Post – 2019-02-27

#इतिहास_दुबारा_लिखो

विजेता-लिखित इतिहास

विजेता यदि आप का इतिहास लिखे तो उसका प्रयत्न होगा उसकी विजय स्थाई रहे। इसके लिए वह आपके अभेद्य माने जाने वाले शक्ति केंद्रों को नष्ट करेगा। भौतिक विजय के बाद मनोवैज्ञानिक विजय सत्ता को बनाए रखने के लिए जरूरी है।

जिस व्यक्ति ने भारत का पहला इतिहास लिखा, वह भारत का इतिहास नहीं लिख रहा था। उसकी पुस्तक का नाम था ‘हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया’। वह ब्रिटिश इंडिया का इतिहास लिख रहा था। इसमें उसे अंग्रेजों के शासन को सबसे अच्छा सिद्ध करना था, जबकि यही वह दौर है जिसमें भारत को लगातार इतनी निर्ममता से लूटा जाता रहा कि यह एक संपन्न देश से कंगाल देश में बदल गया।

लुटेरे पहले भी आते रहे, परंतु वे किसी शहर या मंदिर की संपदा को लूट कर वापस चले जाते थे। मध्यकाल में भारत का आर्थिक दोहन होता तो रहा, परंतु वह अय्याशी में इस देश के भीतर खर्च होता रहा, इसलिए भारत की समग्र संपन्नता अधिक प्रभावित नहीं हुई थी। ऐसा पहली बार हुआ, कि लूट का सारा धन लगातार साल दर साल ब्रिटेन को जाता रहा। पहली बार देश को लूटा नहीं जा रहा था, इसका खून चूसा जा रहा था।

यदि अधोगति की इस पराकाष्ठा को भारतीय इतिहास की सबसे बड़ी उपलब्धि सिद्ध करना था तो जाहिर है इस के वैभव काल को दुर्भाग्यपूर्ण बताना जरूरी था। यह काम उस व्यक्ति ने किया था जिसने प्राच्य निरंकुशता ( ओरिएंटल डेसपोटिज्म) का सिद्धांत प्रतिपादित किया था और जिसे मार्क्स ने भी मिल जैसों के माध्यम से उपलब्ध अधकचरी जानकारी के कारण सत्य स्वीकार कर लिया। यह वही लेखक है जिसने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया था कि समस्त ज्ञान, समस्त सिद्धांत यूरोप में पैदा हुए हैं और यहां से पूर्वी देशों की ओर फैले हैं इसलिए जो पश्चिम के जितना ही अधिक निकट है वह अपने पूर्ववर्ती देश की तुलना में उतना ही अधिक सभ्य है।

वह जिस यूरोप को सभ्यता का जन्मदाता मान रहा था उस यूरोप का हाल यह है की ग्रीस और रोम को छोड़कर दूसरे किसी देश के पास न तो ईसापूर्व की
शताब्दियों में अपने इतिहास का सही बोध था, न किसी तरह का साहित्य था और न ही कोई ऐसा वैचारिक योगदान था जिसके लिए किसी विचारक को याद किया जा सके।सभी का विस्तार से उल्लेख करना जरूरी नहीं है। उदाहरण के लिए हम निम्न अंशों पर नजर डाल सकते हैं:

जर्मनी
The Germans are a Germanic people, who as an ethnicity emerged during the Middle Ages. Originally part of the Holy Roman Empire, around 300 independent German states emerged during its decline after the Peace of Westphalia in 1648 ending the Thirty Years War.

ब्रिटेन
The Germanic-speakers in Britain, themselves of diverse origins, eventually developed a common cultural identity as Anglo-Saxons.

इंग्लैंड
The area now called England was first inhabited by modern humans during the Upper Palaeolithic period, but takes its name from the Angles, a Germanic tribe deriving its name from the Anglia peninsula, who settled during the 5th and 6th centuries. England became a unified state in the 10th century, and since the Age of Discovery, which began during the 15th century, has had a significant cultural and legal impact on the wider world

स्कॉटलैंड
The recorded history of Scotland begins with the arrival of the Roman Empire in the 1st century, when the province of Britannia reached as far north as the Antonine Wall. .
फ्रांस
In the later stages of the Roman Empire, Gaul was subject to barbarian raids and migration, most importantly by the Germanic Franks. The Frankish king Clovis I united most of Gaul under his rule in the late 5th century, setting the stage for Frankish dominance in the region for hundreds of years. Frankish power reached its fullest extent under Charlemagne. The medieval Kingdom of France emerged from the western part of Charlemagne’s Carolingian Empire, known as West Francia, and achieved increasing prominence under the rule of the House of Capet, founded by Hugh Capet in 987.

ग्रीस और रोम
Over the course of the 1st millennium BC the Greeks, Romans and Carthaginians established colonies on the Mediterranean coast and the offshore islands. The Roman Republic annexed southern Gaul as the province of Gallia Narbonensis in the late 2nd century BC, and Roman forces under Julius Caesar conquered the rest of Gaul in the Gallic Wars of 58–51 BC. Afterwards a Gallo-Roman culture emerged and Gaul was increasingly integrated into the Roman Empire.

ग्रीस हो या रोम, किसी के पास हरदोतस से पहले का कोई ऐतिहासिक आलेख नहीं था। पुराणवृत्त नाम मात्र को था और जो था वह किंचित हास्यास्पद था। गोरे रंग को सर्वोपरि और यूरोप को सभ्यता का जनक सिद्ध करने पर कटिबद्ध और इसके कारण ईसाइयत से पहले की सभी सभ्यताओं को नकारने वाले सिरफिरे विद्वान को प्राचीन भारत के विषय में विलियम जोन्स के उद्गारों से चोट पहुंची थी, भारत की इस श्रेष्ठता को वह कंपनी के हित के विरुद्ध पा रहा था।

कंपनी ने मुसलमानों से सत्ता छीनी थी, और उन्हें परास्त करने के बाद उस ओर से वे निश्चिंत थे। परंतु भारत के विषय में पादरियों की रपटों से जो कुछ मालूम हुआ होगा उसने यह सचाई उसे अवश्य बता रही होगी कि हिंदू मुस्लिम शासन के अंतर्गत भी गौ मांस भक्षी होने के कारण मुसलमान शासकों तक को अस्पृश्य मानते थे, और उसी कारण, चाकरी करने के बावजूद, अपने अंग्रेज मालिकों को भी ओछी नजर से देखते हैं।

जेम्स मिल भारत का इतिहास नहीं लिख रहा था, अंग्रेजों को सर्वश्रेष्ठ सिद्ध करने के लिए, सांस्कृतिक स्तर पर हिंदुओं को पराजित करना चाहता था । वह हिंदुओं से सीधी लड़ाई नहीं लड़ रहा था अपितु विलियम जोंस से पंगा ले रहा था, जिन्होंने प्राचीन भारतीय सांस्कृतिक श्रेष्ठता को विनम्रता से स्वीकार किया था।

परंतु इसे इस रूप में भी प्रस्तुत किया जा सकता है कि वह विलियम जॉन्स के अधूरे काम को कुछ अधिक उजड्डता से पूरा कर रहा था, क्योंकि उसको परिवर्ती अंग्रेज इतिहासकारों का भी विरोध सहना पड़ा था।

याद रहे कि विलियम जॉन्स और जेम्स मिल दोनों एक ही काम कर रहे थे। विलियम जोंस ने संस्कृतज्ञों को खुश करते हुए संस्कृत के उद्गम क्षेत्र को भारत से बाहर ईरान में केंद्रित करके गोरे यूरोपियों को काले बंगालियों की संतान सिद्ध होने से बचा लिया था। और उनके द्वारा स्वीकृत प्राचीन भारत की श्रेष्ठता से यूरोप को, विशेषतः ब्रिटेन को और कंपनी शासन को मुक्ति दिलाने का बाकी काम जेम्स मिल कर रहे थे। जबान का अंतर था, पालन पोषण का भी रहा होगा, और इसलिए इतिहासकार के रूप में उन्हें अंग्रेजों द्वारा भी भुला दिया गया, परंतु प्रशासकीय मिजाज की जरूरत के कारण, उनका इतिहास आईसीएस के प्रत्याशियों के पाठ्यक्रम का हिस्सा बना रहा।

मिल के इतिहास का नाम ‘हिस्ट्री ऑफ ब्रिटिश इंडिया’ था और यदि उन्होंने ब्रिटिश इंडया का ही इतिहास लिखा होता, पृष्ठभूमि के रूप में मुगल काल के अंतिम दौर को भी ले लिया होता तो यह विषय के अनुरूप होता और उनकी कृति अपने दोषों को छिपा ले जाती। विवेचन भी तर्कसंगत होता। परंतु उनका मुख्य लक्ष्य ब्रिटिश इंडिया का इतिहास लिखना नहीं था, हिंदुओं को सांस्कृतिक रूप में परास्त करना था। कोई पूछे कि मुसलमानों को सांस्कृतिक स्तर पर पराजित करना क्यों नहीं चाहते थे तो इसका एक ही समाधान दिखाई देता, कि सामी मूल्य व्यवस्था के कारण उनसे कोई टकराव नहीं था। जीवनशैली अभी तक मुगलों की अपनाई जा रही थी और अनेक अंग्रेज तो अपने हरम तक बसाने लगे थे। ईसाइयों को यह रास आता था, यदि धर्मांतरण से नहीं तो इस तरीके से ईसाइयत का प्रचार हो रहा था।

प्राचीन भारत के विषय में उनकी जानकारी संस्कृत साहित्य के छुद्रतम अंश तक ही हो पाई थी, जबकि उस समय तक यूरोपीय विद्वानों को यह पता चल चुका था संस्कृत का साहित्य विपुल है। उसका बहुत छोटा सा भाग ही तब तक अनूदित हो पाया था। इसके आधार पर भारत के अतीत के विषय में कोई राय नहीं बनाई जा सकती था। इसलिए मिल को सामान्य स्थिति में उस पर हाथ डालना ही नहीं चाहिए था। जरूरत असामान्य थी और काम भी इतना असामान्य कि यदि उन्हीं जैसे बदहवास इतिहासकार, मार्क्सवादी चोला पहनकर, उन्हें शिरोधार्य न कर लेते तो इतिहासकार के रूप में वह दिवंगत हो चुके थे।