Post – 2019-01-26

समाज विभाजन

मेगास्थनीज ने भारतीय समाज के विषय में जो धारणा बनाई वह निम्न प्रकार है:
“समूचा भारतीय समाज सात वर्गों में विभाजित है। इनमें सबसे पहले उस समुदाय का स्थान है जो संख्या में सबसे कम है, परंतु सम्मान की दृष्टि से सबसे ऊपर हैं। यह है दार्शनिकों का समुदाय। दूसरे सभी इनसे नीचे माने जाते हैं। यह न तो किसी का मालिक है न किसी के अधीन। इनको कोई काम करने को नहीं कहा जा सकता। परंतु यजमान इनको जीवन काल में यज्ञ आदि के लिए और मरने के बाद अंत्येष्टि के निमित्त काम पर लगाते हैं और ये मृत व्यक्ति के परवर्ती संस्कार करते हैं, क्योंकि ऐसा विश्वास किया जाता है यह प्रेतों के विषय में अच्छी जानकारी रखते हैं। इन सेवाओं के लिए उनको प्रचुर दान दक्षिणा मिलती है। भारतीय जनों के लिए यह एक बहुत बड़ी सेवा यह करते हैं कि वर्ष के आरंभ में लोगों को इकट्ठा करके उनको अगले साल के अनावृष्टि और वृष्टि और हारी- बीमारी की जानकारी कराते हैं इसलिए सामान्य जनों से लेकर राजा तक आने वाली आपदाओं का मुकाबला करने की तैयारी कर लेते थे और अभाव के दिनों के लिए अपनी जरूरत का सामान जुटा कर रख लेते थे।”
The whole population of India is divided in seven castes, of which the first is formed by the collective body of philosophers which in point of number is inferior to other classes, but in point of dignity preempted over all. For the philosophers, being exempted from all public duties, are neither the masters nor the servants of others. They are, however, engaged by private persons to offer sacrifices due in lifetime, and celebrate the obsequies of the dead: for they are believed to be the most conversant with matters pertaining to the Hades. In requital of such services they receive valuable gifts and privileges. To the people of India at large they also render great benefits, when gathered together at the beginning of the year they forewarn the assembled multitudes about the droughts and wet weather, and also about propitious, winds and diseases, and other topics capable of profiting the hearers. Thus the people and sovereign learning beforehand what is to happen always make adequate provision against a coming deficiency.

यह मेगास्थनीज के लेखह का मैक्क्रिंडल द्वारा किया गया अनुवाद है जिसका अनुवाद हमने अपने ढंग से किया है। यहां हम दो बातों की ओर ध्यान दिलाना चाहेंगे। मैक्क्रिंडल ने अपने अनुवाद में सामाजिक विभाग के लिए कास्ट का प्रयोग किया है। यह दो कारणों से गलत है। कास्ट शब्द पुर्तगाली भाषा का है, मेगास्थनीज इसका प्रयोग नहीं कर सकता था।

दूसरे, मैक्क्रिंडल भारतीय समाज के वर्गीकरण को वर्ण-व्यवस्था के अभाव में समझ ही नहीं सकता था, क्योंकि उसके सामने साहित्य और शास्त्र था। हमारे सामने भी शास्त्रीय विधान होते हैं इसलिए हम भी नजर से काम नहीं लेते, शास्त्र लिखित को प्रमाण मानकर अपने को उसके अनुसार ढालने का प्रयत्न करते हैं। मेगस्थनीज के सामने शास्त्र नहीं था समाज था। वह उसे देख रहा था और समझने का प्रयत्न कर रहा था। प्रयत्न सराहनीय है इसके बावजूद जरूरी नहीं कि यह सटीक भी हो।

एक दूसरा पक्ष हमारे अपने विद्वानों की ज्ञान सीमा का है। हजारी प्रसाद द्विवेदी का मत है कि भारत ने फलित ज्योतिष का ज्ञान युनानियों से प्राप्त किया, जबकि यहां में जो साक्ष्य मिल रहा है वह एक यूनानी द्वारा है जो भारतीय ज्योतिष और वर्षफल को एक आश्चर्य के रूप में दर्द कर रहा है।

प्रसंगवश याद दिला दें कि द्विवेदी जी ने यवनिका शब्द के आधार पर यह नतीजा निकाला था कि नाटकों में पर्दे का प्रयोग यूनानी प्रभाव का द्योतक है, जबकि यूनानी रंगमंच खुले हुआ करते थे उनमें पर्दे का प्रयोग होता ही न था। इस पर हमने अन्यत्र अपना मत रखा है, इसलिए इसके विस्तार में नहीं जाएंगे।

उन्होंने अंग्रेजी आवर hour और ज्योतिष के होरा चक्र के बीच संबंध देखते हुए अपनी कल्पना से एक सत्य का आविष्कार कर दिया, जो लंगड़ा है। भोजपुरी में ‘होरहा’ अर्थ है सीधे आग पर भुना हुआ चने या मटर का गट्ठर से उसकी फली से होता है। ‘होलिका’ उस आदिम अवस्था का पर्व है जब मनुष्य पाक शास्त्र से अपरिचित था, पात्रों का विकास नहीं हुआ था, वह सीधे आग पर भूनकर, हथेली से मसल कर अनाज खाया करता था। आगे चलकर होला या होलिका कई चरणों के बाद, कथाओं, उपकथाओं मे लिपटकर रहस्य में हो गया। होलना- जलाना किस बोली से आया है यह हमें भी नहीं पता, परंतु होराचक्र का संबंध वर्ष चक्र से है जो फाल्गुनी पूर्णमासी या वार्त्रघ्नी पूर्णमासी है, और इसमें वृत्र का वध इस नाम के राक्षस का वध नहीं है, वर्ष चक्र का अंत है। वृत्र का अर्थ यहां वर्तन करने वाला, घूमने वाला है। यही होराचक्र है।
समाज के अन्य विभागों पर कल।