जिसको हम वाइज समझते थे वह दीवाना मिला
जिस जगह रखकर किताब आया था बुतखाना मिला
मैंने पूछा उससे ऐसा कर के तुझको क्या मिला
‘दस्ते शाकी मिल गया और पूरा मैख़ाना मिला’
लीजिये किस्मत का मारा साथ उसके हो लिया
कुछ क़दम आगे बढे थे सामने थाना मिला
‘थाने तो अपने हैं, अपनी ही हिफाज़त के लिए’
सोचते पहुँचे, न पूछें, क्या हमें खाना मिला
‘क्या हुआ, कैसे नज़र में आगये आईन के?’
पूछते ही फिर बदर-वतनी का परवाना मिला.
फिर तो फैलीं सुर्खियाँ ‘यह तानाशाही देखिये’
उसकी छुट्टी हो गयी और हमको हर्जाना मिला.
यूं ही तुक बेतुक बिठाता जोड़ता है देखिये
आपको शायर मिला शातिर, मगर दाना मिला.’
9/25/2015 6:01:19 PM -9/25/2015 8:43:43 PM