Post – 2019-06-01

जिन्हें हम देख कर डरते थे, अब पहचान लेते हैं

यह दुर्भाग्य की बात है कि हम एक राष्ट्र के रूप में #स्मृतिलोप की उस अवस्था में पहुंच गए हैं, जिसमें हम दूसरों से पूछते हैं कि हम कौन हैं? हमारा नाम क्या है? जो कुछ सुनते हैं उस पर विश्वास नहीं कर पाते। जो कुछ देखते हैं, वह बेतरतीब लगता है। जो कुछ अपनी धुंधली चेतना से याद करते हैं, वह अविश्वसनीय लगता है।

गुलामों की #प्रतिरोध-क्षमता को नष्ट करने के लिए, उन पर राज करने वालों को उनकी चेतना को नष्ट करना होता है। इतिहास को विकृत करते हुए हमारे साथ यही किया गया।

गुलामों को कोड़ा मारने वाले गुलाम और हाथियों का शिकार करने वाले हाथी पाल-पोस कर रखे जाते हैं, उनका रुतबा ऊंचा होता है, परंतु वे मालिकों के काम के होते हैं अपनी बिरादरी के काम के नहीं।

यही हाल हमारे बुद्धिजीवियों का है। उनको जिस भाषा में, जिस ज्ञानाभासी शिक्षा सामग्री और शिक्षा प्रणाली के द्वारा अपने उपयोग के लिए मालिकों ने तैयार किया और विदा होते हुए, जिसे अपने स्वामिभक्त गुलामों को सौंप कर चले गए, वे भी उसी पद्धति पर काम करते रहे। उनका ही ज्ञान जगत पर साम्राज्य है, वे अपने समाज की याददाश्त की वापसी से घबराते है। वे अपने इतिहास को जानने से घबराते हैं।

उनकी सूचना बहुलता के आतंक में शिक्षित व्यक्तियों से उस इतिहास की बात करो जो आपकी अपनी पहचान और आत्माभिमान को वापस ला सकता है, जिनका प्रमाण आपके पास है और अपने पवित्र अज्ञान के कारण इसका खंडन नहीं कर सकते, तो आपका खंडन करने का एक उपयोगितावादी तर्क तलाश लेते हैं, ‘मान लिया आप जो कहते हैं वह सही है, परंतु हमें इससे आज क्या लाभ जब पश्चिम हमारे गौरव काल से इतना आगे बढ़ चुका है जितना तिल से ताड़?’

आप यह भूल जाते हैं कि यही प्रश्न स्मृतिलोप के शिकार हुए व्यक्ति से करने वाले को आप उस शठयंत्र का हिस्सा मानेगे या नहीं जिसकी दवाओं में मिले जहर से उसका स्मृतिह्रास और स्मृतिलोप हुआ है।

जब तक आप ऐसा नहीं कर पाते हैं तब तक आपको ऐसे लोगों से निवेदन करना चाहिए, ‘ हुजूर, आप बजा फरमाते हैं। पर मुझे समझाइए ताड़ बन चुके देशों के लोग ताड़ से उतर कर तिल का सूक्ष्मदर्शी लगाकर अध्ययन करने का प्रयत्न क्यों करते हैं , सूक्ष्मदर्शी को दूरदर्शी चेहरे पर लगाकर क्यों देखते हैं? इस शरारत की ओर आपका ध्यान क्यों नहीं जाता कि जिनके पास , आप की तुलना में उनके भौगोलिक क्षेत्र में अपार अवसर उपलब्ध हैं वे पिछड़ी दुनिया को समझने के लिए क्यों निकल पड़ते हैं और आप अपने को समझने से इतना घबराते क्यों है?

कहना चाहिए कि आप आजाद होने से डरते हैं। आजादी का रास्ता इतिहास के गहन अध्ययन और बोध से खुलता है, अपनी याददाश्त वापस लाने से खुलता है, और उधार ली हुई अक्ल से काम लेने पर बन्द हो जाता है।

एक दूसरा हीनता बोध उसी चेतना के अंतर्गत पनपाया गया है । यह है अपने प्राचीन ऐतिहासिक सत्य को उद्घाटित करने वालों की विश्वसनीयता को समाप्त करना और यह आरोप लगाना कि वे अपनी आत्मासक्ति के कारण, अन्य सभ्यताओं के योगदान को समझ नहीं पाते और सभी विकासों का उद्भव भारत को सिद्ध करना चाहते हैं और कृतियों तथा घटनाओं की काल रेखा को पीछे खिसका कर अधिक प्राचीनता का दम भरना चाहते हैं।

ये दोनों अर्धसत्य हैं। अर्धसत्य न सही होता है न गलत होता है, वह चुनिन्दा तथ्यों और आंकड़ों के आधार पर रचा गया एक भ्रम या प्रतीति होता है। हमारा मानसिक पर्यावरण इसी से निर्मित हुआ।

इतिहास पर लिखते हुए मेरी अंतश्चेतना में यह पर्यावरण लगातार उपस्थित रहता है, और इसलिए समय-समय पर मुझे इतिहास और इतिहासबोध के महत्व को याद दिलाना पड़ता है जो एक टेक सा बन गया है।

जब मैं प्राचीन अरब के विषय में बात करते हुए यह याद दिला रहा था कि हड़प्पा के व्यापारियों का लघु एशिया पर्यंत भू भाग पर गहरा असर था, और यह लगातार 17 वीं शताब्दी तक बना रहा था तो आप में से कुछ को अतिरंजना की आशंका हुई होगी और कुछ को ‘गई भैंस पानी में’ का मुहावरा याद आया होगा।

मुझे एक साथ आपके सिखाए हुए ज्ञान की सीमा से भी लड़ना होता है, और प्रमाण के साथ अपनी बात कहने के बाद भी आपके अविश्वास से भी लड़ना होता है जिसे वस्तुपरक ज्ञान का निकष बना दिया गया है। इसलिए यहां दो तथ्यों की ओर ध्यान दिलाना चाहता हूं।

अरब जहां से इतिहास में याद किए जाने लगते हैं, वे बहुत सफल सौदागरों के रूप में याद किए जाते हैं। मक्का का जो व्यापारिक आधार हमने अपनी पिछली पोस्ट में चित्रित किया है उसमें भी वह सौदागरों के रूप में दिखाए गए हैं। आपको यह सवाल तो अपने आप से पूछना ही चाहिए कि अरब में खजूर को छोड़कर क्या पैदा होता था जिसे दूर दूर तक वे पहुंचाते थे ? यदि इसमें विविधता थी तो यह कहां का माल था जिसके अरब में दाखिल होने पर उस पर आयात कर भी लगाया जाता था? वह कहां से आता था? जिधर जाता था उधर से तो नहीं आता रहा होगा। जो व्यापारिक मार्ग सक्रिय दिखाई देता है, भारत की ओर से आता है यह नतीजा निकालने में आपको अपना दिमाग अधिक खरोंचना नहीं पड़ेगा।

दूसरा उदाहरण लीजिए। आपने अलिफ लैला की हजार दास्तान, या अरैबिएन नाइट्स का नाम तो सुना होगा और यह भी जानते होंगे कि यह पंचतंत्र की प्रेरणा से, किस्से में से किस्सा गढ़ने का प्रयोग था। आपने सिंदबाद और हिंद बाद की कहानियां भी सुनी होंगी। कभी यह सोचा यह दोनों नाम सिंध के साथ क्यों जुड़े हैं। सौदागरों के भाग्य का सारा खेल भारत पहुंचने और भारतीय समृद्धि से लाभान्वित होने तक ही क्यों सिमटा है?

इतिहास की खोज, उसकी सच्चाई तक पहुंचने का प्रयास, इतने धागों से जुड़ने की मांग करता है जिसकी ओर किताबी ज्ञान रखने वालों का ध्यान नहीं जाता।

हमारे प्रख्यात इतिहासकारों का किताबी ज्ञान सराहनीय है, परंतु उनके पास यह समझ नहीं है कि उसका कितना कूड़ा और योजनाबद्ध रूप में तैयार किया और कितनी सावधानी से पैक किया गया है। पैकिंग के ऊपर बारीक अक्षरों में लिखा है, ‘केवल भारत के लिए।’