निर्वासित
हँसते हुए कहता था ‘कहीं कोई गम नहीं!
लगता था उसके गम की कोई इन्तहा नहीं।
‘हम कितने खुश थे, देखिए, उस बाग में मगर
वह बाग कहीं होगा सिर्फ उसमें हम नहीं ।।’
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मर गए देखिए सितम वाले
नामलेवा तलक बचा न रहा।।
खिलजी, तुगलक कहीं ढूढ़े न मिले
लोदी गायब हैं, मुगल भी न रहा ।।