Post – 2018-05-07

निठल्ला विद्वान मौलिक अधिक होता है, प्रामाणिक कम। उसमें न धैर्य होता है, न पसीना बहाने की आदत, इसलिए वह कहीं से कोई तिनका उठा लेता है और अपने बुद्धिबल से महल खड़ा करके उसे भहराने से बचाने के लिए उससे अपनी पीठ टिकाए तब तक मजबूती से खड़ा रहता है जब तक प्रमाणों के दबाव से वह भहरा नहीं जाता। पर इस बीच वह समाज का जितना नुकसान कर चुका होता हैे उसकी भरपाई कभी नहीं हो पाती। गलत सिद्ध हो जाने पर वह क्षमायाचना तक नहीं करता। वह तब तक दुुबका रहता है जब तक कोई दूसरा तिनका हाथ नहीं लग जाता। ऐसा वह अपने लिए नहीं, मानवता के भले के लिए करता है।