Post – 2018-03-30

जल की पवित्रता और मलिनता

आज जब विज्ञान के सामी मजहबों से टकराव के बाद विज्ञान ने यह घोषित कर दिया कि ईश्वर नहीं है या उसके साहित्य प्रेमियों ने अपने शब्दों में कहा कि ईश्वर मर चुका है, तब भी हिंदुओं के ईश्वर पर कोई आंच नहीं आई, क्योंकि इन्होंने बहुत पहले से यह तय कर रखा था परम सत्ता इंद्रियातीत है, ज्ञानातीत है। विज्ञान ने उसे ध्यानातीत तो माना नहीं। योग की सिद्धियों की तरह की तरह ब्रह्म की भारतीय अवधारणा तक विज्ञान की पहुंच न हो सकती थी ना हो पाई और नहीं वह उसका खंडन कर सकता है जो भारतीय तत्व चिंतक बहुत प्राचीन काल से कहते और मानते आए हैं।

अपने अनुभव के आधार पर मैं ईश्वर में विश्वास करता हूं परंतु मानता हूं ब्रह्म और माया के द्वन्द्व मैं ब्रह्मा माया के सम्मुख लगभग असहाय अनुभव करता है, भूत और चित के बीच भूत ही प्रधान है और चित उसके वशीभूत।

मेरा भौतिकवाद चित के निषेध पर नहीं, भूत के प्राधान्य पर आधारित है। यह मेरा निजी विचार है और न तो किसी अन्य के प्रमाण पर आधारित है, न ही मैं दूसरों को इसका कायल बनाना चाहता हूं। इसीलिए मैंने एक बार विनोद में कहा था की पश्चिम में ईश्वर की मौत हो भी जाए तो भारत में उसकी मौत नहीं हो सकती क्योंकि यहां ब्रह्मांड में जो कुछ है उसी को को ब्रह्म मान लिया जाता है. इसीलिए अलग और दूर बैठी किसी सत्ता की आवश्यकता ही नहीं पड़ती। या पड़ती है ऐसी सत्ता से जिसे विज्ञान भी नकार नहीं सकता, जैसे जल। आपो वै सः। जो हुआ और होने वाला है सब वही है, पुरुष एव इदं सर्वं यत् भूतं यत च भव्यम्। ऐसे ब्रह्म का अंत तो सृष्टि के अंत के साथ ही हो सकता है और उसके बाद भी वह जब शून्य में संकुचित हो जाएगी, शून्य भी तब तक ब्रह्म बना रहेगा जब तक अगली सृष्टि आरंभ नहीं हो जाती ।

परंतु यहां यह तत्ववादी मीमांसा इसलिए ध्यान में आ गई कि भाषा की उत्पत्ति पर विचार करते हुए मुझे लगा मनुष्य महाप्रकृति के समक्ष इतना लाचार प्रतीत होता है है कि अपनी भावनाओं क्रियाओं और भौतिक उपादानों के लिए सही और अर्थ विच्छेदक शब्दों का निर्माण तक नहीं कर सका। भले नादजगत प्रकृति का था, परंतु उसमें से चुनाव तो मनुष्य को ही करना था। नहीं कर सका।

यदि उसका वश चलता है तो उसने कम से कम नितांत प्रिय और अप्रिय, पवित्र और अपवित्र, मित्र और शत्रु, परस्पर विरोधी गुणों और क्रियाओं के लिए एक ही संज्ञा का चुनाव न किया होता। भाषा का आविष्कार संकेत प्रणाली की सीमाओं के कारण निश्चित अर्थ संचार करने के लिए गया था। यदि कथन का सही अर्थ ही पता ही न चले, उसका उल्टा अर्थ भी लगाया जा सके, तो वह अपनी भूमिका का निर्वाह नहीं कर पाती। अब इसी संदर्भ में शब्दों की पड़ताल करेंगे यथासंभव का समाधान करने का भी प्रयत्न करेंगे।

इन शब्दों पर ध्यान देंः पा = जल, पी =जल, पान कर, पेय = जल, पीतु= जल, और दूसरी ओर पित्त, एक ओर पुरीष जिसका अर्थ मल होता है और दूसरी तरफ पुरीषिणी – सुजला। पय = जल, पूय= पीब, मवाद, पू= जल, पुड़ि – सुराही, मशक, पुट = पानी, पानी का छींटा, पुटक = कमल, पुटिया = छोटी मछली, पुटकी= मोटरी, पुण्य – जल पिला कर प्यासे को तृप्त करना, लोकहित, पुत> पूत>पुत्त> पुत्र = संतान, पुताई = लिपाई, पुत्ती – कंद से फूटने वाला अंकुर ,
(निरन्तर व्यवधान के कारण अपूर्ण)