नहीं भूखा रहा जो दूसरों का पेट भरता है
मेगास्थनीज के अ्नुसार दूसरा वर्ग किसानों का है, जो संख्या में दूसरों की तुलना में बहुत अधिक है। इनको युद्ध करने या दूसरे सरकारी कामकाज में लगाए जाने से मुक्ति मिली रहती है, इसलिए ये अपनी पूरी शक्ति खेती पर लगाते हैं। कोई दुश्मन भी आक्रमण करते समय इस बात का ध्यान रखता है कि किसान को कोई असुविधा न होने पाए, क्योंकि इस वर्ग के लोगों को लोक हितकारी माना जाता है। इसलिए इस बात का ध्यान रखा जाता है इनको कोई खरोंच तक न आने पाए। इस तरह सभी दृष्टियों से निरापद होने के कारण यह बहुत अच्छी फसल पैदा करते हैं और यह भारत के निवासियों को मौज मस्ती के सारे जरूरी सामान प्रदान करते हैं।
किसान और उसकी पत्नी और बच्चे देहात में रहते हैं और ये नगर में आने से कतराते हैं। ये राजा को भूमि का लगान चुकाते हैं, क्योंकि पूरा भारत राजा की संपत्ति है। इस लगान के अतिरिक्त ये धरती की उपज का एक चौथाई राजकोष में देते हैं।
यहां मेगास्थनीज से कुछ भूल हुई लगती है। लगान उत्पाद का राजभाग या कर है। वह चौथाई था यह भी सच है। किसी भौगोलिक क्षेत्र की सभी तरह की संपदा राजा के अधिकार में आती है, क्योंकि वह सभी की रक्षा करता है। जिस संपदा पर किसी का निजी दावा नहीं है – जंगल, पहाड़, जलाशय — वह भी राजा की संपत्ति मानी जाती थी। यदि कोई व्यक्ति बिना किसी उत्तराधिकारी के मर जाए तो उसकी संपदा भी राजा की हो जाती थी। परंतु अपनी संपदा में वह जो वृद्धि करता था, वह सुरक्षा होने के कारण ही कर पाता था, इसलिए उसमें भी राजा का अंश होता था। इस नियम से उसके राज्य में बसने वाला प्रत्येक व्यक्ति जो कुछ अर्जित करता था उसमें राजा का भाग होता था। इसी के आधार पर राजा अपनी सत्ता कायम रखता था। इसी तर्क से राजा को जनभक्ष (सत्रासाहो जनभक्षो जनंसह श्च्यवनो युध्मो अनु जोषं उक्षितो ) कहा जाता था।
परंतु कृषिभूमि पर अधिकार उस व्यक्ति का है जिसने उसे साफ किया और समतल बनाया है। राजा अपनी पहल से भी जमीन की सफाई करा सकता था जिसे राजा की भूमि या सीता कहा जाता था। इस निजी भूमि पर ही दोनों प्रकार के कर लेता रहा हो सकता है, एक भूमि के बदले और दूसरा सुरक्षा के बदले।
हमारे लिए विशेष महत्व की सूचना यह है युद्ध के समय या सैनिकों के अभियान के समय इस बात का पूरा ध्यान रखा जाता था किसान को किसी तरह की सुविधा न होने पाए और उसकी संपत्ति पर कोई आंच न आने पाए। इस नियम का पालन शेरशाह सूरी भी करता था परंतु उससे आगे या पीछे का कोई दूसरा मध्यकालीन शासक इसका ध्यान नहीं रखता था।
जहां तक किसानों के उत्पीड़न और सुविधा का सवाल है औरंगजेब जिसकी धार्मिक क्रूरता के विषय में बहुत सी बातें सही है, परंतु उसके विषय में यह जानकर आश्चर्य होगा कि वह शाहजहां और जहांगीर से अधिक मानवीय शासक था। शेरशाह के बाद वह पहला शासक था जो इस बात का ध्यान रखता था कि किसानों को अधिक तकलीफ न होने पाए। इस बात का ध्यान मराठों ने भी नहीं रखा और इस दृष्टि से औरंगजेब मराठाें से अधिक मानवीय था। शाहजहां के शासन में जितने हिंदुओं को इस्लाम कबूल करने के लिए बाध्य किया गया, उतने हिंदुओं का धर्मांतरण औरंगजेब के कारण नहीं हुआ।
पहली बार, स्वतंत्र भारत में, किसान की कीमत पर औद्योगिक विकास पर इकहरा बल देने और किसानों में से कुछ को कर्जखोरी की आदत डालने से यह स्थिति पैदा की गई कि वह आत्महत्या कर रहा है। रोटी को लाले पड़ जाने पर मशीन का उत्पादन भी ठहर जाता है, रोटी मशीन और उसको चलाने वाले, दोनों पैदा करती है, इसे समझना होगा।
हमारा समाज वस्तुपूजक है, उपयोगी वस्तुओं का देवोपम सम्मान करने का आदी है। मेरे बचपन में किसान जमीन पर पड़े एक दाने को भी ‘अन्न ही ब्रह्म है’ वाली श्रद्धा से उठाकर माथे लगाता था। जिस समय का चित्र मेगास्थनीज ने प्रस्तुत किया है, उसमें किसान को भी समाज इसी तरह जमीन से उठाकर माथे लगाता था। प्राकृतिक विपर्यय का कोई निदान नहीं, पर अकाल कम पड़ते थे, क्योंकि लोग नई फसल का अनाज नहीं एक साल पहले का अनाज खाते थे और एक अनावृष्टि झेलने की ताकत रखते थे जो खत्म होकर हैंड टु माउथ वाली दशा तक आ पहुंची है।