Post – 2019-01-23

हया को भी हया आ जाए लेकिन…

हम सभी भारत से अतीत काल में परिचित और इसके विषय में जानकारी देने वाले लेखकों में मेगस्थनीज के विचारों की मोटी जानकारी रखते हैं, क्योंकि इतिहासकार अपनी पुस्तकों में प्राय: इनके हवाले देते रहे हैं। परन्तु अधिकांश जानकारियां तत्कालीन समाज की नैतिकता और शासन व्यवस्था के विषय में होती हैं और इनमें कुछ इबारतों को ही बार बार इस तरह दुहराया जाता है मानो अधिकांश लेखकों ने पुस्तकों में उद्धृत वाक्यों पर भरोसा करके उन्हें ही दुहरा दिया हो।

कोई भी विदेशी लेखक किसी देश और समाज की बहुत अंतरंग और गहन जानकारी नहीं रख सकता और उससे कुछ पहलू छूट जाएं यह प्राचीन ही नहीं आधुनिक विदेशी लेखकों के विषय में सच है जिन्हें परिवहन, सूचना के माध्यमों और किसी भी पहलू पर उपलब्ध साहित्य की सुविधाएं प्राप्त हैं।

परन्तु विदेशी लेखक की नजर अल्प परिचय के बाद भी हमारे कतिपय ऐसे पहलुओं की ओर जा सकती है जिससे अति परिचय के कारण ध्यान ही नहीं देते। ये हमारी उपलब्धियां भी हो सकती हैं और सामाजिक विकृतियां भी। इसलिए हमारे लिए कोई भी विदेशी लेखक पूरी तरह भरोसे का नहीं हो सकता, उसका महत्व पूरक के रूप में ही हो सकता है।

परन्तु हमारा देश जो सूचना और ज्ञान के मामले में विदेशी ‘सेवकों’ पर निर्भर करता है उसे अपने स्रोतों से उपलब्ध सूचनाओं से अधिक भरोसा विदेसियों पर हो तो इस पर हैरान होने का कोई कारण इसलिए भी नहीं कि जहां तक प्राचीन साहित्य का प्रश्न है, हमारे इतिहासकारों को उसका पता ही नहीं और जितना कयास, आभास और अनुवाद से जान पाते हैं, वे उसे समझने से अधिक उसका सत्यानाश करने के प्रयत्न में रहते हैं और इस झक में उन्होंने जो तोड़फोड़ की है उससे विदेशी यात्रियों के वर्णन अप्रभावित रहे हैं।

मेगास्थनीज के भारत विषयक ज्ञान को इसी परिदृश्य में रख कर देखा जाना चाहिए और इस दृष्टि से वह यूनानी लेखकों में सबसे विश्वसनीय और अन्यथा भी बहुत भरोसे के हैं क्योंकि:
1. तत्कालीन भारतीय समाज और मूल्यों के विषय में जो मत व्यक्त किए हैं वे चीनी यात्रियों के विवरणों से मेल खाते हैं;
2. भारत के भौगोलिक यथार्थ के अनुरूप हैं;
3. भारतीय साहित्य में उपलब्ध सूचनाओं से अनमेल नहीं हैं; और
4. तहस नहस किए जाने के लाख प्रयत्नों और दमन, उत्पीड़न, अतिदोहन जनित दुरवस्था के बाद भी वे मूल्य हिन्दू समाज में ही नहीं अवशिष्ट रह गए हैं, किसी न किसी रूप में भारतीय भूभाग में बसने वाले दूसरे समुदायों में भी तलाशे जा सकते हैं जिनके कारण भारत के पारसी, मुसलमान, ईसाई अपने अभारतीय मजहबी लोगों से अलग पहचाने जा सकते हैं।

मेगास्थनीज ने भारत के विषय में जो सूचनाएं प्रस्तुत की हैं उनको संक्षेप में भी रखना चाहें तो वह कई पन्नों में पूरा होगा। हम इसे सार रूप में रखना चाहेंगे:
1. भारत एक विशाल देश है जो तीन ओर से समुद्र से और उत्तर में हिमालय से घिरा है। इसको आयताकार मानना एक ऐसी मामूली भूल है जिसे दक्षिण की ओर जाती तटरेखा और उस युग की सीमा में नाविकों से उपलब्ध सूचनाओं को ध्यान में रखते हुए सटीक मानना होगा। ध्यान रहे कि यह तुर्कों और मुगलों के हिंदुस्तान से और मनु के आर्यावर्त से विशाल है, विष्णुपुराण के अनुरूप है।
1.1. इसमें अनेक पर्वत हैं, जिनको उनसे निकलने वाली अनगिनत नदियां काटती हैं। इसकी सबसे विशाल, बहुत चौड़ी, बहुत गहरी और पवित्र नदी गंगा है, जिसके समकक्ष नील, दजला, फरात, डेन्यूब कोई नहीं।
1.2. इसमें कई उर्वर भूभाग हैं, सिंचाई की सुविधाएं हैं, साल में दो बार बरसात होती है, साल में दो फसलें उगाई जाती हैं, इसलिए अन्न का बाहुल्य है।
1.3. मीठे कन्द नैसर्गिक रूप में पैदा होते हैं(अन्य कन्दों के साथ शकरकन्द को याद रखें), अपार खुशहाली है ।
1.4. सभी तरह के फलदार पेड़ों के बाग-बगीचे हैं. सभी तरह के पशु-पक्षी हैं और हाथी तो इतने विशाल और इतने अधिक, कि उनके सामने लीबिया के हाथी कुछ नहीं। और इनको पकड़कर पालतू बनाया जाता है प्रशिक्षित किया जाता है और युद्ध के काम में लाया जाता है जिससे ये किसी युद्ध का पासा पलट सकते हैं। इनके ही कारण सिकंदर का साहस गंंगा प्रदेश की ओर बढ़ने का नहीं हुआ, जबकि वह इसके निकट पहुंच चुका था।
1.5. यहां लोहा, तांबा, सोना,, चांदी, हीरा,जस्ता, टिन और दूसरी धातुओं के भंडार हैं, जिनसे विविध प्रकार के समान आभूषण, औजार, और हथियार बनते हैं। इस तरह यह सभी प्रकार से समृद्ध देश है जैसा दुनिया में कोई नहीं।
1.6 इसमें सभी तरह की कलाओं में दक्षता रखने वाले कलाकार और कारीगर हैं।

इसके साथ ही उसने ऊंचे आदर्शों और नैतिक मूल्यों और सर्वोत्तम शासन व्यवस्था नागरिकों की सच्चरित्रता, विद्वानों के पांडित्य, उनकी दार्शनिक चिंतन पद्धति, उनके ज्योतिर्वैज्ञानिक पूर्वकथन नागरिकों के स्वाभिमान, डील-डौल और तेजस्विता की बातें की है जिनमें से अधिकांश को इतनी बार दोहराया जाता रहा है उसका उल्लेख करना समय का अपव्यय होगा।

हम यहां भारत देश महान है का राग अलापने के लिए ऊपर के विवरण नहीं दे रहे थे। हम केवल यह याद दिलाना चाहते हैं जिन ग्रीक लेखकों ने भारत के विषय में लिखा है उनमें से जो सूचना के मामले में मेगस्थनीज को सबसे सही मानते हैं, उन्होंने भी उसकी उसकी विश्वसनीयता को संदिग्ध कह कर दुष्प्रचारित किया है:
The ancient writers, whenever they judge of those who have written on Indian matters, are without doubt wont to reckon Megasthenese among those writers who are given to lying and least worthy of credit, and to rank him almost on a par with Ktesias.

क्यों? एक ओर वे यह मानते हैं भारत के विषय में उनकी जानकारी बहुत कम है, इस मामले में सबसे भरोसे की मेगास्थनीज है और इसके बावजूद वे अविश्वसनीय भी ठहराते हैं। जिस सिकंदर ने दारा को परास्त करके केवल उसके साम्राज्य को अपना बना कर विश्वविजेता होने का दावा किया था, उसके शौर्य और साहस पर गर्व करने वालों को भारत के समक्ष अपनी यह तौहीन बर्दाश्त नहीं थी। वे मेगास्थनीज को ही झूठा सिद्ध करके अपनी लाज बचा रहे थे।

वह स्वयं झूठ बोल रहे थे, पोरस से सिकंदर की पराजय को छुपाते हुए झूठा इतिहास गढ़ रहे थे। यह विवाद का विषय हो सकता है की जीत पोरस की हुई थी या सिकंदर की, परंतु यह तो सच है कि मगध के सैन्यबल का अनुमान करके विश्व विजेता भाग खड़ा हुआ था।

बात केवल ग्रीक इतिहासकारों और यूरोपीय लेखकों की होती तो समझी जा सकती थी। सचाई को लगातार बदलकर भारतीय इतिहासकार भी पेश करते रहे। अपने को उसके सामने नगण्य पाकर प्राचीन भारत के गौरव को मिटाने की जितनी दुराग्रह पूर्ण चेष्टा मिल में मिलती है , उतनी यूरोप के दूसरे किसी इतिहासकार में भी नहीं पाई जाती। और वही स्टुअर्ट मिल हमारे मार्क्सवादी इतिहासकारों का शलाका पुरुष बना रहा और वह उसके मॉडल को वैज्ञानिक इतिहास की कसौटी मानते रहे।
धिक् तान् च, तं च, कुप्रं च इमान् जनान् च।