Post – 2018-03-29

आ जाती तो अक्सर है जबां तक मेरी आवाज
पर धौंस बुढ़ापे की वह बाहर नहीं होती।
कहता हूं मैं कुछ और समझते हैं लोग और
जाहिर है कि मंशाा मेरी जाहिर नहीं होती।।

लिखते हो व्याकरण तो समझते हैं काव्य हम
हमको तो कभी तुमसे शिकायत नहीं होती।
चाहा किसी का दुनिया ने समझा है कभी क्या
समझा अगर होता तो यह हालत नहीं होती।।