Post – 2017-07-30

भारतीय र्माक्सवादी (2)

‘तुमको भविष्यत् पुराण के रचना काल के बारे में कुछ पता है?’

‘तुम पुराणों की दुनिया से बाहर कब निकलोगे? सड़ी गली चीजों के संपर्क में अधिक रहने वालों के शरीर, कपड़े यहां तक कि दिमाग तक से बू आने लगती है।’ उसने कल ही खीझ उतारते हुए मेरी खबर ली।

मैने हंसते हुए कहा, ‘यार, तुम्हारी सोहबत में आने के बाद यह तो जान ही चुका हूं। दूर ही रहता हूं। अगर लाचारी हुई तो नहाकर पुराण खोलता हूं कि कहीं तुम लोगों के संपर्क से आई बू पुराणों को दूषित न कर दे और पोथा बन्द करने के बाद फिर नहाना पड़ता है कि उस जमाने का असर मेरी आज की सोच पर न पड़ जाय। तभी तो तुमसे जानना चाहा। मैं यह नहीं समझ पा रहा हूं कि भविष्यत् पुराण लिखने वाले को कम्युनिस्टों के बारे में कैसे पता चल गया? सोचा तुम्हारी पार्टी का मामला है, पार्टी का इतिहास तलाशते हुए तुम लोगों में से किसी ने इस पर विचार किया होगा।’

वह भी हंसने लगा, ‘मामला क्या है?’

तुम जानते ही हो मेरे पास सभी पुराने ग्रंथों की ऐसी पांडुलिपियां हैं जो कहीं प्रकाशित ही नहीं हुईं। उन्हीं में भविष्यत् पुराण भी है। आज खोला तो देख कर हैरान रह गया। उसमें तीन श्लोक तुम लोगों के बारे में ही हैं।’ मैंने पढ़कर सुना दिया:

भविष्यन्ति कलौ घोरे उठापटकवादिन:
नाम्ना कम्युनिष्टा तु बुद्धिभ्रष्टाश्च भारते.
जल्पितं कल्पित यच्च यच्च सस्वर जम्भितं
मार्क्सेन ऐगिलेनेव लेनिनस्तालिनेव वा !
बकिष्यन्ति अनाड़त्वात् माओ आओ त्वरेण त्वं
रक्तस्नानविशुद्धाश्च भारते आत्मघातिनः !

‘कुछ भी कहो बुद्धिभ्रष्ट तो तुम र्माक्सवादियों को नहीं कह सकते उनकी भीड़ तो वहां मिलती है जिनकी तुम वकालत करते हो। तुम तो स्वयं मानते हो कि सारे बुद्धिजीवी वामपंथी हैं।’

‘मैं तो मानता ही हूं यार लेकिन पुराण की बात तो गलत हो नहीं सकती। देखो उसने बुद्धिहीन या बुद्धिनष्ट तो कहा नहीं। बुद्धिभ्रष्ट कहा। बुद्धि तो है, अपनी धुरी से खिसक गई हैं, न अपनी भाषा पर गर्व, न अपने देश का अभिमान, न इतिहास और समाज की जानकारी, न रीतिनीति की समझ, न कुर्सी से उतरने की चाह, गए इंगलैंड बैरिस्टरी सीखने अंग्रेजी र्माक्सवाद लेकर लौटे और उसका तोप की तरह इस्तेमाल करके देश पर कब्जा जमाने के लिए उतावले हो गए और इसके लिए किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार। यही है तुम्हारी जड़। जैसा बीज वैसा फल। भरतीय ब्राह्मणवाद की जगह अंग्रेजी ब्राह्मणवाद के उपासक। नवाबों की जीवन शैली और फटेहाल मजदूरों की पीड़ा का स्वांग। यही है तुम्हारा भारतीय कम्युनिज्म। पुराना ब्राह्मण कहता था हम शाप से भस्म कर देंगे, तुम मानते थे हम हम नारों से सत्ता को चूर चूर कर देंगें। गलत तो नहीं कहा मैंने?’