Post – 2019-03-01

वहशत ही सही
हँसने हँसाने के लिए आ।
उल्मा को उसका पट्ठा बनाने के लिए आ।
वहशत ही सही।।

कहने को तो इस्लाम की ख्वाहिश है सलामत।
कायल नहीं जो उनको मिटाने के लिए आ ।
वहशत ही सही।।

लब इतने हैं शीरीं कि उलट जाता है मानी
तू क्या है, क्यों ऐसा है बताने के लिए आ।
वहशत ही सही।।

बन्दों का है मालिक तो क्यों बन्दे रहें आजाद।
खुद्दार को खुद-बीं को सताने के लिए आ।
वहशत ही सही।।

बेचैनियों से दुनिया के मिलता है तुझे चैन।
मेरा अमन सुकून मिटाने के लिए आ ।
वहशत ही सही।।

गोलों के बीच मीठी गोलियों की पेशकश।
शक्कर के मरीजों को पटाने के लिए आ।
वहशत ही सही।।

आजाद नहीं तू है जमाने को है मालूम।
आजाद हो सके है दिखाने के लिए आ।
वहशत ही सही।।

तोपों के रुख को देख और मेयार उनका देख
दुनिया के रुख को देख, दिखाने के लिए आ।
वहशत ही सही।।