तों सम कौन कुटिल खल कामी
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मैं सामान्यत: ऐसे प्रश्नों का जवाब देने से बचता हूं जो मेरी पोस्ट में चर्चित विषय से असंबद्ध हों। कारण दो हैं, मेरी जानकारी सीमित है। सभी प्रश्नों का उत्तर देना मेरे सामर्थ्य से बाहर है। दूसरा, यदि विषय की जानकारी हुई भी तो भी विषयान्तर होने पर, जिस विषय पर लिख रहा हूं, उससे हटने पर विचार प्रवाह भंग होने पर आगे लिखना रुक जाता है। इसके बाद भी मेरे मित्र और माकपान्केद्रीय कमेटी के सदस्य, जोगेन्दर शर्मा ने न्यजी लैंड के गाड जोन के ब्रायन नाम के व्यक्ति का विनोद कुमार द्वारा अनूदित लेख इसलिए मेरे टाइम लाइन पर टैग किया है कि मेरी प्रतिक्रिया से दूसरे लाभान्वित होंगे।
संक्षिप्त प्रतिक्रिया देना मेरे स्वभाव में नहीं। संक्षेप में गाली दी जाती है, आदेश दिए जाते हैं और नारे लगाए जाते हैं। मैं समस्या को समझने, उसकी जड़ तक जाने का प्रयत्न करता हूं और बहस कई शाखाओं में फैल जाती है। लंबी चर्चा के बाद भी अधूरापन बना रह जाता है। जानकार लोग दूसरों से जो कुछ जानते हैं उसके मुहावरे जानकारी के स्रोतों से प्राप्त होते हैं उसे कह लेना उनके लिए आसान होता है। मैं जानता नहीं, प्रत्यक्ष देखता हूं और दृश्य को वाणी दे पाना कठिन भी होता है और कभी पूरा नहीं हो पाता। जोगेन्दर ने प्रतिक्रिया जानने के लिए इसे भेजा भी नहीं है। यह हिन्दुत्व को और हिन्दुओं को गर्हित सिद्ध करने के लिए और साथ ही इसका उद्धारक बन कर धर्मान्तरण के लिए ईसाइयों द्वारा जो अभियान चलाया जा रहा है, उसी का हिस्सा है। यह उसका भर्त्सना वाला पक्ष है जिसमें इंगित है कि भारत में व्याप्त भ्रष्टता का कारण हिन्दुत्व है, भ्रष्टाचार इसके मूल में है और हिन्दुत्व को मिटाकर यदि सभी को ईसाई बना दिया जाय तो इससे मुक्ति मिल सकती है। जोगेन्दर ने इसे मुझे भेज कर यह प्रमाणित किया है कि वह और कम्युनिस्ट पार्टियां इस अभियान के साथ हैं। इससे मेरी जानकारी में वृद्धि नहीं हुई है क्योंकि मैं पहले इसे लिख चुका हूं कि कम्युनिस्ट पार्टी की जन्मघुट्टी में ही लीग का जहर घुल गया था इसलिए उसका मुख्य कार्यभार हिन्दूद्रोह है और वह हिन्दुत्व को अपमानित करने और मिटाने के लिए किसी हिन्दुत्व द्रोही का साथ दे सकती है।
इस सद्प्रयास के लिए मैं जोगेन्दर को धन्यवाद देता हूं कि इतने दूर की कौड़ी उन्होंने इतने दुष्कर क्षेत्र से जुटाई जहां जहां भ्रष्टाचार का नाम नहीं है, पर भ्रष्टाचार से इतना प्रेम है कि वहां के लोग दुनिया के सबसे भ्रष्ट देशों का ही नहीं वहां के सबसे भ्रष्ट धार्मिक समुदाय का पता लगाने पर और वहां के लोगों को यह बताने पर खर्च करते हैं, ‘गाड जोन’ जिससे भ्रष्टाचार डरता है, उसमें प्रवेश करने का सबसे आसान रास्ता क्या है और भारत के कम्युनिस्टों को यह समझने के लिए कि हिन्दूधर्म दुनिया का सबसे भ्रष्ट धर्म और हिन्दू दुनिया के सबसे भ्रष्ट लोग हैं ऐसे ही विद्वानों की तलाश रहती है। अपनी पवित्रता का इससे अच्छा प्रमाण कम्युनिस्टों को नहीं मिल पाता और इस पवित्रता की रक्षा के लिए वे हिन्दू समाज से परहेज करते हैं, और हिन्दू समाज ज्यों ज्यों उनके इरादे समंझता जाता त्यों त्यों उनकी पवित्रता की रक्षा के लिए स्वयं उनसे दूर हटता जाता है। इसके परिणाम जैसे हो सकते हैं वे सामने हैं। केशवदास ने भारतीय कम्युनिस्टों को लक्ष्य करके तीन सौ साल पहले ही लिखा था, “चेतना ही न रही चढ़ि चित्त सो चाहत मूढ़ चिताहू चढ़्यो रे।” यदि चेतना होती तो भारत को और हिन्दू धर्म और समाज को अपनी आंखों देखते और अपनी अक्ल से समझते, न्यूजीलैंड के गाड लैंड के किसी फरिश्ते पर भरोसा नहीं करते। मेरी समस्या यह है कि माकपा जैसी भी क्यों न हो, मेरी उससे सहानुभूति रही है और मैं उसकी अन्त्येष्ठि का जश्न नहीं मना सकता।
मैं अपने विचार दो खंडों में रखना चाहूंगा। पहले में तथ्य निरूपण और दूसरे में हिन्दुओं के विषय में विविध देशों, विविध धर्मों और अनेक कालों के ऐसे लोगों के विचार। दीर्घता के कारण इसे दो बार पोस्ट करूंगा स्वतत: । जिन्हें समझना हो वे दोनों को पढ़ें।
जहां तक मेरी प्रतिक्रिया से लाभ उठाने का प्रशन है पिछले ४१ साल से मैंने दसियों बार समझाया है, पर मुझ नाचीज से वे कभी कुछ न सीख सकते थे न सीखेंगे फिर भी पहली बार सीखने की इच्छा प्रकटकी है तो कर्तव्य निर्वाह के लिए बता दें:
१. ब्रायन के न आगे कुछ है न पीछे, नाम मानो तो उपनाम गायब, उपनाम मानो तो नाम, इतना विख्यात यह है नहीं कि इतने से पूरे नाम का स्मरण हो जाय, इसलिए यह नाम फर्जी है।
२. ईसाइयों के द्वारा भारत में हिन्दुत्व के विरोध में बहुत गर्हित, धूर्ततापूर्ण तरीक आरंभ से ही अपनाए जाते रहे है, इनमें निरंतर बृद्धि हुई है, जिसके उदारण देने की जरूरत नहीं है। ईसाइयत का वैचारिक आधार इतना लचर, इतिहास इतना क्रूर, वर्तमान योजनाएं इतनी गर्हित हैं कि वह पाखंड, प्रलोभन और दुष्प्रचार के बल पर ही आगे बढ़ सकता है।
३. बात इतिहास की की गई है इसलिए यह समझना जरूरी हो सकता है कि हिन्दुत्व के साथ भी पाखंड जुड़ा रहा है पर दूसरे धर्मों से कम। इसमे आत्मालोचन, सुधार, और अनर्गल के उपहास की जितनी छूट रही है, जितने विद्रोही आन्दोलन हुए हैं, वैसा किसी दूसरे धर्म या संप्रदाय में नहीं। एक ही परिवार के लोग आस्तिक, नास्तिक, विभिन्न देवों के उपासक रह कर पूरे सौहार्द से रह सकते थे और रह सकते हैं इसका दूसरा उदाहरण नहीं। इतिहास का पक्ष दूसरों की जबान से दूसरे खंड में।
४. यह सच है कि भारत का स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही अपने हिस्से की तलाश के साथ तेजी से नैतिक स्खलन हुआ है, और हिन्दू समाज इसका अपवाद नहीं, पर यदि इस काल रेखा से पहले के हिन्दू धर्म और समाज के नेताओं और लोगों की भी तुलना की जाय तो अन्तर समझ में आ जाएगा और समझ में यह भी आ जाएगा कि कारण दूसरे हैं जिसमें राजनीतिक अवसरवाद, उपभोक्तावाद, परंपरागत मूल्यों का ह्रास, शहरीकरण से उतपन्न सामाजिक दबाव की कमी, कार्यसंस्कृति का ह्रास, जनसंख्या का दबाव और अवसरों की कमी के करण संफलता के चोर दरवाजे तलाशने की होड़ और जाने कितने सारे कारण हैं पर इसमें हिन्दू ही नहीं किसी धर्म की भूमिका नहीं। मार्क्सवादी समझ रखने वालाे को पता यह लगाना चाहिए कि यह गिरावट आई कैसे तो समझ में आ जाएगा कि धर्म के राजनीतीकरण, राजनीति का सेकुलरिज्म की आड़ में हिन्दू द्रोही हो जाना और आस्था और निष्ठा की जड़ों पर प्रहार करते हुए मूल्यविमुखता के उत्थान और प्रसार में भारत की कम्युनिस्ट पार्टियों की भी इसमें सक्रिय भूमिका रही है।