एक व्यवधान के कारण समय की कमी हो गई। आधा ही लिख पाया,पन्ना खाली न रह जाए इसलिए :
वह क्षण
कैसे आता है वह बेआवाज
चितकबरी खाल ओढ़े
झाड़ियों में दुबका
खुली रोशनी
और गहन अँधेरे से बचता हुआ
एकटक आँखें गड़ाए
कैसे लेता है उछाल
हवा को चीरता
गड़ाता दूर से ही अपने पंजे
सीने के भीतर
और निहारता दूर खड़ा
अपने नाखूनों को
पंजों से अलग।
वह आखिरी क्षण
जिसका रहता है उम्र भर इंतजार
कितना डरावना लगता है
कितना खूँखार
फिर भी कितना अपना।
4.1.97
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दिशाहारा
वह उत्तर गया
उत्तर बनने
प्रश्न बना लौटा
उत्तर कहाँ है?
वह पश्चिम गया
पहाड़ बनने को
रेत बना लौटा
विराटता कहाँ है?
वह पूर्व गया
दूसरों से आगे बढ़ने
पछाड़ खाकर लौटा
गति किधर है?
वह दक्षिण गया
अद्यतन बनने को
प्रदक्षिणा करता लौटा
वर्तमान कहाँ है?
वह धँस गया
जहाँ था वहाँ
जो भी था, जैसा भी
बने रहने को
खूँटे सा तना
दिशा किधर है?
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