#विषयान्तर
इतिहास में यह कहीं दर्ज न होगा कि जिस व्यक्ति को शिक्षा संस्थानों और पुस्तकालयों से दूर रखा गया वह पूरी जिन्दगी सभ्यता, संस्कृति, भाषा और इतिहास की समस्याओं से जूझ रहा था, जब कि उसी समय, वे, जिन्होंने आजीवन उनमें घुस कर कुर्सियों पर कुर्सियां रख कर ऊपर चढ़ने और तनखाह बढ़ाने की क्रान्तियां की थी वे सरकार बनाने और सरकार गिराने के नए क्रान्तकारी काम से इतनी फुर्सत भी नहीं निकाल पा रहे थे कि उसे पढ़ सकें, कभी पढ़ने की गलती की भी तो यह देखकर घबरा जाते थे कि यह उनकी समझ से बाहर है, कि इस घबराहट के चलते वे मानते थे कि किसी विषय का आधिकारिक ज्ञान आदमी को कूप मंडूक बनाता है, पर यह नहीं जानते थे कि आधिकारिक ज्ञान का अभाव आदमी को कुंए की जहरीली गैस बनाता है और ऐसे लोगों की बढ़ती संख्या ने भारतीय बौद्धिक पर्यावरण को जहरीली गैस से भर दिया है। इतिहास में यह भी दर्ज न होगा कि कूपमंडूक होने से डरने वाले विदेशों से कूपमंडूक आमंत्रित करते थे, उन्हें शिर माथे बैठते थे जब कि दूसरे कुएं का मंडूक छपकोरियां मारता करतब जितना भी दिखाए, उसे आप के कुंओं की गहराई का ज्ञान हो ही नहीं सकता क्योंकि उसे इन पातालभेदी कुओं से डर लगता है।