Post – 2018-09-01

कोई समझदार सरकार किसी की इच्छाओं, विचारों और सपनों को अपराध मानकर उसे दंडित नहीं कर सकती। ये उल्टे उसके आत्मसंयम को प्रकट करते हैं कि ऐसे विचार मन में उठते हुए भी उसने आत्म संयम से काम लिया।
नाकर्दा गुनाहों की भी हसरत को मिले दाद
यारब अगर इन कर्दा गुनाहों की सजा है।।
किए गए अपराध के पीछे यह पता अवश्य लगाया जाता है कि यह इरादतन किया गया है या असावधानी में हो गया है।

अपराध की प्रकृति से अधिक कठोर दंड देने वाला भी अपना अनिष्ट करता है क्योंकि इससे विक्षोभ पैदा होता है इसलिए राजतंत्र में भी इसकी सलाह नहीं दी जाती, यह अपराधियों को दंडित करने में शिथिलता के समान ही आत्मघाती है – तीक्ष्णदंडो उद्वेजनीयः, मृदुर्हि परिभूयते, यथार्ह दंडः पूज्यः।

अंग्रेजों ने पूंजीवाद का विनाश करने वाले, मजदूरों को विद्रोह के लिए भड़काने वाले दार्शनिक को इंगलैंड में रह कर अपना लेखन करने ही नहीं दिया, उस ग्रंथ को को प्रकाशित किया, क्योंकि लोकतंत्र के अपने लंबे अनुभव से वे जानते थे कि राजद्रोही दर्शन से भी लोकतंत्र मजबूत होता है। विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रताऔर लोकहित की चिन्ता को छोड़ दें तो उसके पास कुछ बचता ही नहीं।

हमने पश्चिम से लोकतंत्र लिया, लोकतंत्र की मर्यादाओं की शिक्षा लेना बाकी रह गया।