Post – 2018-05-03

अन्न और धन के कुछ और शब्द
(यह लेखमाला शोध ग्रन्थ का हिस्सा है। जिनकी इसमें रुचि हो वे ही इसे पढ़े। वह संख्या
दो चार भी हो या बिल्कुल न हो तो इससे मुझे फर्क न पड़ेगा। मैत्री निभाने के लिए लाइक न करें।)

इष

इष के विषय में हम पहले भी प्रासंगिक रूप में कुछ कह आए हैं।. इष किसी पतले छेद से पानी झटके से निकलने की ध्वनि है , यह गन्ने जैसे रसीले डंठल को कूटने से निकली रस की धार भी हो सकती है इसका प्रयोग सोमरस के लिए हुआ है. प्रायः इस के साथ ऊर्ज अर्थात शक्तिदायक विशेषण का भी प्रयोग हुआ है (इषमूर्जं सुक्षितिं सुम्नमश्युः, 2.19.8; ) इसे सामान्य धन का भी द्योतक माना गया है(इषं दधानो वहमानो अश्वैरा स द्युमाँ अमवान्भूषति द्यून्,10.11.7) . सायणाचार्य ने विभिन्न स्थानों पर इसके लिए निम्न प्रकार अर्थ किए हैं ( इषः – अन्नानि, 1.9.8; गच्छन्तः, 1.56.2 ; इष्यमाणानि1.130.3; इष्यमाणा – वृष्टीः; 6.60.12; इषः पती-अन्नस्य पती, 5.68.5; इषः वास्तु – अन्नस्य निवासस्थानं, अर्थात् अन्नागार, 8.25.5; इषयन्तं – अन्नं कुर्वन्तं, 6.1.8; आयुधानि प्रेरयन्, 6.18.5; इषयन्त -गमयन्ति, 2.2.11; इषयन्तीः – कुल्यादिद्वारा अन्नं कुर्वन्तीः, 3.33.12; इषा – पृथिव्यामुप्तेन यवादिधान्यरूपेणान्नेन, 1.112.18 ; इषां (1.181.1) इष्यमाणानामन्नानां

ऊर्ज

इर/ईर की ही तरह उर/ऊर भी मूलतः जल की ध्वनि, जल, गति, व्याप्ति, अन्न, ऊर्जा आदि होना चाहिए. इसे ऊर्मिः (- प्रेरकः, 2.16.5) और तरंग,(8.14.10) तथा ऊर्मिम्- (अर्तेरिदं रूपं गमनयोग्यं, 7.47.4) सा समझा जा सकता है।, रोचक बात यह है कि जिस तरह उर् का प्रयोग आच्छादन के लिए हुआ है उसी तरह है ऊर्मि का प्रयोग रात्रि के लिए हुआ है। (ऊर्म्या – रात्रौ, 1.184).और जलवाची शब्दों का प्रयोग जिस तरह समूहवाचक संज्ञाओं के लिए हुआ है उसी तरह ऊर्व काः (ऊर्वं – समूहं, 5.29.12; 6.17.1, ऊर्वात् – महतोन्तरिक्षात, 5.45.2; ऊर्वान् महतः प्राणिनिकायान पर्वतान्, 2.13.7). अतः ऊर्ज का अर्थ जल होना अपनी तार्किक संगति में है : (ऊर्जः – अन्नानि, 2.11.1).

क्षु

चप्, चुप्, क्षुप़् छुप छिछले पानी में पाँव आदि पडने से उत्पन्न ध्वनि है और इसलिए जल का एक नाम क्षु पड़ा और इस क्रम में चिपकने वाली छोटी बूंदों के लिए संभवत क्षुद्र का प्रयोग हुआ और फिर या दूसरी छोटी चीजों के लिए प्रयोग में आने लगा। अव स्रवेदघशंसोऽवतरमव क्षुद्रमिव स्रवेत्, 1.129.6 मैं सायणाचार्य ने क्षुद्रमिव की व्याख्या करते हुए इसे पानी के छींटे जैसा “क्षेप्तुम योग्यम उदकं इव” कहा है। ऋग्वेद में क्षु का प्रयोग उत्कृष्ट खाद्य पदार्थों के लिए हुआ लगता है (त्वं वाजस्य क्षुमतो राय ईशिषे, 2.1.10; क्षुमन्तं वाजं स्वपत्यं रयिं दाः, 2.4.8; कृधि क्षुमन्तं जरितारमग्ने कृधि पतिं स्वपत्यस्य रायः ।। 2.9.5 )। इस क्षु से ही क्षुधा या बुभुक्षा की उत्पत्ति हुई है। सायण ने क्षुमति का अर्थ 4.2.18 में अन्नवत्याढ्यगृहे अन्न से भरपूर किया है।

चन
से हमारा परिचय एक ओर तो चणक से है जिससे किसी रहस्यमय सूत्र से चाणक्य का नाम जुड़ा है, अर्थ जल था। ऋग्वेद में इसका प्रयोग अन्न के आशय में ही हुआ है पर साथ ही अव्यय के रूप में भी इसका प्रयोग अनेक बार देखने में आता है (नहि स्म ते शतं चन राधो वरन्त आमुरः, 4.31.9; दुर्गे चन ध्रियते विश्व आ पुरु जनो योऽस्य तविषीमचुक्रुधत् , 5.34.7; न रिष्येम कदा चन, 6।.54.9; नेन्द्रादृते पवते धाम किं चन, 9.69.6। अन्न के रूप मे चनः – हविर्लक्षणमन्नं, 1.3.6; अन्नं,1.107.3; 2.31.6; 7.38.3)

ज्रय
ज्रयांसि –अन्नानि, (5.8.7) (6.6.6) ‘ज्रयतिर्गतिकमा’, गन्तव्यानि स्थानानि; (8.2.33) । इससे प्रकट है, इसका प्रयोग भी जल के लिए होता था।

Post – 2018-05-03

यशो वै सः

आप ठीक कहते है, सही पाठ ‘रसो वै सः ‘ ही है। पर एक स्थल पर मैंने पढ़ा, पहले उसके सिवा और कुछ था ही नहीं । बेचारा अकेला था। उसके जी में आया वह अपना जनन करे। इसके लिए उसने श्रम किया, तप किया और फिर जब थका कर निढाल हो गया तो पसीना पसीना हो गया अर्थात् उससे जल पैदा हुआ । ‘पजापतिर्वा इदं अग्र आसीत्। एक एव सो अकामयत स्वां प्रजाय इति सो अश्राम्यत् स तपो अतप्यत तस्मात् श्रान्तः तेपानात् आपो असृज्यन्त… ।’ शतपथ ब्रा. 6.1.3.1

सः

/ ‘ > < ? * तस्माद्देवा अग्निमुखा अन्नं अदन्ति, ....तद्देवा अन्नमकुर्वत । शब.7.1.2.4 द्वयं वाचो रूपं, दैवं च मानुषं च, उच्चैश्च शनैशच तदेते द्वे । शब. 7.1.2.18 यशस्वतीः (1.79.1) अन्नवती, 0वय (1.83.4) हविर्लक्षणमन्नं, ;(1.104.7) अन्नं, (2.20.1) वयः शोभनलक्षणमन्नं, वयसः (8.48.1) अन्नस्य, वयसा (2.33.6) अन्नेन, ;(6.36.5) हविर्लक्षणेन, वयोधाः (6.75.9) अन्नस्यदातार, 0वरिवःविदं (2.41.9) अन्नस्य लम्भकं, (4.55.1) धनं, वरिवस्कृत् (8.16.6) धनस्य कर्ता, 0वर्चः (3.8.3; 3.24.1) अन्नं, वर्चसा (1.23.23) तेजसा, वाजः (2.1.12) (6.26.1) अन्नं, वाजदा (3.36.5) अन्नप्रदा, 0वाजपस्त्यः (6.58.2) अन्नानि गृहे यस्य तादृशः, वाजयन्तः (4.17.16) अन्नमिच्छन्तः, (4.25.8) वाजमन्नमिच्छन्, (4.42.5) संग्राममिच्छन्तः, (5.4.1) अन्नमिच्छन्तो वाजयन्तं (5.31.1) अन्नमिच्छन्तं, (7.90.7) बलमात्मन इच्छन्तः, वाजययन्तं (5.35.7) संग्रामं धनं वा इच्छन्तः, वाजसातमं (1.78.3) अन्नानां अतिशयं दातारं, (5.20.1) ं, वाजसातमं (1.78.3) अन्नानां अतिशयं दातारं, (5.20.1) ं, वाजी (7.1.14) वाजवान् अन्नवान्, (2.10.1) बलवान्, (5.1.4) वेजनवानग्निः, (7.34.1) वेगवान, विष्वधायसं (2.17.5) विष्वस्य धात्रीं (पृथिवीं), (5.8.1) बहुअन्नं, (7.4.5) विष्वस्य धारकं, विष्वधाया (3.55.21) सर्वान्नो, श्रवः (1.9.7) धनं, (1.9.8) कीर्ति, (3.53.15) अन्नं, श्रवसे (1.113.6) अन्नार्थ, 0श्रवस्यानि (1.100.5) अन्नानि उदकानि, 0सनानि (1.95.10) अन्नानि, सनिं (1.18.6) धनस्यदातारं, ससवान् (6.44.7) ससमिति अन्ननाम, अन्नवान, (7.87.2) अन्नवान्, स्वधा (1.144.2) अमृतोपम अपः, स्वधां (1.88.6) अन्नं; (2.35.7) वृष्टि उदकं, स्वधापते (6.44.1) अन्नस्य पालकः, स्वधाभिः (1.113.12) आत्मीयैः तेजोभिः, (7.35.3) अन्नैः, (7.104.9) बलैर्युक्ता, (8.10.4) बलहेतुभिः स्तुतिभिः, इल जीमपत ळवकीमंक स्वधावः (1.147.1) अन्नयुक्तः, (3.35.3) अत्यन्त अन्नयुक्त, (6.21.3) बलवन्, (7.86.4) तेजस्विन्, स्वधावन् (5.3.2) अन्नवन्, स्वधां (1.88.6) अन्नं; (2.35.7) वृष्टि उदकं, स्वधापते (6.44.1) अन्नस्य पालकः, स्वधाभिः (1.113.12) आत्मीयैः तेजोभिः, (7.35.3) अन्नैः, (7.104.9) बलैर्युक्ता, (8.10.4) बलहेतुभिः स्तुतिभिः, इल जीमपत ळवकीमंक स्वधावः (1.147.1) अन्नयुक्तः, (3.35.3) अत्यन्त अन्नयुक्त, (6.21.3) बलवन्, (7.86.4) तेजस्विन्, 0स्वधावन् (5.3.2) अन्नवन्, स्वावसुः (5.44.7) स्वायत्त धनं, 0अधिभोजना (6.47.23) भोजनमिति धनं अधिकं धन,

Post – 2018-05-03

यशो वै सः

आप ठीक कहते है, सही पाठ ‘रसो वै सः ‘ ही है। पर एक स्थल पर मैंने पढ़ा, पहले उसके सिवा और कुछ था ही नहीं । बेचारा अकेला था। उसके जी में आया वह अपना जनन करे। इसके लिए उसने श्रम किया, तप किया और फिर जब थका कर निढाल हो गया तो पसीना पसीना हो गया अर्थात् उससे जल पैदा हुआ । ‘पजापतिर्वा इदं अग्र आसीत्। एक एव सो अकामयत स्वां प्रजाय इति सो अश्राम्यत् स तपो अतप्यत तस्मात् श्रान्तः तेपानात् आपो असृज्यन्त… ।’ शतपथ ब्रा. 6.1.3.1

सः

/ ‘ > < ? * तस्माद्देवा अग्निमुखा अन्नं अदन्ति, ....तद्देवा अन्नमकुर्वत । शब.7.1.2.4 द्वयं वाचो रूपं, दैवं च मानुषं च, उच्चैश्च शनैशच तदेते द्वे । शब. 7.1.2.18 यशस्वतीः (1.79.1) अन्नवती, 0वय (1.83.4) हविर्लक्षणमन्नं, ;(1.104.7) अन्नं, (2.20.1) वयः शोभनलक्षणमन्नं, वयसः (8.48.1) अन्नस्य, वयसा (2.33.6) अन्नेन, ;(6.36.5) हविर्लक्षणेन, वयोधाः (6.75.9) अन्नस्यदातार, 0वरिवःविदं (2.41.9) अन्नस्य लम्भकं, (4.55.1) धनं, वरिवस्कृत् (8.16.6) धनस्य कर्ता, 0वर्चः (3.8.3; 3.24.1) अन्नं, वर्चसा (1.23.23) तेजसा, वाजः (2.1.12) (6.26.1) अन्नं, वाजदा (3.36.5) अन्नप्रदा, 0वाजपस्त्यः (6.58.2) अन्नानि गृहे यस्य तादृशः, वाजयन्तः (4.17.16) अन्नमिच्छन्तः, (4.25.8) वाजमन्नमिच्छन्, (4.42.5) संग्राममिच्छन्तः, (5.4.1) अन्नमिच्छन्तो वाजयन्तं (5.31.1) अन्नमिच्छन्तं, (7.90.7) बलमात्मन इच्छन्तः, वाजययन्तं (5.35.7) संग्रामं धनं वा इच्छन्तः, वाजसातमं (1.78.3) अन्नानां अतिशयं दातारं, (5.20.1) ं, वाजसातमं (1.78.3) अन्नानां अतिशयं दातारं, (5.20.1) ं, वाजी (7.1.14) वाजवान् अन्नवान्, (2.10.1) बलवान्, (5.1.4) वेजनवानग्निः, (7.34.1) वेगवान, विष्वधायसं (2.17.5) विष्वस्य धात्रीं (पृथिवीं), (5.8.1) बहुअन्नं, (7.4.5) विष्वस्य धारकं, विष्वधाया (3.55.21) सर्वान्नो, श्रवः (1.9.7) धनं, (1.9.8) कीर्ति, (3.53.15) अन्नं, श्रवसे (1.113.6) अन्नार्थ, 0श्रवस्यानि (1.100.5) अन्नानि उदकानि, 0सनानि (1.95.10) अन्नानि, सनिं (1.18.6) धनस्यदातारं, ससवान् (6.44.7) ससमिति अन्ननाम, अन्नवान, (7.87.2) अन्नवान्, स्वधा (1.144.2) अमृतोपम अपः, स्वधां (1.88.6) अन्नं; (2.35.7) वृष्टि उदकं, स्वधापते (6.44.1) अन्नस्य पालकः, स्वधाभिः (1.113.12) आत्मीयैः तेजोभिः, (7.35.3) अन्नैः, (7.104.9) बलैर्युक्ता, (8.10.4) बलहेतुभिः स्तुतिभिः, इल जीमपत ळवकीमंक स्वधावः (1.147.1) अन्नयुक्तः, (3.35.3) अत्यन्त अन्नयुक्त, (6.21.3) बलवन्, (7.86.4) तेजस्विन्, स्वधावन् (5.3.2) अन्नवन्, स्वधां (1.88.6) अन्नं; (2.35.7) वृष्टि उदकं, स्वधापते (6.44.1) अन्नस्य पालकः, स्वधाभिः (1.113.12) आत्मीयैः तेजोभिः, (7.35.3) अन्नैः, (7.104.9) बलैर्युक्ता, (8.10.4) बलहेतुभिः स्तुतिभिः, इल जीमपत ळवकीमंक स्वधावः (1.147.1) अन्नयुक्तः, (3.35.3) अत्यन्त अन्नयुक्त, (6.21.3) बलवन्, (7.86.4) तेजस्विन्, 0स्वधावन् (5.3.2) अन्नवन्, स्वावसुः (5.44.7) स्वायत्त धनं, 0अधिभोजना (6.47.23) भोजनमिति धनं अधिकं धन,

Post – 2018-05-03

यशो वै सः

आप ठीक कहते है, सही पाठ ‘रसो वै सः ‘ ही है। पर एक स्थल पर मैंने पढ़ा, पहले उसके सिवा और कुछ था ही नहीं । बेचारा अकेला था। उसके जी में आया वह अपना जनन करे। इसके लिए उसने श्रम किया, तप किया और फिर जब थका कर निढाल हो गया तो पसीना पसीना हो गया अर्थात् उससे जल पैदा हुआ । ‘पजापतिर्वा इदं अग्र आसीत्। एक एव सो अकामयत स्वां प्रजाय इति सो अश्राम्यत् स तपो अतप्यत तस्मात् श्रान्तः तेपानात् आपो असृज्यन्त… ।’ शतपथ ब्रा. 6.1.3.1

सः

/ ‘ > < ? * तस्माद्देवा अग्निमुखा अन्नं अदन्ति, ....तद्देवा अन्नमकुर्वत । शब.7.1.2.4 द्वयं वाचो रूपं, दैवं च मानुषं च, उच्चैश्च शनैशच तदेते द्वे । शब. 7.1.2.18 यशस्वतीः (1.79.1) अन्नवती, 0वय (1.83.4) हविर्लक्षणमन्नं, ;(1.104.7) अन्नं, (2.20.1) वयः शोभनलक्षणमन्नं, वयसः (8.48.1) अन्नस्य, वयसा (2.33.6) अन्नेन, ;(6.36.5) हविर्लक्षणेन, वयोधाः (6.75.9) अन्नस्यदातार, 0वरिवःविदं (2.41.9) अन्नस्य लम्भकं, (4.55.1) धनं, वरिवस्कृत् (8.16.6) धनस्य कर्ता, 0वर्चः (3.8.3; 3.24.1) अन्नं, वर्चसा (1.23.23) तेजसा, वाजः (2.1.12) (6.26.1) अन्नं, वाजदा (3.36.5) अन्नप्रदा, 0वाजपस्त्यः (6.58.2) अन्नानि गृहे यस्य तादृशः, वाजयन्तः (4.17.16) अन्नमिच्छन्तः, (4.25.8) वाजमन्नमिच्छन्, (4.42.5) संग्राममिच्छन्तः, (5.4.1) अन्नमिच्छन्तो वाजयन्तं (5.31.1) अन्नमिच्छन्तं, (7.90.7) बलमात्मन इच्छन्तः, वाजययन्तं (5.35.7) संग्रामं धनं वा इच्छन्तः, वाजसातमं (1.78.3) अन्नानां अतिशयं दातारं, (5.20.1) ं, वाजसातमं (1.78.3) अन्नानां अतिशयं दातारं, (5.20.1) ं, वाजी (7.1.14) वाजवान् अन्नवान्, (2.10.1) बलवान्, (5.1.4) वेजनवानग्निः, (7.34.1) वेगवान, विष्वधायसं (2.17.5) विष्वस्य धात्रीं (पृथिवीं), (5.8.1) बहुअन्नं, (7.4.5) विष्वस्य धारकं, विष्वधाया (3.55.21) सर्वान्नो, श्रवः (1.9.7) धनं, (1.9.8) कीर्ति, (3.53.15) अन्नं, श्रवसे (1.113.6) अन्नार्थ, 0श्रवस्यानि (1.100.5) अन्नानि उदकानि, 0सनानि (1.95.10) अन्नानि, सनिं (1.18.6) धनस्यदातारं, ससवान् (6.44.7) ससमिति अन्ननाम, अन्नवान, (7.87.2) अन्नवान्, स्वधा (1.144.2) अमृतोपम अपः, स्वधां (1.88.6) अन्नं; (2.35.7) वृष्टि उदकं, स्वधापते (6.44.1) अन्नस्य पालकः, स्वधाभिः (1.113.12) आत्मीयैः तेजोभिः, (7.35.3) अन्नैः, (7.104.9) बलैर्युक्ता, (8.10.4) बलहेतुभिः स्तुतिभिः, इल जीमपत ळवकीमंक स्वधावः (1.147.1) अन्नयुक्तः, (3.35.3) अत्यन्त अन्नयुक्त, (6.21.3) बलवन्, (7.86.4) तेजस्विन्, स्वधावन् (5.3.2) अन्नवन्, स्वधां (1.88.6) अन्नं; (2.35.7) वृष्टि उदकं, स्वधापते (6.44.1) अन्नस्य पालकः, स्वधाभिः (1.113.12) आत्मीयैः तेजोभिः, (7.35.3) अन्नैः, (7.104.9) बलैर्युक्ता, (8.10.4) बलहेतुभिः स्तुतिभिः, इल जीमपत ळवकीमंक स्वधावः (1.147.1) अन्नयुक्तः, (3.35.3) अत्यन्त अन्नयुक्त, (6.21.3) बलवन्, (7.86.4) तेजस्विन्, 0स्वधावन् (5.3.2) अन्नवन्, स्वावसुः (5.44.7) स्वायत्त धनं, 0अधिभोजना (6.47.23) भोजनमिति धनं अधिकं धन,

Post – 2018-05-02

अजीतकुमार ने विशवसनीयता पर मेरी तीन दिन पहले की पोस्ट पर अपनी लंबी टिप्पणी अभी अभी भेजी है। इससे अन्य पाठक लाभान्वित हो सकें इसलिए उसे यहां पेस्ट कर रहा हूँ:

Ajeet Kumar मोदी सरकार ने सचमुच कुछ अच्छे फैसले लिए हैं जिसके दूरगामी लाभ दिखने तय हैं। लेकिन राजनीति के वर्तमान तौर-तरीकों में से कुछ अपवित्र तरीके अपनाने और फैलाने में भाजपा भी पीछे नहीं है।
1.जब अमित शाह बिहार के सीवान, छपड़ा में जाकर मंच से नारा देते हैं कि – यहाँ भाजपा हारी तो पाकिस्तान में दीवाली मनेगी और इसपर उन्हें निर्वाचन आयोग की नोटिस भी मिल जाती है, इसे क्या कहा जायेगा?
2.राजनैतिक तरीके से व्यवस्थित विरोध के बदले मोदी जी का “कांग्रेस मुक्त भारत” वाला नारा किसी फतवे से कम है क्या?
3.आये दिन भाजपाई मुख्यमंत्री तथा उप मुख्यमंत्री जब चिल्लाते हैं कि- “कोई माई का लाल आरक्षण नहीं खत्म कर सकता।” तो यहाँ पर मैं कह रहा हूँ कि संवैधानिक पदों पर बैठे भाजपाईयों का यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा है।
4.जब तथाकथित “मोदी युग” में भी मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला बदस्तूर जारी है,गवाहों के लाश भी नहीं मिलते,तो फिर मुक्त कंठ से प्रशंसा किस बात हेतु?
5.हजारों करोड़ के घोटालेबाज जो कुछ दिनों पहले तक सभाओं में मोदी जी के गिर्द मंडराते दिखें और पर्दाफाश होने पर वे लंदन में मिले,तो फिर स्वघोषित चौकीदारी कहाँ चली गयी थी?
6.”अभी से जिनके पास काले धन हैं(अर्थजगत के धाँसू विशेषज्ञों के अनुसार उस समय भारत में प्रचलित मुद्रा के करीब-करीब 40% समानांतर अर्थवयवस्था के रूप में मौजूद रहे थे,और उसी को निष्क्रिय करने हेतु ही नोटबंदी भी की गई थी) वे कागज के रद्दी टुकड़े हो जायेंगे।” फिर 99% खड़े सोने जैसे 99% कागजी नोट भारतीय रिजर्व बैंक के पास विपक्षी दलों ने पहुंचा दिए क्या?यह समानांतर अर्थवयवस्था मूल अर्थवयवस्था में कैसे समायोजित हो गयी……काला धन कहाँ फुर्र हो गया?

और जहाँ तक बात बुद्धिजीवी वर्ग को कोसने की है तो लीजिये भाजपा के एक प्रतिष्ठित संवैधानिक पद पर गत परसों ही बैठे असली नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण ‘पवित्र विचारों वाले’ एक खास बुद्धिजीवी का संबोधन – “कठुआ कांड मामूली घटना है।यह एक छोटी घटना है, जिसे बहुत ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए।”- कवीन्द्र गुप्ता (डिप्टी सीएम, जम्मू-कश्मीर)

इसमें इससे दूनी शिकायतें मै अपनी ओर से जोड़ सकता हूं, पर सवाल फिर भी वही है कि इतनी कमियों के होते हुए भी:
1. विपक्ष सीधी लड़ाई क्यों नहीं लड़ पाता?
2. यह क्यों मान बैठा है कि कोई विपक्षी दल अभी मोदी नीत भाजपा को नहीं हरा सकता?
3. कि सभी गठजोड़ के बाद भी सीधी चुनौती नहीं दे सकते, गर्हित त तरीके अपनाने ही होंगे?
4. इसके बाद भी वह अपनी विजय के प्रति शंकित कयों है?
5. मोदी का अन्त करने के लिए नित उठ लोढ़ा लुढ़काने और उन दलों से जुड़ाव या सहानुभूति रखने वाले बुद्धिबली इस कारुणिक स्थिति का मार्मिक विशलेषण क्यों नहीं कर पाते, यहां तक कि इसका साहस तक क्यों नहीं जुटा पाते,?और अन्ततः
6. यदि बिल्लियों के भाग से छीका टूट ही गया तो अपनी अपनी बोटी की लालसा को नियंक्त्रित करके हड़िया को संभाल भी पाएंगे?

Post – 2018-05-02

अजीतकुमार ने विशवसनीयता पर मेरी तीन दिन पहले की पोस्ट पर अपनी लंबी टिप्पणी अभी अभी भेजी है। इससे अन्य पाठक लाभान्वित हो सकें इसलिए उसे यहां पेस्ट कर रहा हूँ:

Ajeet Kumar मोदी सरकार ने सचमुच कुछ अच्छे फैसले लिए हैं जिसके दूरगामी लाभ दिखने तय हैं। लेकिन राजनीति के वर्तमान तौर-तरीकों में से कुछ अपवित्र तरीके अपनाने और फैलाने में भाजपा भी पीछे नहीं है।
1.जब अमित शाह बिहार के सीवान, छपड़ा में जाकर मंच से नारा देते हैं कि – यहाँ भाजपा हारी तो पाकिस्तान में दीवाली मनेगी और इसपर उन्हें निर्वाचन आयोग की नोटिस भी मिल जाती है, इसे क्या कहा जायेगा?
2.राजनैतिक तरीके से व्यवस्थित विरोध के बदले मोदी जी का “कांग्रेस मुक्त भारत” वाला नारा किसी फतवे से कम है क्या?
3.आये दिन भाजपाई मुख्यमंत्री तथा उप मुख्यमंत्री जब चिल्लाते हैं कि- “कोई माई का लाल आरक्षण नहीं खत्म कर सकता।” तो यहाँ पर मैं कह रहा हूँ कि संवैधानिक पदों पर बैठे भाजपाईयों का यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा है।
4.जब तथाकथित “मोदी युग” में भी मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला बदस्तूर जारी है,गवाहों के लाश भी नहीं मिलते,तो फिर मुक्त कंठ से प्रशंसा किस बात हेतु?
5.हजारों करोड़ के घोटालेबाज जो कुछ दिनों पहले तक सभाओं में मोदी जी के गिर्द मंडराते दिखें और पर्दाफाश होने पर वे लंदन में मिले,तो फिर स्वघोषित चौकीदारी कहाँ चली गयी थी?
6.”अभी से जिनके पास काले धन हैं(अर्थजगत के धाँसू विशेषज्ञों के अनुसार उस समय भारत में प्रचलित मुद्रा के करीब-करीब 40% समानांतर अर्थवयवस्था के रूप में मौजूद रहे थे,और उसी को निष्क्रिय करने हेतु ही नोटबंदी भी की गई थी) वे कागज के रद्दी टुकड़े हो जायेंगे।” फिर 99% खड़े सोने जैसे 99% कागजी नोट भारतीय रिजर्व बैंक के पास विपक्षी दलों ने पहुंचा दिए क्या?यह समानांतर अर्थवयवस्था मूल अर्थवयवस्था में कैसे समायोजित हो गयी……काला धन कहाँ फुर्र हो गया?

और जहाँ तक बात बुद्धिजीवी वर्ग को कोसने की है तो लीजिये भाजपा के एक प्रतिष्ठित संवैधानिक पद पर गत परसों ही बैठे असली नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण ‘पवित्र विचारों वाले’ एक खास बुद्धिजीवी का संबोधन – “कठुआ कांड मामूली घटना है।यह एक छोटी घटना है, जिसे बहुत ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए।”- कवीन्द्र गुप्ता (डिप्टी सीएम, जम्मू-कश्मीर)

इसमें इससे दूनी शिकायतें मै अपनी ओर से जोड़ सकता हूं, पर सवाल फिर भी वही है कि इतनी कमियों के होते हुए भी:
1. विपक्ष सीधी लड़ाई क्यों नहीं लड़ पाता?
2. यह क्यों मान बैठा है कि कोई विपक्षी दल अभी मोदी नीत भाजपा को नहीं हरा सकता?
3. कि सभी गठजोड़ के बाद भी सीधी चुनौती नहीं दे सकते, गर्हित त तरीके अपनाने ही होंगे?
4. इसके बाद भी वह अपनी विजय के प्रति शंकित कयों है?
5. मोदी का अन्त करने के लिए नित उठ लोढ़ा लुढ़काने और उन दलों से जुड़ाव या सहानुभूति रखने वाले बुद्धिबली इस कारुणिक स्थिति का मार्मिक विशलेषण क्यों नहीं कर पाते, यहां तक कि इसका साहस तक क्यों नहीं जुटा पाते,?और अन्ततः
6. यदि बिल्लियों के भाग से छीका टूट ही गया तो अपनी अपनी बोटी की लालसा को नियंक्त्रित करके हड़िया को संभाल भी पाएंगे?

Post – 2018-05-02

अजीतकुमार ने विशवसनीयता पर मेरी तीन दिन पहले की पोस्ट पर अपनी लंबी टिप्पणी अभी अभी भेजी है। इससे अन्य पाठक लाभान्वित हो सकें इसलिए उसे यहां पेस्ट कर रहा हूँ:

Ajeet Kumar मोदी सरकार ने सचमुच कुछ अच्छे फैसले लिए हैं जिसके दूरगामी लाभ दिखने तय हैं। लेकिन राजनीति के वर्तमान तौर-तरीकों में से कुछ अपवित्र तरीके अपनाने और फैलाने में भाजपा भी पीछे नहीं है।
1.जब अमित शाह बिहार के सीवान, छपड़ा में जाकर मंच से नारा देते हैं कि – यहाँ भाजपा हारी तो पाकिस्तान में दीवाली मनेगी और इसपर उन्हें निर्वाचन आयोग की नोटिस भी मिल जाती है, इसे क्या कहा जायेगा?
2.राजनैतिक तरीके से व्यवस्थित विरोध के बदले मोदी जी का “कांग्रेस मुक्त भारत” वाला नारा किसी फतवे से कम है क्या?
3.आये दिन भाजपाई मुख्यमंत्री तथा उप मुख्यमंत्री जब चिल्लाते हैं कि- “कोई माई का लाल आरक्षण नहीं खत्म कर सकता।” तो यहाँ पर मैं कह रहा हूँ कि संवैधानिक पदों पर बैठे भाजपाईयों का यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा है।
4.जब तथाकथित “मोदी युग” में भी मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला बदस्तूर जारी है,गवाहों के लाश भी नहीं मिलते,तो फिर मुक्त कंठ से प्रशंसा किस बात हेतु?
5.हजारों करोड़ के घोटालेबाज जो कुछ दिनों पहले तक सभाओं में मोदी जी के गिर्द मंडराते दिखें और पर्दाफाश होने पर वे लंदन में मिले,तो फिर स्वघोषित चौकीदारी कहाँ चली गयी थी?
6.”अभी से जिनके पास काले धन हैं(अर्थजगत के धाँसू विशेषज्ञों के अनुसार उस समय भारत में प्रचलित मुद्रा के करीब-करीब 40% समानांतर अर्थवयवस्था के रूप में मौजूद रहे थे,और उसी को निष्क्रिय करने हेतु ही नोटबंदी भी की गई थी) वे कागज के रद्दी टुकड़े हो जायेंगे।” फिर 99% खड़े सोने जैसे 99% कागजी नोट भारतीय रिजर्व बैंक के पास विपक्षी दलों ने पहुंचा दिए क्या?यह समानांतर अर्थवयवस्था मूल अर्थवयवस्था में कैसे समायोजित हो गयी……काला धन कहाँ फुर्र हो गया?

और जहाँ तक बात बुद्धिजीवी वर्ग को कोसने की है तो लीजिये भाजपा के एक प्रतिष्ठित संवैधानिक पद पर गत परसों ही बैठे असली नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण ‘पवित्र विचारों वाले’ एक खास बुद्धिजीवी का संबोधन – “कठुआ कांड मामूली घटना है।यह एक छोटी घटना है, जिसे बहुत ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए।”- कवीन्द्र गुप्ता (डिप्टी सीएम, जम्मू-कश्मीर)

इसमें इससे दूनी शिकायतें मै अपनी ओर से जोड़ सकता हूं, पर सवाल फिर भी वही है कि इतनी कमियों के होते हुए भी:
1. विपक्ष सीधी लड़ाई क्यों नहीं लड़ पाता?
2. यह क्यों मान बैठा है कि कोई विपक्षी दल अभी मोदी नीत भाजपा को नहीं हरा सकता?
3. कि सभी गठजोड़ के बाद भी सीधी चुनौती नहीं दे सकते, गर्हित त तरीके अपनाने ही होंगे?
4. इसके बाद भी वह अपनी विजय के प्रति शंकित कयों है?
5. मोदी का अन्त करने के लिए नित उठ लोढ़ा लुढ़काने और उन दलों से जुड़ाव या सहानुभूति रखने वाले बुद्धिबली इस कारुणिक स्थिति का मार्मिक विशलेषण क्यों नहीं कर पाते, यहां तक कि इसका साहस तक क्यों नहीं जुटा पाते,?और अन्ततः
6. यदि बिल्लियों के भाग से छीका टूट ही गया तो अपनी अपनी बोटी की लालसा को नियंक्त्रित करके हड़िया को संभाल भी पाएंगे?