान मौर्य सम्राट अशोक की पुत्री थी जिसे अशोक ने अपने पुत्र महेन्द्र के साथ श्रीलंका (सिंहलद्वीप तथा ताम्रपर्णी के नाम से भी ज्ञात) में बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भेजा था।
हम इस तथ्य को रेखांकित करना चाहते हैं कि बौद्ध धर्म के प्रवेश से पहले दक्षिण भारत की तरह श्री लंका के अनेक जनों ने किन्हीं कारणों से कृषि कर्म न अपनाया हो, परंतु एक भाग ऐसा था जो कृषि कर्म से जुड़ा हुआ था और जिसके कारण ही श्रीलंका में सभ्यता का प्रचार हो चुका था। यह काया-पलट कब हुआ, कैसे हुआ यह एक रहस्य ही बना रह जाएगा, यदि हम बौद्ध मत के प्रवेश से पहले के प्रेरणा स्रोत की तलाश न कर सके। लौटने पर केवल राम और उनके द्वारा कृषिकर्म का प्रचार और प्रसार ही देखने को मिलता है।
आज श्रीलंका में तमिल भाषी जनों की प्रभावशाली उपस्थिति है। श्रीलंका की भाषा पर तमिल का प्रभाव नहीं दिखाई देता। महेंद्र और संघमित्रा जिस साहित्य और संदेश के साथ श्रीलंका में पहुंचे थे वह पाली में निबद्ध था और इसके कारण श्रीलंका में पाली भाषा का प्रभाव पड़ा। मुझे यह बात उलझन में डालती रही है कि कन्नड़ का प्रभाव श्रीलंका के नामों पर कैसे पड़ा, पाली के प्रभाव का निषेध करते हुए जिस बोली का प्रभाव कन्नड पर है उस बोली के लोगों की ही प्रमुखता राम के साथ प्रवेश करने वालों मे भी माननी होगी।
राम के निर्वासन की निश्चित भौगोलिक पहचान नासिक या महाराष्ट्र की है यहीं से महापाषाणी संस्कृति का दक्षिण भारत में प्रसार देखने में आता है। इससे आगे ही कन्नड क्षेत्र में उनको सीता या कृषिभूमि (सीता) के अन्वेषी मिलते हैं और संभव है श्रीलंका में कृषि और सभ्यता के प्रसार में उनकी विशेष भूमिका रही हो।