#शब्दवेध(51)
ठोस भी जल है
बात पहेली की नहीं है, कोई भी पदार्थ ऐसा नहीं जो एक तापमान पर द्रव में न बदल जाए। प्राचीन मनीषियों ने इसे इस रूप में समझा या नहीं परंतु यह विचार भारतीय चिंतन में केंद्रीय रहा है कि आदि में केवल जल था परंतु वह जल होकर भी जल नहीं था। वह स-सार जल था, अप्रकेत सलिल जिसमें सब कुछ समाहित था। वह ब्रह्म (महत ताप) भी जिसमें सृष्टि की कामना पैदा हुई, होते हुए भी न होने की तुच्छता में समाहित विराट! (तम आसीत् तमसा गूळ्हं अग्रे अप्रकेतं सलिलं सर्वमा इदम् । तुच्छ्येन अभ्व अपिहितं यदासीत् तपसः तत् महिना अजायत् एकम्) था। प्रकाश भी उसी से पैदा होना था।
परंतु हम जिस जल की बात कर रहे हैं वह उससे भिन्न, जिसमें अप्रकेत रूप में समग्र ध्वनियाँ, समग्र भाषा निहित थी, जो मूक को भी वाचाल कर रही थी। परंतु इसकी एक सीमा थी और है। यह सीमा उस भाषा की सीमा है जिसका जन्म आर्द्र भूभाग में हुआ। इसे हम भारोपीय की संज्ञा देते हैं। यह संस्कृत नहीं थी, वैदिक नहीं थी, एक अर्थतांत्रिक भाषा थी जिसमें प्रमुखता उस भाषा की थी जिसने संस्कृत का रूप लिया, परंतु साथ ही साथ, इसकी गतिविधियों में अनेक दूसरे समुदायों और उनकी बोली बानी भी योगदान था, अतः इसके लिए सबसे उपयुक्त नाम भारोपीय ही लगता है, यह हम पहले कह आए हैं। हमने पीछे द्रवों के नाम पर विचार किया। उनके लिए सामान्य जल के ही पर्यायों मे से किसी का निर्धारण किया गया और लंबे समय तक सामान्य और विशेष दोनों अर्थ में प्रयोग में रहने के बाद उनका उन रूपों में स्थिरीकरण हुआ।
ठीक यही ठोस पदार्थों के साथ हुआ। जिन पर हम विचार करने जा रहे हैं, परंतु हम चाहेंगे कि इस चर्चा में अंग्रेजी के माध्यम से सुलभ यूरोपीय प्रतिरूपों पर इस बात की चिंता किए बिना शामिल करें कि उनकी क्या व्युत्पत्ति उनके कोशों में दी गई है। उनकी उपेक्षा करने का हमारा कोई इरादा नहीं है, कारण यह है कि उनमें जहाँ यह दावा किया जाता है कि शब्द विशेष की उत्पत्ति (origin) अमुक है वहाँ भी केवल सजात (cognate) शब्दों का हवाला दिया जाता है, जिससे मूल का पता नहीं चलता। दूसरे, भाषाविज्ञान की जिस समझ पर उनको असाधारण श्रम से जुटाया गया है, वह उनकी समझ से भी गलत है।
मूल उस संभावित बोली या उन बोलियों में तलाशा जाना चाहिए जिसका विकास कतिपय इतर बोलियों के परिवेश में और अनेक के सहयोग से किसी विशेष कारण से हुआ और जहां संभव हो, विकास के उन निर्णायक मोड़ों का आभास मिलना चाहिए, जिनसे उस मानक, समृद्ध, परिनिष्ठित चरण पर पहुँचने के बाद किसी सुसंगत तंत्र के माध्यम से उस विशाल भूभाग में इसका प्रसार हुआ। इसका इस भाषाविज्ञान में आभास तक नहीं मिलता, इसलिए उसमें जो गलत है वह तो गलत है ही, जिसे सही माना और इस रूप में प्रचारित किया जाता है, वह भी गलत है, यद्यपि त्याज्य वह भी नहीं। वह मूल्यवान आँकड़ों का सत्ता और प्रचार के बल पर श्रम और सलीके से सजाया गया ऐसा मलबा है जो संरचना का भ्रम पैदा करता है। उसका उपयोग तो किया ही जा सकता है।
पत्थर के सभी पर्याय जल की ध्वनियों से निकले हैं यह हम कुछ संदर्भों में देख आए हैं, यद्यपि विस्तार भय से वहाँ न तो हम सभी भारतीय भाषाओं में सुलभ प्रतिरूपों को ले सके न अंग्रेजी में सुलभ रूपों को। यदि समस्या भारोपीय की है तो इसमें यूरोपीय पक्ष को शामिल करना जरूरी है।
हम समस्या पर तनिक उलट कर विचार करें। क्या चर/कर/शर का विकास यूरोपीय भाषाओं में परिलक्षित होता है। दूसरी बात, क्या पेबल pebble के साथ वैसी विकास रेखा – जल> प्रवाह/गति> पत्थर के खंड> गोलाकृति, दिखाई देती है जो इसके प्रचलित भारतीय प्रतिरूपों में देखने में आती है।
हम पेबल से ही आरंभ करे – प/पी/पे/पो – जल, *pup,> प्रप(प्रपा, प्रपात) pulp- फल या लता के भीतर का गूदा; बृबु* (अधि बृबुः पणीनां वर्षिष्ठे मूर्धन् अस्थात् , उरुः कक्षो न गांग्यः, 6.45.31> bub> bubble, पीवर – (युंजाथां पीवरीरिषः, पीवरी वावयित्री स्थूलो वा, सा.- solid) peb -pebble; पव (त. पो- जाना) गति > bob- to move quickly up and down; भस/ भास – दलदल bog- marsh, बग्गी (वह/बघ) >bogie/ bogey- a low heavy truck [origin unknown)
वट/बट-pebble, bat,> batter, battle, beat > bead- a little ball strung with others in a rosary; beadle – a mace bearer) <वर/वृ> वर्त (वृत, वृत्त, वृत्ति, वर्त्म, वर्तमान)- verse
चर्कर/चक्कर > शर्कर यौगिक शब्द है जिसके घटकों (चर/शर और कर) का अर्थ जल है इसलिए अंग्रेजी के माध्यम से car> carry, carriage, carrier, current, currency, courier, chariot, character, shirk, shrink, circle इत्यादि). कर/कळ/कड़ > करका- ओला, कड़ा (कन- जल+कड़ >कंकड़), कड़ाके की सर्दी का अर्थ हुआ – जमा देने वाली ठंड। L. calx, E. clash,कलेश, क्लिष्ट, E..creep, creek, crawl, crag, crash, crust, crest, crack, krank, crude, cruel, creed) । श्र> श्रव, स्र स्रव, स्रुवा, shrink, slink slip, slink- दबो पाँव जाना, to go sneakingly, slow, sloth, slop- spilled, liquid, slope, slide.
स्टोन . सत/स्त -जल, >स्तन; > स्थ < थ/ थन, थान, E. stir, stick, stare, steer, steep, step, stair, still, stay, stone. प्रश्न यह किया जा सकता है कि इस तरीके में पहले के व्युत्पादनों से क्या अंतर है, इसका उत्तर यह है कि पहले शब्द प्रतिशत तलाश करते हुए सजात शब्दों से पीछे नहीं जाया जा सकता था, इसमें उस बोली तक, शब्दों के आदिम तर्क और बिंब तक पहुँचने के प्रयत्न में रहते है इसलिए हम शब्द से नहीं शब्द और अर्थ के परिवेश को सामने रखते हैं अकेले शब्दों को उनके परिवेश से अलग करके नहीं समझा जा सकता, जिस तरह एकल मनुष्य को उसके सामाजिक परिप्रेक्ष्य को समझे बिना नहीं समझा जा सकता क्योंकि एक भाषा से दूसरी में पहुँचने पर शब्दों के रूप, उच्चारण और अर्थ में भिन्नता आ जाती है। ------------------------------ *बृबु और बृबुतक्ष का प्रयोग व्यक्ति नाम में हुआ है। साम्य स्वर-व्यंजन विन्यास में है।