कितना सहयोग है आपस में। वामपंथी संघ पर फासिस्ट फासिस्ट होने का अभियोग लगाते हैं और ऐन वाजपेयी जी के निधन पर संघियों ने अपनी जबान से नहीं (वह तो है ही नहीं बेचारों के पास) अपने आचरण से कहा, “आप ठीक कहते हैं।”
संघी वामपंथियों पर आरोप लगाते रहे हैं कि वामपंथी कठमुल्लों की औलाद है, उनसे भी भी कट्टर, और एक कथित वामपंथी के वाजपेयी विषयक विचार से मुल्लों वाले आक्रोश से थूकने की होड़ करते हुए उन्होंने वही इबारत दुहराई “आप ठीक” कहते हैं और साथ यह भी कबूल किया, “हम रुग्ण है, क्षयग्रस्त हैं, हम थूक सकते हैं, सोच नहीं सकते।”
करकंगन न्याय में विरोधी सिरे एक दूसरे के सबसे निकट होते हैं। “कह कबीर ये दुहूं भुलाने कौन राह ह्वै जाई?”
मेरा लेखन उस रास्ते की तलाश है। वह कंगन को फेंक कर उसके दायरे के भीतर से गुजरता है।