#इतिहास_की_जानकारी और #इतिहास_का_बोध (11)
ब्राह्मणों का स्वर्ग से पलायन
विलियम जोंस ने ईरान की महिमा जिस अंधश्रद्धा से गाई है उसका एक नमूना हम पहले देख आए हैं कि यह उनकी नजर में पूरी दुनिया में सबसे विख्यात और सबसे सुंदर देश -The most celebrated and most beautiful countries in the world- था। अफलातून ने जिस कल्पनिक देश या द्वीप अटलांटिस की उद्भावना की थी और जिसे लेकर यूरोपीय भाषाओं में बहुत सारा साहित्य रचा गया है, जिसे इतिहास का सच मानने वाले यह तय करने में परेशान रहे हैं कि यदि यह था तो कहां था, उसकी पहचान भी विलियम जोंस ने ईरान के रूप में कर ली:thus we may look at Iran as the noblest land (for so the Greeks and Arabs would have called it) or at least the noblest peninsula on this habitable globe….if the account, indeed, of Atlantes, be not purely an Egyptian, or Utopian, fable, I should be more inclined to place them in Iran, than in any region with which I am acquainted.
उन्होंने अरब और मध्येशिया की गहराई से छानबीन करते हुए यह नतीजा निकाला था कि संस्कृत भाषा बोलने वाले इन दोनों में से किसी में नहीं रहते थे लेकिन यह आधा सच है। पूरा सच है अरबी भाषा बोलने वाले न तो पहले अरब में रहते थे, न ही तातारी बोलने वाले मद्धेशिया में रहते थे। हिंदू स्वयं हिंदुस्तान में नहीं रहते थे। ये सभी उसी कल्पना के देश या यूटोपिया में रहा करते थे।
इस देश पर कभी हिंदुओं का राज हुआ करता था, परंतु कोई सवाल कर सकता है कियदि उनका राज था तो तख्त-ए-जमशेद के नाम से विख्यात स्थान के मंदिर या महल के भग्नावशेषों से देवनागरी में या कम से कम एलीफैंटा की लिखावट में कोई अभिलेख ही मिलना चाहिए। हमें जोंस के अज्ञान पर हंसी आ सकती है, परंतु वह अपने समय की सर्वोत्तम जानकारी के आधार पर यह विचार व्यक्त कर रहे थे, और इसका समाधान यह था कि यह मंदिर हिंदू सम्राटों के शासनकाल के बाद बना था। इस विषय में उनके पास प्रमाण थे। तख्त-ए-जमशेद कैयूमर (कै उमर?) के शासनकाल में बनाया गया था: If a nation of the Hindus ever possessed and governed the country of Iran, we should find on the very ancient ruins of temple and palace, now called the throne of jamshid, some inscriptions in devanagari, or at least in the characters on the stones of elephanta, …..we shall soon have abundant evidence to prove that the temple was posterior to the reign of Hindu monarchs, … Takht-I Jamshid was erected after the reign of king Cayumers.
थी
ईरान में बहुत पहले हिंदुओं की उपस्थिति थी, वहीं उनके पौराणिक पुरुष शासन करते थे, वही मनु वास्तविक या काल्पनिक स्वर्ग से उतरे थे, वहीं उन्होंने समाज को चार वर्णों में विभाजित किया था। वहीं वह दार्शनिक विचार पैदा हुए थे धर्म और आचार का श्रेष्ठतम प्रतिपादन हुआ जिसका विकृत रूप ब्राह्मणों की मनुस्मृति में मिलता है, और वही वे कथाएं रची गई थी जो हिंदुओं की पुस्तकों में मिलती हैं। इसके बारे में घालमेल ऐसा का एक नमूना वह शेख सादी के बोस्ताँ अंत में दी गई एक कहानी रूप में पेश करते हैं।
यह कहानी सोमनाथ के महादेव लिंग के विषय में है। इसमें शेख सादी ने हिंदुओं के धर्म को गबरों का धर्म मान लिया है और ब्राह्मणों को मोग कहा है। यह तो गनीमत है क्योंकि मसनवी में इस आशय का एक टुकड़ा आया है, परंतु वह उन्हें जेन्द और पाजेन्द ( पहलवी में जेंद की टीका) पढ़ते हुए भी दिखाते हैं। विलियम जोंस को यह तो नहीं मालूम कि उनका यह अज्ञान असावधानी के कारण है या शरारतन, पर इस विषय में कि वह उतने ही आश्वस्त हैं कि जेंद के धार्मिक सिद्धांत वेद से अलग हैं इस विषय में जिन ब्राह्मणों से उनका आए दिन वार्तालाप होता रहता था उनका धर्म एक समय में ईरान में
कैयूमर के सत्ता में आने से पहले प्रचलित था: In a story of Sadi….concerning the idol of Somnath or Mahadev he confounds the religion of the Hindus with that of the Gabrs calling the Brahmanas as Moghs( (which may be justified by a passage of the Masnavi) but even readers of Zend and Pazend; now whether this confusion proceeded from real or pretended ignorance, I can not decide, but am as firmly convinced that the doctrines of the Zend were distinct from those of the Veda, as I am that the religion of the Brahmanas, with whom we converse every day, prevailed in Persia before the accession of Cayumers….
उनके पास यह मानने के बहुत ठोस कारण थे कि असीरियनों से पहले ईरान में एक शक्तिशाली राजवंश लंबे समय तक राज्य करता रहा था solid reason to suppose that a powerful monarchy had been established in Iran, for ages before the Assyrian dynasty.
भारत और ईरान की प्राचीनतम काल से एक ही प्रेरणाभूमि का एक प्रमाण तो वह अध्यात्म चिंतन है जो भारत और फारस के अनेकानेक मतों में पाया जाता है और जो यूनान में पहुंचा था। यह आज भी सुशिक्षित मुसलमानों में प्रचलित है जो इसे बिना खुलेआम इसका दावा करते हैं । इन्हें या तो यूनानी में संत के लिए प्रयुक्त शब्द के आधार पर अथवा ऊनी लबादे के कारण जिसे वे ईरान के कुछ प्रांतों में पहना करते थे, सूफी कहा जाता है। वेदांती चिंतकों का भी दृष्टिकोण यही है और उसके उत्कृष्ट गीतकारों में भी यही पाया जाता है। और यह चिंतन पद्धति बहुत प्राचीन काल से दोनों राष्ट्रों में पाई जाती है। इसे भी इन दोनों राष्ट्रों के बीच अनंत काल से चली आ रही एकात्मता का प्रमाण माना जा सकता है:
…that metaphysical theology, which has been professed immemorially by a numerous sects of Persians and Hindus was carried in part into Greece, and prevailed even now among the learned Musselmans who sometimes avow it without reserve, the modern philosophers of this persuasion are called Sufis, either from the Greek word for a sage, or from the woollen mantle which they used to wear in some provinces of Persia…… such is the system of the Vedanti philosophers and best lyric poets of India; and as it was a system of the highest antiquity in both nations, it may be added to the other proofs of an immemorial affinity between the them.
यदि प्राचीन निर्मितियों की बात की जाए तो पारसी स्थापत्य और वास्तुकृतियों के विषय में अपने विचार वह पहले व्यक्त कर आए हैं। ‘आप अब एलीफेंटा, जो कि जाहिर है हिंदू है, और पर्सपोलिस जो कि मात्र सेबियन हैं को देखकर उस दशा में चकित नहीं होंगे जब आप मेरी तरह यह मानते हों कि तख्ते जमशेद कैयूमर के बाद उस समय बना जब ब्राह्मण ईरान से रवाना हो गए और जब उनके पेचीदा देव समाज का स्थान ग्रहों और अग्नि की उपासना की सीधी-सादी उपासना ने ले लिया था। Of the ancient monuments of Persian sculpture and architecture we have already made such observations…nor will you be surprised at the diversity between figures at Elephanta, which are manifestly Hindu, and those of Persepolis which are merely Sabian, if you concur with me in believing, that the Takhti Jemshid wea erected after the time of Cayumers, when the Brahmans had migrated from Iran, and when their intricate mythology had been superseded by the simpler adoration of the planets and of fire.
पुराने पारसियों के विज्ञान और कला के विषय में विलियम जॉन्स को अपनी ओर से कुछ नहीं कहना था और इसके विषय में वहाँ पक्का प्रमाण भी नहीं मिलता। मोहसन उनसे बार-बार पहलवी की पुरानी कविताओं का राग अवश्य अलापता था
As to the sciences and arts of the old Persians, I have little to say; and no complete evidence of them seems to exist. Mohsan speaks more than once of ancient verses in the Pahlavi language; …
और इस स्वर्गोपम देश को जिस पर उनका युग-युगांतर से आधिपत्य था, और जिसमें उन्हें किसी प्रतिरोध का सामना करना पड़ा हो इसका कोई प्रमाण ईरानी परंपरा में नहीं है भारतीय परंपरा में उनके ईरान से आने की कोई कहानी तो संभव ही नहीं थी जहां वे सृष्टि के आदिकाल से विराजमान थे। इसलिए हमें विलियम जोंस के इस खयाल को कि कैउमर का आधिपत्य भारी उथल-पुथल का काल रहा होगा, प्रमाण मानना पड़ता है।
ईरान ही वह देश क्यों है जहां से सभी सभ्य या सभ्य होने में सक्षम जनों को बाहर जाना पड़ा इस विषय मे वह जो कुछ कहते हैं उसे नीचे के उद्धरण मैं देख सकते हैं जिसके विस्तार में जाना नहीं चाहूंगा केवल यह बताना चाहूंगा कि भारत में ब्राह्मणों के बाहर से आने के विषय में उनका तर्क है कि भारत के ब्राह्मण तो बाहर जा ही नहीं सकते थे। अन्यथा सारे प्रमाण संकेत कर रहे थे कि यदि ईरान में हिंदू धर्म का आधिपत्य था तो वह भारत से बाहर गए हुए हिंदुओं का ही हो सकता था
Let us observe in the first place the central position of Iran, which is bounded by Arabia, by Tartary, and by India ; while Arabia lies contiguous to Iran only, but is remote from tartary, and divided even from India by a considerable gulf; no country, therefore, but Persia seems likely to have sent forth its colonies to all the kingdoms of Asia: The Brahmans could never have migrated from India to Iran,