Post – 2020-06-27

#उपस्थिति

आज फिर पोस्ट पूरी न कर पाया। गैर हाजरी से बचने के लिए उसी वर्ष की कुछ और कविताएं। कविताएं कविता नहीं हैं अपने समय की कविता की आलोचना हैं:

कविता लिखने का समय

जब सारी दुनिया सो जाएगी
वह कविता लिखेगा
कविता में लिखेगा
सारी दुनिया के सो जाने की बात।
वह लिखेगा कुछ नहीं
कविता भी नहीं –
अंधकार से टपकेगी कविता
अंधेरे में खो जाने के लिए।
वह उसे टपकने देगा
सोए हुए लोगों की नींदों में
उनकी नींद को सपनों से भरने के लिए
उनके सपनों को सन्नाटे से भरने के लिए
जिसमें उनका सांस लेना तक
शोर की तरह बरसेगा उनके दिमाग पर
और विद्रोह की तरह सुनाई देगा।
उन्हें
जो चाहते हैं लोग इस तरह सोएँ
कि दुनिया में शांति रहे
उस शांति में वे रहें
अपना ही शिश्न-उदर बन कर
जो बढ़ता जाए अपार
करता जाए
उनके अपनों को भी नंगा
बनाता अरक्षणीय,
तोड़ता जाए मर्यादाओं के सेतुबंध।

वर्चस्व कामी की न मां न ममता
न मातृभूमि
न बहन होती है न स्वजन।
देश एक नक्शा होता है
दूसरे नक्शों के लिए जगह बनाता
अपने विस्तार के लिए।
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सोचता हुआ आदमी

अकेला होता है
सोचता हुआ आदमी
विचारों की सहमति के विरुद्ध
सहमति की सत्ता के विरुद्ध
विरोधों के कुरुक्षेत्र के विरुद्ध
किसी न किसी से बँधकर रहने के विरुद्ध
अकेला होता है
सोचता हुआ आदमी।

हां हां और ना ना के विरुद्ध
अपना छोटा क्यों लिए
एक साथ
अनेक मोर्चों पर
लड़ता
आहत होता रहता है
सोचता हुआ आदमी।

दो पाटों के बीच नहीं पिसता
सात पाटों की रगड़ झेलता
पाटों के दाँत तोड़ता
बाहर आता है
सोचता हुआ आदमी
कुछ गर्म कुछ श्रांत
छिल्के और आँखे बचाए हुए।

सोचता हुआ आदमी
निपट अकेला होता है
अपने सिर पर सातों आसमान लादे
और कितना हल्का
कितना मुक्त
इस पूरे दबाव में।

सोचते हुए आदमी को
मिटा देना चाहते हैं
मानने वाले लोग।
सोचते हुए आदमी को
उखाड़ देना चाहते हैं
जड़ों से भी जड़
जमे हुए लोग।

तलाशती हैं संगीनें
सोचते हुए आदमी को
फिर भी सोचता है
आतंक में
आतंक बना।
21.4.97

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युद्ध

जहां युद्ध नहीं होता
युद्ध की तैयारियां होती हैं
जब गोली नहीं चल रही होती है
तब भी बन रही होती हैं गोलियां
कभी खत्म नहीं होता युद्ध
शांति का जाप करने वाले ही उकसाते हैं हत्यारों को
ब्रह्मकुंड ही बनाए जाते हैं रक्तकुंड।

शांति वहां नहीं होती जहां उड़ाए जाते हैं कबूतर
होती है मसान में रोने वालों के विदा हो जाने के बाद
जब बाकी रह जाती है मुर्दे की राख
जीवन में कहीं नहीं है शांति
जगत में कहीं नहीं है शांति
जंगल कहीं खत्म नहीं होता
कभी खत्म नहीं होता जंगल
कट जाने के बाद
बची रहती हैं उसकी जड़ें जंगल उगाने को
बचे रहते हैं उसके बीज
दरिंदों के भेजे में।
15.7.97