मैक्समुलर का काल निर्धारण और हड़प्पा सभ्यता
हड़प्पा सभ्यता का पता चलने के बाद वे सभी अपेक्षाएं पूरी हो जाती थी जिनकी कल्पना या अनुमान जोंस ने एक पूर्ववर्ती भाषा, संस्कृति और ‘सभ्यता’ की साझी विरासत के रूप में किया था। लेकिन जिन जरूरतों से आक्रमण का ताना बाना रचा गया था उनकी राह में यही सबसे बड़ी चुनौती थी। मैं इसे कुछ स्पष्ट करना चाहूंगा:
ऋग्वेद का काल निर्धारण करते हुए मैक्समुलर ने एक यांत्रिक तरीका अपनाया था। इसमें उनका कहना था कि प्रत्येक चरण में आए परिवर्तन में कम से कम इतना समय तो लगा ही होगा। वह उन लोगों का विरोध कर रहे थे जो डूगल्ड स्टीवर्ट के प्रभाव में ऋग्वेद के लिए बहुत कम प्राचीनता की जिद पर अड़े थे। उनका वश चलता तो वह वेद को सर्वाधिक पिछड़ा धर्म सिद्ध करने के लिए किसी अन्य अध्येता द्वारा सुझाई गई प्राचीनता से भी प्राचीन कृति मानने को तैयार थे । उनका लिखा संस्कृत साहित्य का इतिहास ब्राह्मणों के साहित्य की आदिमता दिखाने तक सीमित था। वेद को वह मानव सभ्यता के शैशव की कृति मानते ही थे, और इसकी अनेक ऋचाओं को चाइल्डिश टु दि इक्स्ट्रीम भी मानते थे। १८९२ में ऋग्वेद संहिता (चौखंभा, १९६६) के प्राक्कथन में वह स्वीकार करते हैं:
To assign any definite date to the first and or the last Rishis is clearly impossible; yet looking at the numerous relics of that early age, I ventured to suggest 200 years as a minimum which few , acquainted with the early history of mankind could consider extravagant. I thus arrived at about 1200 B.C. as the latest date at which we may suggest the Vedic bards settled in northern regions of the Indian continent. I pointed out repeatedly, that beyond the frontiers of the Sutra period 600-200 B.C. our chronological measurement must necessarily be of merely a hypothetical charrector, yet I felt convinced that those who from an intimate acquaintance with the Vedic literature are most competent to form an opinion as to the time required for the growth, the maturity and its decay, would allow that the minimum duration assigned by me to the Brahmanas, mantra and Chandas period were below, rather than average duration of similar periods ln the intellectual history of other nations. ix
वह फिर दुहराते हैं,
While Prof. Wilson and Barthelemy, Saint Hillare, Prof. Whitney too, the learned editor of the Atharv Ved and Surya Siddhnt, has expressed the conviction that the chronological limits assigned by me to the four periods of Vedic literature are too narrow rather than too wide. xii
और Physical religion, 1890′ p. 14 पर पुन:
Whether the vedic hymns were composed 1000, or 1500, or 2000, or 3000 years B.C. or earlier no power on earth will ever determine.
हड़प्पा सभ्यता को अवैदिक सिद्ध करने के लिए जिस एक मात्र कुतर्क का सहारा लिया जाता रहा है वह रहा है मैक्समूलर का काल निर्धारण पर क्या वह स्वयं किसी ऐसी सीमा को मानते
थे जो इनकी अभिन्नता में बाधक बन सके?