Post – 2018-04-26

शब्द विचार
(पिछली पोस्ट का शेषार्ध)

मेरे पास संस्कृत के दो कोश हैं। एक मोनियर विलियम्स का, दूसरा आप्टे का. आप्टे ने पार्थ का अर्थ युधिष्ठिर, भीम और अर्जुन तथा कृष्ण का अपर नाम दिया है। समाधान अधूरा है। अब हम इसे अपत्यार्थक मान कर उसी कोश में पृथा देखने पर पाते हैं यह कुन्ती का इतर नाम है। अब पार्थ का अर्थ कुन्तीपुत्र हो गया, अर्थात कौन्तेय। पर समस्या बनी रह गई कि कुन्ती को पृथा क्यों कहा जाता था। यहां कोश सहायता नहीं करता। अर्थ की कल्पना आप को करनी है। अत: हम मान सकते हैं कि संभवत: काया से पृथुल थीं। पर यह समस्या बनी रह जाती है कि कृष्ण को पार्थ क्यों कहा गया। क्या इसलिए कि वह स्वयं महाबली थे? संभव है, क्योंकि सूमो पहलवानों की तरह हमारे प्राचीन मल्लों को भी पृथुल काया का माना जाता था – मोटी गर्दन, फूला हुआ पेट, मोटी भुजाएं यह है महाबली इन्द्र का चित्रण – पृथु ग्रीवो, वपोदरो, सुबाहु: अन्धसो मदे । इन्द्र: वृत्राणि जिघ्नते।

पर यह मात्र हमारी ओर से गढ़ी गई एक संभावना है। हो सकता है कहीं किसी के पास इस बात का प्रमाण हो कि या पृथ्वी से इनका संबन्ध किसी ने सुझाया हो। इसलिए मैं आप लोगों के बीच से, जिनमें अनेक का संस्कृत ज्ञान मुझसे बहुत अधिक है, अपेक्षा करता हूँ कि यदि संभव हो तो कोई दूसरा आशय सुझाएँ ।

अब हम गुढाकेश पर आएं। कोश में इसे अर्जुन और शिव की उपाधि बताया गया है, पर आगे कोई खतरा नहीं उठाया गया है। कोशकार लोकमान्य या परंपर में मान्य अर्थ की लक्ष्मण रेखा पार नहीं करता। पहले से ऊटपटांग अर्थ चला आया है, उसे देने में झिझकता नहीं। अदालत की तरह वह जहां विधि व्यवस्था में खोट है, वहां भी, उसी की मर्यादा में निर्णय देता है, पर न्याय करने का दावा नहीं करता। वः फैसले देता है, झगडा निपटाता है, न्याय नहीं करता.

यह मर्यादा तो उसके लिए आप्त है, पर हमारे लिए सदा ग्राह्य नहीं होती। गुडाकेश के साथ हमें दो शब्दों का सामना करना है । एक गुड/गुडा, दूसरा केश। अब इनसे साम्य रखने वाले शब्द तलाशने होंगे। हम गुड के साथ गुडिका=गोली या गुटिका, गुड=गुड़, गुडेर = गोलक, और गुडगुडायन – गले की गुड़गुड़हट, पाते है जो बेकार है। एक मात्र गोलाई वाला अर्थ यहां संगत लगता है, इस दृष्टि से हिन्दी गुड़ या मराठी गोड का मूल अर्थ मीठा न होकर गोलाकार पिंडी हुआ जैसे शर्करा का अर्थ बटिया या बटिकाकार है। इसमें मिठास का भाव इसकी विशेषता के कारण प्रधान हो गया और आकारमूलकता तिरोहित हो गई । केश के साथ जुड़ने पर इसका अर्थ हुआ कुंचित केश या लहराते हुए बाल .

अब एक नया सवाल कि केश में वह कौन सी विशेषता आ गई कि इसे इतना महत्व मिला। दूसरे शिव तो जटा के कारण जाने जाते हैं । अब इसी कोश में केशव/ केशिन् = विष्णु और उनके अवतार कृष्ण का नाम बताया गया है और शब्द का अर्थ सुन्दर बालों वाला,किया गया है। पर गुडाकेश शिव की जटाओं को सुन्दर तो कहा नहीं जा सकता । कोश में दिया अर्थ सटीक नहीं है। यहां हमारा ध्यान दूसरे नामों की ओर जाता है- हृषीकेश= (शब्दश:) = हर्षित या लहराते बालो वाला, अर्थात् कृष्ण, पुरुकेशिन / पुलकेशिन, फा. गेसूदराज । समझ नहीं आता कि बिखरे, लहराते, लंबे बालों के साथ क्या रहस्य जुड़ा है।

यहां ऋग्वेद हमारी मदद करता है। इनमें तीन केशियों के अपने ध्रुव नियम का पालन करते हुए एक पहेली रची गई है:
त्रयः केशिन ऋतुथा वि चक्षते संवत्सरे वपत एक एषाम् ।
विश्वमेको अभि चष्टे शचीभिर्ध्राजि_ एकस्य ददृशे न रूपम् । 1.164.44
विस्तार से बचते हुए हम कहें ये तीनो लम्बे केशों वाले अग्नि (लपटों को शिखा कहा ही जाता है,, सूर्य (जिसकी किरणे केश बन कर चमकती हैं और वायु (जिसकी लहरों के बारे में कुछ कहना ही नहीं ) हैं.
अग्नि के प्रसंग में अन्यत्र भी हरिकेश आदि प्रयोग हैं: ( तं चित्रयामं हरिकेशमीमहे सुदीतिमग्निं सुविताय नव्यसे; ऊर्जो नपातं घृतकेशमीमहेऽग्निं ); और एक बार सूर्य के सन्दर्भ में प्रयोग हुआ है (अनागास्त्वेन हरिकेश सूर्य).

अब यह धुंध पूरी तरह छट जाती है और हमारे मन में कोई दुविधा नहीं रह जाती कि गुडाकेश का अर्थ लहराती शिखाओं वाले अग्नि देव हैं या विकीर्ण किरणों वाले सूर्यदेव हैं. अब समझ में आता है कि अग्नि का एक पर्याय भारत है और इसका प्रयोग भी अर्जुन के लिए हुआ है. अर्जुन का अर्थ भी अग्नि है. औए अब तो आपको यह भी पता चल गया होगा कि मैं कोश को अपर्याप्त क्यों मानता हूँ, पर मुझे पार्थ और गुडाकेश के विषय में केवल इतना ही पता था कि इनका अर्थ अर्जुन है. आज जो पता चला वह पहले से पता नहीं था. लीजिये अब आपको व्योमकेश उपनाम वाले अपने आचार्य के नाम का रहस्य भी पता चल गया. पर गुड पर विचार करते हुए अंग्रेजी के good का ध्यान न आया हो तो गुलेल का उपयोग और इसके लिए बने गोलकों का ध्यान आना ही चाहिए था, हरप्पा काल में पत्थर के इन गोलको का आकार क्रिकेट के बाल के बराबर होता था यह हड़प्पा के एक स्थल रोजडी में मैंने देखा था और एक गोला ले भी आया था. ऋग्वेद में पवि संभवत इसे ही कहा गया है. गोल> गोड़>गुड़।

रहा इसके जल से सम्बन्ध की बात तो गुड का अर्थ गुद = जल की ध्वनि, जल, गोदावरी – सुजला , गुद = रस, आनंद में देख सकते है . रसाल के गूदे या गादे का स्वाद लेकर भी समझ सकते है. सूर्य और अग्नि को अपने नाम जल के पर्यायों से मिले हैं यह हम कह आए हैं.