Post – 2020-04-03

परिशिष्ट
आप किसके साथ खड़े हैं

इसका उत्तर कई तरह से मिल सकता है। यदि राजनीतिक लगाव रखते हैं तो आप किसी दल का नाम ले सकते हैं। यदि सामाजिक चिंता अधिक गहरी है तो आप कह सकते हैं हम सामाजिक अन्याय का उन्मूलन करने वालों के साथ हैं। आर्थिक विपन्नता से ग्रस्त हैं और सामाजिक स्थिति ऐसी है जिसमें आपको सामाजिक ‘विषमता के निवारण’ के नाम पर जो रियायतें मिलती हैं ,उनमें से भी कोई नहीं मिलतींं, तो आप संपन्न या इस व्यवस्था का का लाभ उठाकर मालामाल हो चुके लोगों की दी जाने वाली रियायतों की ओर उँगली उठाते हुए इसे ही अन्याय और अवसर की असमानता सिद्ध करते हुए इसके विरोध में खड़े हो सकते हैं। कुछ ऐसे लोग जो रोशनी में आपके विरोध में खड़े दिखाई दे सकते हैं धुँधलके में आपके साथ खड़े हो सकते हैं। कई बार तो आप अपने विरुद्ध, अपनी आदत और बीमारी के साथ, अपने देश और समाज के विरुद्ध और उन विदेशी ताकतों के साथ खड़े हो सकते हैं जो समाजवाद की घुट्टी पिला कर आपको अपने ही देश के खिलाफ अपने साम्राज्यवादी योजनाओं के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं। आप किसी ऐसे चारे के रूप में पेश किए गए लुभावने खयाल के साथ खड़े दिखाई दे सकते हैं, जैसे आपको हैवान बना कर इनाम में झूठे स्वर्ग का भरोसा देने वाले पुराने मजहब, या धरती पर स्वर्ग उतारने का सपना दिखाने वाले और अपने व्यवहार में पूरी तरह विफल यहां तक कि त्रासदी के नए रूप सिद्ध होने वाले नए मजहब जो कहने को मजहब का विरोध करते हैं पर मजहबियों द्वारा भी इस्तेमाल कर लिए जाते हैं, जैसे भारतीय कम्युनिज्म या सेकुलरिज्म।

आप जहां भी खड़े हैं या खड़े होने की आदत डाल चुके हैं वह आपकी नजर में पूरी धरती पर सबसे सही मुकाम है और आप सबसे सही आदमी। पर आप अपनी समझ से सत्य के साथ खड़े हो सकते हैं और असत्य और पाखंड का समर्थन कर सकते हैं, और इस कड़वी सचाई से अनजान भी रह सकते हैं।

जिस मान्यता से आप वर्षों से जुड़े रहे हैं, या कहें जिसमें आपने अपने जीवन के इतने वर्षों की लागत लगाई हो, उसके विरुद्ध यदि ऐसे तर्क और प्रमाण मिलें, जो उसे गलत सिद्ध कर सकें, या जिन से उसके गलत सिद्ध होने का अंदेशा हो, तो उसे जानना ही नहीं चाहेंगे; जान गये तो मानने को तैयार नहीं होंगे।

जो भी हो, जब भी आप किसी के साथ खड़े होते हैं तो किसी के विरोध में खड़े होते हैं, विरोध में खड़े होते हैं तो जाने अनजाने किसी के साथ खड़े होते हैं। जब आप हिंदुत्व के विरुद्ध खड़े होते हैं तो आप मानवता के उन शत्रुओं के साथ खड़े होते हैं जिनमें से एक का सही खाका रसेल ने प्रस्तुत किया था। दूसरे का सही रूप उससे भी अधिक बीभत्स है इसे अब तक न जानते रहे हो तो मरकज और तबलीग की योजनाओं और कारनामों से जान चुके होंगे। इसके बाद भी, आदतन, हिंदुओं में ऐसे लोगों की संख्या कम नहीं मिलेगी जो आज भी बिना यह जाने कि हिंदुत्व क्या है, हिंदुत्व को कोसने और उनका बचाव करने के लिए खड़े हो जाएंगे। मुसलमानों में तो इसलिए भी खड़े हो जाएंगे कि उनकी असुरक्षा की भावना इन कारनामों के सामने आने से बढ़ जाएगी और वे इशारों में बताएंगे कि हिंदुत्ववादी उनका सामुदायिक चरित्र हनन कर रहे हैं। परन्तु यह नहीं बताएँगे कि इन गतिविधियों की जानकारी उन्हें पहले से थी, और इस पर चुप्पी लगाए रहे- कभी लिख कर या बोल कर या किसी कला-माध्यम से विरोध करने की जगह, उस समय भी चुप रहे जब बात बेबात काल्पनिक स्थितियाँ पैदा करके हिंदुत्व पर हल्ला बोल प्रदर्शन करते रहे। यदि उन्हें तबलीग का मौन समर्थक कहने वाले पैदा हो जाएँ तो उन्हें गलत सिद्ध करने का सही तर्क मेरे तलाशे भी न मिलेगा।

हिंदुत्व का नाम आते ही सारा ज्ञान, सारा पांडित्य, सारा तर्क कौशल हवा हो जाता है। पिछले 70 सालों में लगातार एक ही झूठ को बार-बार दोहराते हुए सामुदायिक सौहार्द के नाम पर इस घृणा का पोषण नाजी प्रचार तंत्र का इस्तेमाल करते हुए किया गया, और इसे फोबिया मिश्रित आतंक और घृणा का ऐसा जमा पहनाया गया कि अपने को उदार और मानवीय सिद्ध करने की कोशिश में हमारे समाज के महत्वाकांक्षी बुद्धिजीवी मानव द्रोही मजहबों के सेवादार बन कर इसे मिटाने के लिए प्रयत्न करते रहे।

मैंने अपना समापन लेख समग्र साक्ष्यों के साथ बहुत स्पष्ट रूप में यह बताते हुए कि हम हिंदुत्व का प्रयोग सनातन धर्म के लिए कर रहे हैं और सनातन धर्म मानवीय मूल्यों, बल्कि सत्ता के अविभाज्य नियमों का संकलन है, और मनुष्यता को यदि जीवित रहना है तो इसका पालन भी करना होगा। हिंदू समाज में हिंदुत्व विमुख लोग हैं, हिंदुत्व वंचित लोग भी हो सकते हैं, परंतु वह नहीं हैं, जो किसी भी जाति के हों, अपितु केवल वे जिनका व्यवहार मानवता की अपेक्षाओं के अनुरूप न हो । वे ब्राह्मण भी हो सकते हैं, और नहीं भी। दूसरे देश और काल के ऐसे लोग भी हिंदू की परिभाषा में आते हैं जो मानवीय मूल्यों का सम्मान करते हैं उनसे विचलित होने पर ग्लानि अनुभव करते रहे, और आज भी जिन्होंने दूसरों की अपेक्षा इन मूल्यों को बचा कर रखा है। मैंने यह कहीं दावा नहीं किया कि हिंदू समाज निर्दोष है, या हिंदू समाज का आचरण हिंदुत्व को परिभाषित करता है।

स्वयं हिंदू को और अपने को मानवीय सरोकारों से जुड़ा अनुभव करने वालों को हिंदुत्व के अनुरूप अपने को ढालना होगा। ऐसे कुछ लोगों की समझ में जिनकी बुद्धि पर मुझ को संदेह नहीं है, यह बात समझ में नहीं आई, परंतु उनका आभार है कि उन्होंने अपना पक्ष स्पष्ट रूप में रखा और मुझे यह समझने का अवसर मिला कुछ लोग दूसरे सरोकारों से जुड़े होने के कारण हिंदुत्व को उसका विरोधी मान बैठे हैं, और हिंदुत्व को ब्राह्मणवाद का पर्याय मानते हैं क्योंकि इसे इसी रूप में प्रचारित किया गया है। हिंदुत्व की भर्त्सना करने वाले दूसरे लोगों ने उस लेख को पढ़ा नहीं होगा, या पढ़ते हुए घबराकर छोड़ दिया होगा, परंतु उनकी धारणा में कोई परिवर्तन हुआ होगा इसकी आशा मैं नहीं करता।

फोबिया से ग्रस्त व्यक्ति का दिमाग काम नहीं करता, सिर्फ डर काम करता है, और उसके दबाव में आने के बाद उन्हें स्वयं इसका बोध होता है जिसके लिए उन्हें बहाने तलाशने पड़ते हैं। कहने को वे कहेंगे वे दक्षिणपंथी राजनीति के विरुद्ध है, हिंदू समाज के नहीं। हम यह पहले बताए हैं कि वे सबसे पहले हिंदू समाज से नफरत करते हैं और तब से नफरत करते हैं जब हिंदू संगठनों का कोई नाम तक नहीं जानता था, और आज तक हैं परंतु इससे अनजान हैं। इसे बार-बार दोहराने की जरूरत नहीं हिंदू समाज के संकट पर हमेशा उन्होंने नकारात्मक रुख अपनाया है और आज भी अपना रहे हैं।

आतताइयों की रक्षा के लिए उन्होंने आतंकवादी गतिविधियों में शरीक, पुलिस की पकड़ में आ चुके अपराधियों को क्षमा दान देते हुए उनका अपराध धार्मिक झुकाव रखने वाले हिंदुओं पर लादते हुए, मीडिया का इस्तेमाल करते हुए, फाइलों को दबाते और नष्ट करते हुए, अदालतों में अपने दिए बयानों को उलटते हुए एक काल्पनिक हिंदू आतंकवाद की सृष्टि करने का प्रयत्न किया और यदि आर वी एस मणि की पुस्तक दि मिथ ऑफ हिंदू टेरर से, जिसमें उनको भी धार्मिक रुझान रखने के कारण गृह मंत्रालय में एक जिम्मेदार पद पर होते हुए अपहरण करने और फँसाने का प्रयत्न किया गया जो उनके सौभाग्य से विफल रहा और उन्होंने तत्काल इसकी रपट थाने में लिखवा दी और इसके बाद उनको इसलिए प्रताड़ित किया जाता रहा किसी तरह वह अपना बयान बदल दें, इसमें विफल होने वाले इंस्पेक्टरों की उन्नति रुक गई, कुछ को विफलता के लिए सजा मिली क्योंकि तत्कालीन गृहमंत्री पसीने छूट रहे थे।

इसमें यह सिद्ध करने के लिए कि 26/11 के मुंबई कांड में भी अपराधियों को बचाते हुए, पाकिस्तानी सरकार की पाकिस्तानी मिली भगत पर पर्दा डालते हुए, हिंदू आतंकवाद सिद्ध करने के लगातार प्रयत्न किए जाते रहे, कसाब तक को हिंदू पहचान देने के प्रयत्न किए जाते रहे, तिथि, फाइल, नोट, बदले हुए नोट, अदालती साक्ष्यों और बयानों, पार्लमेंट की बहसों, और दूसरे दस्तावेजों के इतने पुष्ट प्रमाण हैं कि उनसे गुजरने के बाद स्वयं मैं आश्वस्त हो पाया कि सोनिया समर्थित कांग्रेस और अन्तरात्मा का सौदा करके पद और लूट के लिए दूसरे महत्वाकांक्षी कहाँ तक गिर सकते हैं। हिन्दुत्व द्रोहियों का लक्ष्य हिंदुत्व को समझना नहीं इस पर प्रहार करना होता है। समझने और सराहने की दृष्टि मूर्तिकार और वास्तुकार की होती है, जो यदि मूर्तिभंजक और ध्वंसकारी में पैदा हो जाए तो उसके हाथों में आया हुआ हथौड़ा और मारतौल उसके ही शरीर में आए कंपन और प्रस्वेदन से छूट कर गिर जाएगा और वह जानुपात की मुद्रा में आ जाएगा। इस आशंका से ही दूसरा कारण जुड़ा है। अपने कारनामे को अंजाम देने के लिए वह नजर तो डालता है पर गौर से देखने का साहस नहीं जुटा पाता। वह जहाँ समझने का अभिनय करता है, वहाँ भी समझने से कतराता है, वह गहन विवेचन के नाम पर कुतर्क द्वारा अध्याय (जिसका अध्ययन करना है) उसे दूषित और नष्ट करता है।