Post – 2018-05-02

अजीतकुमार ने विशवसनीयता पर मेरी तीन दिन पहले की पोस्ट पर अपनी लंबी टिप्पणी अभी अभी भेजी है। इससे अन्य पाठक लाभान्वित हो सकें इसलिए उसे यहां पेस्ट कर रहा हूँ:

Ajeet Kumar मोदी सरकार ने सचमुच कुछ अच्छे फैसले लिए हैं जिसके दूरगामी लाभ दिखने तय हैं। लेकिन राजनीति के वर्तमान तौर-तरीकों में से कुछ अपवित्र तरीके अपनाने और फैलाने में भाजपा भी पीछे नहीं है।
1.जब अमित शाह बिहार के सीवान, छपड़ा में जाकर मंच से नारा देते हैं कि – यहाँ भाजपा हारी तो पाकिस्तान में दीवाली मनेगी और इसपर उन्हें निर्वाचन आयोग की नोटिस भी मिल जाती है, इसे क्या कहा जायेगा?
2.राजनैतिक तरीके से व्यवस्थित विरोध के बदले मोदी जी का “कांग्रेस मुक्त भारत” वाला नारा किसी फतवे से कम है क्या?
3.आये दिन भाजपाई मुख्यमंत्री तथा उप मुख्यमंत्री जब चिल्लाते हैं कि- “कोई माई का लाल आरक्षण नहीं खत्म कर सकता।” तो यहाँ पर मैं कह रहा हूँ कि संवैधानिक पदों पर बैठे भाजपाईयों का यह नैतिक पतन की पराकाष्ठा है।
4.जब तथाकथित “मोदी युग” में भी मध्य प्रदेश का व्यापम घोटाला बदस्तूर जारी है,गवाहों के लाश भी नहीं मिलते,तो फिर मुक्त कंठ से प्रशंसा किस बात हेतु?
5.हजारों करोड़ के घोटालेबाज जो कुछ दिनों पहले तक सभाओं में मोदी जी के गिर्द मंडराते दिखें और पर्दाफाश होने पर वे लंदन में मिले,तो फिर स्वघोषित चौकीदारी कहाँ चली गयी थी?
6.”अभी से जिनके पास काले धन हैं(अर्थजगत के धाँसू विशेषज्ञों के अनुसार उस समय भारत में प्रचलित मुद्रा के करीब-करीब 40% समानांतर अर्थवयवस्था के रूप में मौजूद रहे थे,और उसी को निष्क्रिय करने हेतु ही नोटबंदी भी की गई थी) वे कागज के रद्दी टुकड़े हो जायेंगे।” फिर 99% खड़े सोने जैसे 99% कागजी नोट भारतीय रिजर्व बैंक के पास विपक्षी दलों ने पहुंचा दिए क्या?यह समानांतर अर्थवयवस्था मूल अर्थवयवस्था में कैसे समायोजित हो गयी……काला धन कहाँ फुर्र हो गया?

और जहाँ तक बात बुद्धिजीवी वर्ग को कोसने की है तो लीजिये भाजपा के एक प्रतिष्ठित संवैधानिक पद पर गत परसों ही बैठे असली नैतिक मूल्यों से परिपूर्ण ‘पवित्र विचारों वाले’ एक खास बुद्धिजीवी का संबोधन – “कठुआ कांड मामूली घटना है।यह एक छोटी घटना है, जिसे बहुत ज्यादा तूल नहीं देना चाहिए।”- कवीन्द्र गुप्ता (डिप्टी सीएम, जम्मू-कश्मीर)

इसमें इससे दूनी शिकायतें मै अपनी ओर से जोड़ सकता हूं, पर सवाल फिर भी वही है कि इतनी कमियों के होते हुए भी:
1. विपक्ष सीधी लड़ाई क्यों नहीं लड़ पाता?
2. यह क्यों मान बैठा है कि कोई विपक्षी दल अभी मोदी नीत भाजपा को नहीं हरा सकता?
3. कि सभी गठजोड़ के बाद भी सीधी चुनौती नहीं दे सकते, गर्हित त तरीके अपनाने ही होंगे?
4. इसके बाद भी वह अपनी विजय के प्रति शंकित कयों है?
5. मोदी का अन्त करने के लिए नित उठ लोढ़ा लुढ़काने और उन दलों से जुड़ाव या सहानुभूति रखने वाले बुद्धिबली इस कारुणिक स्थिति का मार्मिक विशलेषण क्यों नहीं कर पाते, यहां तक कि इसका साहस तक क्यों नहीं जुटा पाते,?और अन्ततः
6. यदि बिल्लियों के भाग से छीका टूट ही गया तो अपनी अपनी बोटी की लालसा को नियंक्त्रित करके हड़िया को संभाल भी पाएंगे?