भगदड़ के लिए उकसा कर बेसँभाल भीड़ को्, दुर्गति में भी, जीवट के यत्किंचित अविस्मरणीय कारनामे दिखाते दे्ख् तालियाँ बजाते हुए ‘क्या खूब रही! क्या खूब रही!! करने वालों की बेरहमी और इरादे हमें अधिक चकित करते हैं। क्या उन्होंने उनके जीवट को काम की अमानवीय शर्तों पर, अगले दिन तक जीने के लिए, मौत से लोहा लेते और इसके बाद भी बिरहा, कजरी, फाग गाते महाकाल के सिर पर खड़े होकर अट्टहास करते देखा ही न था? मेरा मन उनके इस रहस भोलेपन पर ताली बजाने और क्या खूब रही! क्या खूब रही!! करनेे का होता है ।