कौन कहता है मीर मुझसे बड़ा था शायर
सिर्फ ग़ालिब से बड़ा था यह राज़ फाश भी है.
उसकी जो पूँजी मुफलिसी के कुछ क़रीब सी थी
दर्दो गम जितना था उसके, वह मेरे पास भी है
कई गुना और कई तरह के हैं जख्मो खरोंच
जो जिगर उसने था पाया वह मेरे पास भी है.
कोई भगवान को भगवा में लपेटे तो सही
तुमसे पूछेगा कोई रंग तेरे पास भी है.
9/29/2015 8:53:25 PM
Month: September 2015
Post – 2015-09-29
कुछ नहीं मैंने किया जो कुछ हुआ होता रहा.
मैं तो बस माज़ी में चादर तान कर सोता रहा.
कितने दंगे क़त्ल और नेपथ्य से क्रन्दन-विलाप
मुक़र्रर इर्शाद का भी शोरो गुल होता रहा.
अपना मुश्तकबिल छिपाऊं किस महा घंटे तले
अपनी अंजुली में संभाले चीखता रोता रहा.
अट्टहासों गर्जनाओं के घने कोहराम में
मैं ज़हर पीता रहा और वह ज़हर बोता रहा.
धुंधलका कुछ और अंधियारे की परते भी कई
कहता कालिख से लहू के दाग़ वह धोता रहा.
‘कब तलक सोते रहोगे सर पर सूरज आ गया’
‘सर से नीचे तो उतारो कह के फिर सोता रहा’.
जब झिंझोड़ा आपने तो खून से लथपथ था मैं.
मच्छरों को क्या पता क्योंकर सितम होता रहा.
9/29/2015 10:52:14 AM
Post – 2015-09-28
I do not compose. I think deeply on prolems. Subcosnscious composes and throws it up.
Post – 2015-09-27
वक़्त की धार से इक उछली घड़ी थी शायद.
तुझे देखा था तो तू इतनी बड़ी थी शायद.
पल्ले पर हाथ शालभंजिका की मुद्रा में
अपने दरवाजे पर कुछ तन के खडी थी शायद.
गुजरते राह ‘नज़र लगती है लगने दो’ कहा
इतना सुनना था कि तू मुझसे लड़ी थी शायद.
ठीक तो याद नही फिर भी ऐसा लगता है
वह गर्मियों की एक दोपहरी थी शायद.
आज चहरे पर झुर्रियों की लिखावट थी घनी
आँख के कोने में एक बूँद पड़ी थी शायद.
कितनी तस्वीरें एक दूसरे में पिन्हा थीं
कहानियों की भी एक लम्बी लड़ी थी शायद.
मुझे देखा तो थरथराए थे कुछ होंठ मगर
झट से मुँह फेर मुझे भूल गई थी शायद.
आज यह शाम थी और शाम का सन्नाटा था
बादलों में न चमक थी न नमी थी शायद.
9/26/2015 4:24:15 PM
Post – 2015-09-26
जिसको हम वाइज समझते थे वह दीवाना मिला
जिस जगह रखकर किताब आया था बुतखाना मिला
मैंने पूछा उससे ऐसा कर के तुझको क्या मिला
‘दस्ते शाकी मिल गया और पूरा मैख़ाना मिला’
लीजिये किस्मत का मारा साथ उसके हो लिया
कुछ क़दम आगे बढे थे सामने थाना मिला
‘थाने तो अपने हैं, अपनी ही हिफाज़त के लिए’
सोचते पहुँचे, न पूछें, क्या हमें खाना मिला
‘क्या हुआ, कैसे नज़र में आगये आईन के?’
पूछते ही फिर बदर-वतनी का परवाना मिला.
फिर तो फैलीं सुर्खियाँ ‘यह तानाशाही देखिये’
उसकी छुट्टी हो गयी और हमको हर्जाना मिला.
यूं ही तुक बेतुक बिठाता जोड़ता है देखिये
आपको शायर मिला शातिर, मगर दाना मिला.’
9/25/2015 6:01:19 PM -9/25/2015 8:43:43 PM
Post – 2015-09-25
समझते हम तुम्हें हैं, जान तुम मुझको नहीं सकते
खुदा तुम हो मगर हमने खुदाओं को बनाया है.
हैं हम इंसान खादिम बनके खिदमत में सदा हाज़िर
मगर जिस ताल सुर में चाहते तुमको नचाते हैं.
खिलौना ही नहीं हथियार भी तुमको बनाया है
तुम्हारे नाम पर हैं क़त्ल करते घर जलाते हैं.
भले विज्ञानं चीखे तुम नहीं हो तुम नहीं हो पर
हम उस विज्ञान की भी ऎसी तैसी करते जाते हैं
अगर भगवान से पूछो कि तू भगवान ही है क्या
कहेगा वह, रुको कुछ सोचकर तुमको बताते हैं.
9/24/2015 9:48:14 PM
Post – 2015-09-24
fourth.
मैं जहां था वहीं देखो तो कल खुदा निकला.
किताबें भी थीं वहीं उनसे कुछ जुदा निकला
अपने कूचे की निगहबानी सौंप रखी है
जिन किताबों ने वह उनसे खफा खफा निकला
इतनी सँकरी गली दीवारें पीस दें जिसको
उनसे छूटा था दम उसका घुटा घुटा निकला
मैंने कुछ ग़ौर से देखा तो वही रूप विराट
कुछ ऐसा था ही न जिसमें न वह बसा निकला
उसी में सब सभी में वह न तो जादू न वहम
मेरा दुश्मन भी जो देखा तो हमनुमा निकला.
9/24/2015 10:32:24 AM
Post – 2015-09-24
something goes amiss every time. this is the third attempt.
मैं जहां था वहीं देखो तो कल खुदा निकला.
किताबें भी थीं वहीं उनसे कुछ जुदा निकला
अपने कूचे की निगहबानी सौंप रखी है
जिन किताबों ने, वह उनसे खफा खफा निकला
इतनी सँकरी गली दीवारें पीस दें जिसको
उनसे छूटा था दम उसका घुटा घुटा निकला
मैंने कुछ ग़ौर से देखा तो रूप विराट
कुछ ऐसा था ही न जिसमें न वह बसा निकला
उसी में सब सभी में वह, न तो जादू न वहम
मेरा दुश्मन भी जो देखा तो हमनुमा निकला.
9/24/2015 10:32:24 AM
Post – 2015-09-24
मैं जहां था वहीं देखो तो कल खुदा निकला.
किताबें भी थीं वहीं उनसे कुछ जुदा निकला
अपने कूचे की निगहबानी सौंप रखी है
जिन किताबों ने, वह उनसे खफा खफा निकला
इतनी सँकरी गली दीवारें पीस दें जिसको
उनसे छूटा था दम उसका घुटा घुटा निकला
मैंने कुछ ग़ौर से देखा तो रूप विराट
कुछ ऐसा था ही न जिसमें न वह बसा निकला
उसी में सब सभी में वह, न तो जादू न वहम
मेरा दुश्मन भी जो देखा तो हमनुमा निकला.
9/24/2015 10:32:24 AM
Post – 2015-09-24
मैं जहां था वहीं देखो तो कल खुदा निकला.
किताबें भी थीं वहीं उनसे कुछ जुदा निकला
अपने कूचे की निगहबानी सौंप रखी है
जिन किताबों ने, वह उनसे खफा खफा निकला
इतनी सँकरी गली दीवारें पीस दें जिसको
उनसे छूटा था दम उसका घुटा घुटा निकला
मैंने कुछ ग़ौर से देखा तो वहीं रूप विराट
कुछ ऐसा था ही न जिसमें न बसा निकला
उसी में सब सभी में वह, न तो जादू न वहम
मेरा दुश्मन भी जो देखा तो हमनुमा निकला.
9/24/2015 10:32:24 AM