केदारनाथ सिंह का चला जाना मर्माहत करने वाला है. मै पुणे में था जब खबर मिली थी उनके एकाएक बीमार पड़ने की. उसके बाद कोई समाचार नहीं. सोचा स्वस्थ हो गए होंगे. वह मेरे सबसे प्रिय कवियों में उस समय से थे जब १९५५ में आजकल में उनकी कविताएँ पहली बार पढने को मिलीं. व्यक्ति रूप में अजातशत्रु. ऐसे लागों की कमी होती जा रही है.