Post – 2018-04-12

भावजगत और जल- 1

भावनाओं के साथ तो यूं भी -उद्गार, -उद्रेक, -प्रवाह, -आवेग जैसे उत्तरपद लग जाते हैं जिसके बाद जल और आर्द्रता से इनके सहज संबंध के विषय में कोई सन्देह रह ही नहीं जाता। हम समग्र विचार जगत या बौद्धिक आयास को भावलोक में रख कर यह चर्चा करना चाहते हैं। मोटे तौर पर वे सभी संकल्पनाएं जिनको भाववाचक संज्ञाओं रखा जाता है। इनकी संख्या विशाल है और इतना तो बिना कहे भी जाना जा सकता है कि इन सभी पर विचार करना किसी एक आदमी के वश की बात नहीं। अत: चुनिन्दा आंकड़ो के आधार पर अपने मन्तव्य को सही सिद्ध करने के संभावित आरोप से बचने के लिए हम इतना ही आश्वासन दे सकते हैं कि हम बिना किसी योजना के अनायास स्मरण आने वाले शब्दों पर विचार करेंगे और यदि किसी ने अपनी ओर से, परीक्षा के लिए ही सही, कोई शब्द या कार्य-व्यापार सुझाया तो उस पर भी विचार करने का प्रयत्न करेंगे।

स्नेह (प्रेम) स्नेह का मूल अर्थ पानी था। यह उसी स्न से व्युत्पन्न है जिससे स्नान, स्नापित (नापित), अं. Snow, , snail, snake,sneak, snook, snipe. यह रोचक है कि अपनी घपलेबाजी में मारिस ब्लूमफील्ड ने मूल भारोपीय जनों का निवास शीतप्रधान देश में सिद्ध करने के लिए यह तर्क दिया था कि वे हिम से परिचित थे. Vedic Concordance जैसी विख्यात कृति का सम्पादक इतना अनाड़ी नहीं हो सकता. जो लोग वैदिक साहित्य के असाधारण पांडित्य और संस्कृत भाषा पर असाधारण अधिकार रखते रहे हैं वे भी अपनी ख्याति का किस सीमा तक जाकर दुरूपयोग करते रहे हैं, इसका यह एक नमूना मात्र है,

स्न सर / स्र का वह रूप है जो नासिक्य प्रेमी समुदाय के सांस्कृतिक धारा में प्रवेश का परिणाम था. राजवाड़े ने इनकी वर्तमान में पहचान गुजरात के दक्षिणी अंचल में की थी. गुजराती और सिन्धी पशु व्यापार में अग्रणी थे और इन्होने मध्येशिया में एक बड़े क्षेत्र में अपना कारोबार जमाया था जिसकी उलटी व्याख्या करते हुए वे ही पश्चिमी पंडित सिंतास्ता (सिंधियों का या सैन्धव क्षेत्र) और अन्द्रोनोवो (अन्ध्रवृष्णिकों का नया क्षेत्र ) से चलने वाले आर्यों का आक्रमण दिखाते रहे, जब कि स्थिति उल्टी थी और थी भी आक्रमण के कारण नहीं, पशुपालन विद्या में इनकी अग्रता और पशु व्यापार में रूचि के कारण. यह कम रोचक नही है की वैदिक भाषा पर भी इनकी बोलियों का असर पडा था, पर अधिक नहीं, अतः स्न वाले रूप संस्कृत की तुलना में यूरोपीय बोलियों पर अधिक स्पष्ट है.

श्र = श्रयण, श्रव =स्राव, यश
श्रत-= सत्य-, श्रद्धा =निष्टा पूर्वक विश्वास भाव,
श्रम (पसीना लाने वाला काम),
श्रथ (थक कर निढाल),
श्लथ (थकान के बाद ढीला पड़) ,
शिथिल (ढीला, लापरवाह) आदि के व्युत्पादन में स्र/ स्ल/श्र की भूमिका थी जिससे अंग्रे. के shrink, slim, sleek, slink, slip, slow, sloth, sling आदि की उत्पत्ति की संभावना है.

श्री (सिर/ शिर / चिर; सिरि/ शिरि /चिरि)

घृणा ( घृ- क्षरण – छलकने की ध्वनि) >घृत – पानी (घृतं क्षरन्ति सिन्धवः)> रूधार्थ – घी; घृणि – धूप, पसीना । घृणा – करुणा , बौद्ध मत के विरोध में अर्थपरिवर्तन – घृणा- नफरत.