मन पछितइहैं अवसर बीते
“कल तो मोदी ने सचमुच बड़े कमाल का भाषण दिया यार, कहा, एकसौपचीस करोड़ लोगों में से किसी की भी देशभक्ति पर सवाल नहीं उठाया जा सकता न ही हर समय अपनी देशभक्ति का सबूत देने की आवश्यकता है। कहा, भारत जैसे विविधता वाले देश में बिखरने के कई बहाने हो सकते हैं, जुड़ने के अवसर कम होते हैं। हमारा दायित्व है कि हमें जुड़ने के अवसर खोजने चाहिए। कहा, यदि किसी के खिलाफ अत्याचार होता है तो यह समाज और देश के लिए कलंक है। हमें इस पीड़ा को महसूस करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि फिर ऐसा न हो। कहा कि देश सौहार्द के जरिए ही आगे बढ़ सकता है। कहा, समानता और स्नेह में काफी षक्ति होती है। कहा हमें एकता को मजबूत करने के लिए एक भारत, श्रेष्ठ भारत के विचार को बल देना चाहिए। कहा हमें कभी कभी पक्ष विपक्ष से पर उठ कर निष्पक्ष हो कर भी सोचना चाहिए।’’ अखबार उसके हाथ में था और वह खासे मजाकिया लहजे में मोदी के भाषण की वे पंक्तियाँ सुना रहा था जो कल उसने संसद में दी थी। भई कहो कुछ भी, पट्ठा सूक्तियाँ बहुत अच्छी गढ़ लेता है। कहीं तुम उसे चुपके से लिख कर तो नहीं दे आते।
“मेरे लिख कर देने की जरूरत नहीं है। वह मुझसे अधिक अनुभवी और सूझ बूझ का आदमी है. अधिक योग्य अधिक ऊंचे सपने देखने वाला. जो सत्य की साधना करता है उसी के विचार में इतनी स्पष्टता होती है कि वह मणिभाकार हो कर सूक्तियों का रूप ले सके।”
“छोड़ यार, मक्खन वैसे भी देश में कम पैदा हो रहा है। यह क्यों नहीं देखता कि उसे राज्यसमा में अपना बिल पास कराने के लिए विपक्ष का समर्थन चाहिए और वह उसका रवैया नरम करने के लिए मस्का लगा रहा था।”
मैं चिढ़ गया, ‘‘साँभर झील में हाथी घुस जाय तो वह भी नकम का हाथी बन जाता है, सुना है न। यदि तुम्हारा चित्त ही विकृत है तो उसमें सही अर्थ आ कैसे सकता है।”
वह अड़ा रहा, ‘‘मैंने कुछ गलत कहा क्या?’’
‘‘इस आदमी ने आज तक कुछ भी ऐसा कहा है जिसकी भावना इसके विपरीत रही हो। मैं अधिक नहीं जानता, पिछले तीन सालों के बीच जब से उसकी आवाज कान में पड़ने लगी तब से। अभी कल तक शोर मचा रहे थे मोदी कुछ बोलता क्यों नहीं, और बोला तो इबारत समझ में ही नहीं आ रही। इतनी साफ सुथरी जबान होते हुए भी। तुम लोग लाइलाज ही नहीं हो खुद बीमारी हो।’’
वह ठठाकर हँसा, ‘‘अरे भाई, बीमारी कह कर कहीं हमारा सफाया न करा देना। टोटल एलिमिनेशन, पार्टी तो वही नाजियों वाली है।’’
मैंने सिर पीट लिया, ‘‘तुम से बात करना ही बेकार है।’’
उस पर कोई असर नहीं पड़ा, मजा लेते हुए बोला, ‘‘अभी मैं फेस बुक पर हरबंस मुखिया की टाइमलाइन पर नजर डाल रहा था, इसमें एक चित्र था जिसमें एक चित्र था जिसमें विजयदशमी के अवसर पर संघ के शस्त्रपूजा का एक चित्र : संघ के स्वयंसेवको के गणवेष में कुछ बोलते हुए एक ओर को खिचे हाथों का स्टिल था, और नीचे प्रोफ. इरफान के अलीगढ़ में दिए किसी भाषण का कैप्शन था जिसमें कहा गया था कि आइ एास आई और संध दोनों एक जैसे हैं।
No doubt that, in its narrative, ISIS is the most violent form of Islam. But the RSS worships firearms. Why would any peace-loving organisation on earth worship “firearms”? There have been instances of violence where RSS activists have been allegedly involved. Who killed Mahatma Gandhi is no matter of guesswork.
“इस पर तुम क्या कहोगे ?”
“अगर मेरा भी इरादा कौमी नफरत फैला कर देश को हर तरह की गंदगी और फसाद से भरने का होता और मैं भी सेकुलरिज्म के नाम पर जहर फैलाना पसन्द करता, उतना ही गैर जिम्मेदार होता जितने ये रहे हैं, तो मैं पूछता कि इस देश को बाँटने का खेल कौन खेलता रहा है और आज भी जब मोदी सबको आश्वस्त करते हुए, एक महान राष्ट्र का सपना ले कर सबको साथ जोड़ने का काम कर रहे हैं तो इनमें तिलमिलाहट क्यों है।
“आरोप लगाता कि प्रो. इरफान मुस्लिम आतंकवाद के समर्थक रहे हैं, इसी योजना के तहत वह इतिहास लिखवाया गया जिसमें प्राचीन भारत का कुत्सित चित्रण करने के हर तरह के प्रयत्न किए गए और प्राइमरी स्तर तक के बच्चो बच्चियों के मन में आत्मधृणा और अपमानबोध भरने का प्रयत्न एन सी ई आर टी की बालपोथियों से किया गया और यही उच्चतम स्तर तक पढ़ाया जाता रहा, कहता कि आज जब सारी दुनिया आइ एस आई के पैशाचिक चेहरे को देख कर आतंकित अनुभव कर रही है प्रो. इरफान उसी अलागढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी के छात्रों को रैडिकल बनाने और आइ एस आई में भर्ती होने के लिए उकसा रहे हैं, जहां हिंदुस्तान के नक़्शे को बदलने और तोड़ने के फैसले किये गए थे, परन्तु ऐसा कहूँगा नहीं। क्योकि यदि यह सच भी हो तो इसकी चिन्ता मुझे नहीं कानून व्यवस्था संभालने वाले अधिकारियों और संस्थाओं को करनी है। और इसलिए भी नहीं, कि इस तरह की चर्चाओं से उनके सामाजिक माहौल को बिगाड़ने के खेल में परोक्ष हम भी शामिल हो जाते हैं।
उसके चेहरे पर पहली बार हवाइयाँ उड़ती दिखाई दीं। उससे कुछ बोलते न बना।
मैंने आगे कहा, ‘‘तुम इस सन्दर्भ में सोचो। मोदी का ऐतिहासिक महत्व क्या है। आज तक लगातार हमारे देश को तोड़ कर अपनी राजनीति करने वाले और अपना घर भरने वाले नेता मिले और देश को उन्होंने वहाँ पहुँचा दिया जहा रोज हत्या और बलात्कार की कहानियाँ मुख्य समाचार बन गई हैं, और देश की क्या दशा है किसी को पता ही नहीं चलने पाता। मैं मोदी को इसीलिए इतिहास पुरुष कहता हूँं। इसे एक अवसर कहता हूँ जिसे हाथ से जाने नहीं देना चाहिए। उस आदमी को काम करने देना चाहिए। इसलिए जिन इबारतों को अखबार से तुम व्यंग में सुना रहे थे उनका तब तक सोते जागते पाठ करो जब तक तुम्हारे भीतर की मलिनता धुल नहीं जाती।“