विचित्रताओं का देश
विचित्रता के जिन आशयों से हम परिचित हैं, उनसे अलग इसका एक अर्थ है घोर पिछड़ापन। विचित्रता के कारण भी अनेक देशों की छवि पिछड़ेपन से जुड़ जाती है। इसका एक उदाहरण अफ्रिका, अमेरिका या ऑस्ट्रेलिया के विषय में गोरों के द्वारा पेश किए विवरणों हैं। आत्मरति के कारण पश्चिम अपने से भिन्न देशों, समाजों, मूल्यों और रीतियों को अरुचि और पिछड़ेपन से जोड़कर देखता रहा है। परंतु क्या यह सच होते हुए भी एक बहाना नहीं है?
आज भी भारत की छवि अनेक देशों के बीच यही बनी हुई है। इसका कुछ आधार भी है। हमने अपनी परंपरा का उतनी निकटता से परीक्षण और संशोधन नहीं किया जितना अपेक्षित था। यदि किसी एक मामले में भारतीय और अभारतीय दृष्टिकोण में निकटता पाई जाती है तो वह है, दोनों के द्वारा भारत को विचित्र देश या दुनिया से अलग किस्म का देश मानना।
हम विष्णु पुराण के उस विवरण परिचित हैं जिसमें भारतीय भूभाग को सारी दुनिया से अलग और उत्कृष्ट सिद्ध किया गया है जिसके कारण स्वर्गीय देवता भी पुण्य क्षीण हो जाने के बाद इसी भूभाग में जन्म लेना चाहते हैं, क्योंकि यहीं पर वह साधना और सिद्धि संभव है जिससे स्वर्ग पहुंचा जा सकता है। इसकी महिमा स्वर्ग से भी अधिक – स्वर्गादपि गरीयसी -सिद्ध करने वाले मुहावरे हमें आज भी प्रेरित करते हैं।
भारत के विषय में यूनानियों में सबसे अच्छी जानकारी मेगास्थनीज की है। दूसरों ने अपनी राय भारत के व्यापारियों या भारत से परिचित दूसरे व्यक्तियों से सुनकर बनाई थी इसलिए उनमें नितांत अविश्वसनीय और हास्यास्पद बातें मिले तो यह हैरानी की बात नहीं है, परंतु मेगास्थनीज ने भी जितना देखा और जाना था उससे अधिक दूसरों से सुनकर अपनी राय बनाई थी। देखा हुआ पक्ष उन्हें, उनके देखे और जाने हुए संसार की तुलना में, अनन्य लगता था, और इसलिए विचित्र न होते हुए भी कुछ विचित्र था। परंतु दूसरों के माध्यम से सुना हुआ विवरण अनुपात का ज्ञान न होने के कारण, जहां सच है वहां भी विचित्र लगता है और फिर तो कोई भी बात जो अविश्वसनीय है. वह भारत के विषय में संभव लगती है। ऐसी कुछ विचित्रताओं पर हम नजर डाल सकते हैं:
भारत में उड़ने वाले बिच्छू होते हैं, इनका आकार बहुत बड़ा होता है। यदि आकार की कोई सूचना न होती तो हम आसानी से मान सकते थे कि संभवत: यह लाल या काले ततैया के विषय में हो पर वह आकार में काफी बड़ा होता है, यह सुनी सुनाई बातों के आधार पर किया गया वर्णन है। आकार को देखते हुए, लगता है इसमें चमगादड़ (गादुर) और काले ततैये के विषय में मिली सूचना का मिश्रण हो गया है।
इसी तरह उड़ने वाले सांप विषखोपड़ा या गोह के विषय में मिली जानकारी पर आधारित लगता है ।
बंदर मनुष्य की नकल करते हुए बहुत से काम कर सकते हैं, और उनसे अभिनय तो कराया ही जाता रहा है, जो दूसरे लोगों को हैरान करता है। परंतु बंदर अपना पीछा करने वालों को पत्थर मारते हैं, इसमें कल्पना का योग दिखाई देता है।
सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि एकशृंग पशु का सबसे अधिक प्रभावशाली अंकन हड़प्पा की मुहरों पर हुआ है, जिसका अर्थ यह भी हो सकता है कि इसका बाहुल्य था, पर जिससे मिलता जुलता कोई जानवर न मिलने के कारण इसे एक ओर तो काल्पनिक माना जाता रहा है और दूसरी ओर, यदा कदा, गैड़े का अंकन मान लिया जाता रहा है। मेगास्थनीज के समय तक यह लुप्त नहीं हुआ था। लगता है लंबे समय तक इसका लगातार आखेट किया जाता रहा, जिसके कारण यह समाप्त हो गया।
अंतःपुर में राजा की रक्षा का काम महिलाएं करती थीं पुरुष अंगरक्षक महल के बाहर रक्षा का काम संभालते थे, यह विचित्र लग सकता है, पर इसका कारण समझना कठिन नहीं है।
यह बात सही है कि भारत में अधिकांश लेनदेन जबानी हुआ करता था, क्योंकि इस बात की नौबत बहुत कम आती लोग थी कि लोग झूठ बोलेंगे या लेकर मुकर जायेंगे, परंतु यह सही नहीं है कि ब्याज पर ऋण लेते ही नहीं थे। सच्चाई यह है कि धन डूबने के अंदेशे को ध्यान में रखते हुए ब्याज की दर अधिक होती थी। महाजनी प्रथा जो बैंक प्रणाली का आदिम रूप है, ऋग्वेद के समय से ही प्रचलित दिखाई देती है। एक ऋषि का नाम ही है कुशीदी अर्थात ब्याज पर पैसा देने वाला, सूदखोर, काण्व है। यह दूसरी बात है भारत में इसे सम्मानजनक पेशा माना जाता था क्योंकि इसके बिना व्यापारिक तंत्र का उन्नत विकास हो ही नहीं सकता था।
जीवन मरण के संबंध में और परलोक को अधिक महत्व देने का भारतीयों का दृष्टिकोण, सभी को चकित करता रहा है, हमारे लिए चकित करने वाली बात यह है कि इस दृष्टिकोण के बाद भी भारत अपने इतिहास के अधिकांश चरणों पर भौतिक दृष्टि से भी उन्नत बना रहा।
परंतु उनके लिए एक आश्चर्य यह था कि तत्व चिंतन के अनेकानेक मामलों में भारतीयों के विचार यूनानियों जैसे थे। इनमें सबसे आश्चर्य की बात यह है कि पृथ्वी गोल है, इस सत्य को यूरोप के लोग पंद्रहवीं शताब्दी में पूर्व से संपर्क के बाद जान पाए, क्योंकि वे अपनी परंपरा से कट गए थे, जबकि भारत को और यूनानियों को इस तथ्य का पता बहुत पहले से था। इस समानता का रहस्य क्या है, यह न उन्हें मालूम था, न भारतीयों को। क्योंकि जैसे ईसाइयत के प्रकोप से यूरोप अपने अतीत से कट गया था, उसी तरह भारत बहुत पहले आए एक प्राकृतिक प्रकोप के लंबे दौर से गुजरने के कारण अपने सुदूर अतीत से कट चुका था।
एक अन्य तथ्य जो ध्यान देने का है, वह है सर्वदेववाद। इस पक्ष पर अब तक जो चर्चा होती रही है वह उल्टे सिरे से होती रही है और जानबूझकर, सचाई को दबाते हुए लगातार जारी रखी गई है। सर्वदेववाद भी यूनान में मान्य था, यहां इतना जानना ही पर्याप्त है।
विचित्रताओं में सबसे विचित्र भारत का ब्राह्मण रहा है। उसके विषय में यूनानी लेखकों के विवरण सचाई के निकट भी हैं और व्यावहारिकता के विपरीत भी। क्या विश्वास किया जा सकता है कि किसी सम्राट को इशारों पर नचाने वाला, उसके सुख-भोग की व्यवस्था करने वाला स्वयं कुटिया में रह सकता है और सत्तू खा कर अपनी गरिमा के साथ रह सकता है। एक समृद्ध अर्थव्यवस्था मैं सब कुछ त्याग कर सत्य साधना के लिए उंछ वृत्ति अपना सकता है? समस्त प्रलोभनों को ठुकराता हुआ एक ऐसी अवस्था में पहुंच सकता है जिसमें लाभ-लोभ-भय का कोई अर्थ नहीं रह जाता यह किसे विस्मित न करेगा। पहले मैं यह समझता था सिकंदर और एक साधक का आमना सामना होने की कहानी आर्यसमाजियों द्वारा कल्पित है, परंतु अब समझ में आया कि यह भी यूनानी लेखकों के विवरणों पर आधारित है जिसमें सिकंदर ने हार मानी थी।