भारतीय मार्क्सवादी (3)
“तुम्हारी प्रकृति अराजकतावादी है, इसका तुम्हें पता है? इतनी तेजस्वी, देश को समर्पित, विभूतियां हुई हैं कम्युनिस्ट पार्टियों में और तुम्हारी जबान झाडू की तरह चल कर एक ही झटके में सबको बुहार कर कूड़ेदान के हवाले कर देती है। यही है तुम्हारी मार्क्सवादिता?”
“देखो, मैं मार्क्सवादी होने का दावा नही करता, मैं जो कुछ हूँ वही मुझे परिभाषित करता है. अपरिचित व्यक्ति को परिचय देना हो तो यह जरूरी हो सकता है. परिचित लोगों के विषय में जो कुछ वे हैं वही प्रमाण है. मुझे यह भ्रम है कि मैंने अपने जीवन, लेखन और सोच में अपने को मार्क्सवादी कहने वालों की तुलना में अधिक निष्ठा से उन सिद्धांतों का निर्वाह किया है. जहां तक व्यक्तिगत त्याग और समर्पण भाव की बात है पूरी कम्युनिस्ट पार्टी तो छोड़ दो, मेरे अपने परिचय परिधि के कम्युनिस्टों में ही ऐसे अनेक लोग मिल जायेंगे जो उन दृष्टियों से मेरे आदर्श रहे हैं, इनसे भी विलक्ष्ण लोग ऐसे दलों, संगठनों, विचारधाराओं में भी मिल जायेंगे जिनसे तुम्हें चिढ़ हो सकती है, उदाहरण के लिए माओवादी, मुस्लिम लीग, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ. यहाँ तक कि कुछ अपराधकर्मियों तक में कई मेधा और व्यक्तिगत चरित्र के अनूठे नमूने मिल जायेंगे. प्रश्न निजी शुचिता या त्याग भाव का ही नहीं है? प्रश्न है मानवीय सरोकारों की दृष्टि से वे सही हैं या नहीं? किसी दर्शन की अपनी कसौटी पर वे खरे हैं या नहीं? उस दर्शन का प्रतिपादक स्वयं उसकी अपेक्षाओं की पूर्ति करता है या नहीं?”
उसका धीरज जवाब दे गया, “प्रश्न यह भी है कि तुम्हारी जबान बंद होती है या नहीं.”
मैं हंस पड़ा, “सच कहो तो तुम लोगों को एक ही काम आता है. लोगों की ज़बान बंद करना और बोलने का सारा अधिकार अपने पास रखना. तुम्हें याद है आजीवन प्राण पण से पार्टी का काम करने वालों ने भी, वे कितने भी बुद्धिमान हों, यदि अलग कोई विचार रखा तो उसके साथ अपराधी जैसा व्यवहार किया जाता रहा है, आत्मालोचन के नाम पर पार्टी के गलत फैसलों को मानने को मजबूर किया जाता रहा है. उसके अपने उत्तर में यदि कोई बू भी रह गई कि वह अपमी मान्यता को गलत नही मानता िफर भी पार्टी का निर्णय सर माथे, तो दुबारा आत्मालोचन को बाध्य किया जाता रहा है. तुम्हें पता है क्रोचे को जिसे मार्क्सवादी सौंदर्यशास्त्र का पुरोधा माना जाता है उसे दो बार आत्मालोचन के लिए उन लोगों द्वारा बाध्य किया गया था जिनको पार्टी के फरमान का भले पता रहा हो, सौन्दर्य का ककहरा भी पता न था. जहां तक मुझे याद है उसका दूसरा आत्मालोचन भी स्वीकार न किया गया था.
“राहुल जी को पार्टी से निष्कासित इसलिए किया गया कि उन्होंने पार्टी की अंग्रेजीपरास्ती की आलोचना की थी और यह टिप्पणी की थी कि अन्य देशों में जहां मुसलमान दूसरे मजहब के लोगों के साथ रहते है, वहा उनके वेश विन्यास दूसरों जैसे ही होते है. भारत में भी ऐसा होना चाहिए. उन्हें इसके लिए दण्डित किया गया था. पी सी जोशी को जो पार्टी के महासचिव तक थे उनको जिस अपमान और असुरक्षा से गुजरना पडा उसको बयान नहीं कर सकता.
“यह मार्क्सवाद नहीं हो सकता. मार्क्सवाद में मानवीय गरिमा की चिंता सर्वोपरि है. हाँ इसे यदि तुम पोपतंत्र के उस चरण से जोड़ कर देखना चाहो जिसमे गैलीलियो को कोपरनिकस के सिद्धांत का खंडन करने की शर्त पर उसे यातनावध से मुक्ति दी गई थी और उस कृति में भी यह कहते हुए कि उसका सिद्धांत ईसाइयत के विपरीत नहीं है, उसने उसे गलत नहीं कहा तो उसको आजीवन कारावास (हाउस अरेस्ट ) का दंड दिया गया था?
“मै सवाल नही कर रहा हूँ. जानना चाहता हूँ कि क्या यह मार्क्सवाद है या मार्क्सवाद के नाम पर पोपतंत्र?
“मैं स्वयम अपनी गलतियां सुधारना चाहता हूँ. मैंने कहा न कि मैं जीतना नहीं चाहता हूँ. सच तक पहुंचना चाहता हूँ इसलिए मैं जब गलत सिद्ध होता हूँ, सही को अपना लेता हूँ. विजय के इस रूप को वे नहीं जान सकते जो निरुत्तर होकर भी अपनी जगह अड़े रहते है. मुझे तुम्हारी सहायता चाहिए.
“एक बात का ध्यान रखना. मेरी समझ से मार्क्सवाद गुलामी का दर्शन नहीं है. गुलामी के सभी रूपों से मुक्ति का दर्शन है और इस समझ की सीमा में ही मैं अपने को मार्क्सवादी मानता हूँ।
“बहुत उलझी हुई हैं तेरी जुल्फें
तुझे इनसे ही इतना प्यार क्यों है.”