Post – 2018-01-22

बतंगड़
(संपादित )

हमने यह बात सरसरी तौर पर कह दी कि हजार बारह सौ साल संस्कृत भाषियों का मध्येशिया से लेकर लघु एशिया तक अश्व व्यापार के चलते प्रभुत्व रहा और इसी क्रम में संस्कृत का यूरोप तक प्रसार हुआ। यह बात बहुतों की समझ में नहीं आएगी। कारण कई हैं, पर सबसे बड़ा कारण यह है कि जब पुरातत्व, नृतत्व, साहित्य, भाषा सभी से यह सिद्ध हो चुका है कि न तो आर्यों की कोई जाति थी, न ही भारतीय उपमहाद्वीप में किसी जनसमूह का साढ़े चार हजार साल ख्रिष्टाब्द पूर्व से आठ सौ ख्रिष्टाब्द पूर्व के बीच किसी रूप में प्रवेश हुआ था, तो भी राजनीतिक कारणों से जेएनयू के प्रोफेसर, छात्र, और उससे निकले बुद्धिजीवी सभी एक सुर से आज भी आर्य आक्रमण की बात पूरे विश्वास से दुहराते रहते हैं। इसमें उनकी हितबद्धता है क्योंकि इसस सत्तर में प्रस्तावित भारत को खंड खंड करने की उस घिनौनी किलपैट्रिक योजना को पूरा करने में उन्हें मदद मिलती है जिसके बौद्धिक उत्तराधिकारी आज के तथाविज्ञापित मार्क्सवादी और सेकुलरिस्ट हैं जो यह भूल चुके होंगे कि पश्चिमी पाकिस्तान के अपने ही पूर्वी हिस्से के मुसलमानों पर किए जा रहे अवर्णनीय अत्याचारों के विरुद्ध बांग्लादेश मुक्तिवाहिनी के उठ खड़े होने के कारण भारत में उमड़ रहे शरणार्थियों के सैलाब से परेशान इन्दिरा जी ने इसके कूटनीतिक समाधान के लिए अमेरिका के प्रेजिडेंट निक्सन और हेनरी किसिंगर से मुलाकात की थी। इस आपदा का लाभ उठाते हुए उन्होंने उन पर दबाव डाला था कि भारत को सोवियत संघ से दूरी बनानी चाहिए और अमरीका से संबंध सुधारना चाहिए। इन्दिरा जी ने मानवता से आधार पर और लोकतांत्रिक मूल्यों की र क्षा के आधार पर अमेरिका से सहयोग चाहा था न कि राष्ट्रीय नीतियों में समझौते के आधार पर। वह दृढ़ रहीं और यह निक्सन सरकार को इतना खला था कि किसिंगर ने उनके लिए गाली तक का प्रयोग किया था। शी इज ए बिच। उसके बाद लौट कर यह जानते हुए कि अमेरिका पूरी तरह पश्चिमी पाकिस्तान के साथ है वह कठोर फैसला लिया था जो इतिहास का हिस्सा है। अमेरिकी युद्धपोत जब तक हिन्द महासागर में प्रवेश करें, पाकिस्तानी जनरल ने हथियार डाल दिए थे। पाकिस्तान सिकुड़ कर पश्चिम तक सीमित रह गया था। किलपैट्रिक की बाल्कनाइजेशन आफ इंडिया इसी का जवाब थी और उस समय से ही यह पाकिस्तान की महत्कांक्षी योजनाओं में से एक है । कश्मीर में उसकी हर कीमत पर दखलअन्दाजी उसी नीति का विस्तार।

मार्क्सवादियों को मार्क्स के जो जुमले बहुत पसन्द है उनमें से एक है “इतिहास अपने को दुहराता है, पहले त्रासदी के रूप में और फिर भड़ैती के रूप में”(History repeats itself, first as tragedy, second as farce.) उसी इन्दरा जी के वंशधर और उसी कांग्रेस के उत्तराधिकारी होने का दावा करने वाले और उसी कम्युनिस्ट पार्टी के उत्तराधिकारी जिससे दूरी बनाने को इन्दिरा जी खतरा उठाकर भी तैयार नहीं हुई थी, जब किलपैट्रिक की पाकिस्तान द्वारा चलाई जा रही भारत को खंड खंड करने की निरंतर योजनाएं बनाते और कार्यान्वित करते हुए “भारत तेरे टुकड़े होंगे, इंशां अल्ला ! इंसां अल्ला!!” का नारा नेहरू विश्वविद्यालय में लगाने वालों के साथ खड़े होते हैं तो मार्क्सवाद की कम समझ रखने के कारण मैं तय नहीं कर पाता कि इतिहास अपने को त्रासदी के रूप में दुहरा रहा है या भड़ैती के रूप में? कोई कांग्रेसी यह बता पाएगा कि इन्दिराजी के समय की कांग्रेस सोनिया और राहुल युग में चित्त पड़ी है या पट्ट।

अपने तईं मैं केवल यह बता सकता हूं कि खरदिमाग किलपैट्रिक के विषय में एक आलोचक ने टिप्पणी की थी कि She is more fool than Fascist. अब टुकड़़े करने का खेल खेलने वाले, (वे पद्मावती के सम्मान की आड़ में अपने ही देश में आग लगाने वाले भी हो सकते हैं) स्वयं तय करके बता दें कि वे फासिस्ट से अधिक मूर्ख हैं या मूर्ख से अधिक फासिस्ट तो उनकी ईमानदारी पर विश्वास बढ़ेगा।

गलत इतिहास की राजनीतिक कारणों से फसल उगाने वाले, केवल गलत ही नहीं होते, वे अपनी सारी ताकत सही इतिहास से ध्यान हटाने में लगा देते हैं, इसलिए उनका मुकाबला, उनकी ही करनी से पैदा हुआ उससे भी गलत इतिहास ही बन पाता है जिसका प्रचार उसका मजाक उड़ाने के लिए वे स्वयं करते हैं। यदि ऐसा न होता तो मुझ जैसे संपर्क से कटे और कोने में दुबके व्यक्ति को पता ही नहीं चलता कि डार्विन का उद्विकास का सिद्धान्त गलत है क्योंकि बन्दर से आदमी पैदा नहीं हो सकता, यह भाजपा से जुड़े एक मंत्री को पता चल गया है, और अब मोहेंजोदड़ो के मध्य चरण पर जो अग्निकांड हुआ था वह उस ब्रह्मास्त्र का परिणाम था, जिसे महाभारत युद्ध के अन्त में चलाया गया था । वास्तव में यह परमाणु बम था, और इस लिहाज से परमाणु बम का आविष्कार भारत में पांच हजार साल पहले हो गया था। भले ये लोग राजनीति करने वाले लोग हों पर इनके प्रति मेरा सम्मान बढ़ गया है और गुस्सा इस इतिहास का उपहास करने वालों पर आ रहा है।

इसके दो कारण हैं। पहला यह कि इन्होंने यह साबित कर दिया कि सत्ता के भरोसे एक तरह का मूर्खतापूर्ण इतिहास लिखने वालों को, सत्ता बदल के बाद बदला हुआ मूर्खतापूर्ण इतिहास आरंभ करने वालों का सम्मान करना चाहिए कि ये उनकी ही परंपरा को आगे बढ़ा रहे हैं, न कि उपहास। इससे छोटे बड़े का लिहाज करने की युगों पुरानी परंपरा की रक्षा होगी। जैसे छोटा बड़े का चरण छूता है उसी तरह छोटे मूर्ख को बड़े मूर्ख का सम्मान करना चाहिए। तय उन्हें ही करना है कि वे छोटे हैं या बड़े।

दूसरा कारण यह है कि ये कोई नई बात नहीं कर रहे हैं। दो तीन दशक पहले से अमेरिका के ईसाई इंटेलिजेंट बिगिनिंग के नाम से कर रहे थे, और सुमेरी सभ्यता के जन्मदाता के रूप में एलिंएंस की भूमिका पर लेख आदि लिख रहे थे तो इन्होंने उसका मजाक नहीं उड़ाया, अपितु अपनी सेवाएं ईसाइयत के प्रचार के लिए पर्यावरण तैयार करने के लिए अर्पित करते रहे, क्योंकि सेकुलरिज्म की उनकी खास समझ के अनुसार एनीथिंग अदर दैन हिन्दुइज्म इज सेकुलर ऐंड साइंटिफिक, वह सन्तों का चमत्कार हो या हीलींग टच आफ दि होली। एक बात और याद दिला दें कि अपने प्राचीन साहित्य से ऐसे ही तुक्के भिड़ाते हुए चीनी इतिहासकारों ने बहुत से दावे किए थे जिनमें से अनेक को नीढम को मानना पड़ा था, इसलिए नकारात्क सोच से यह तुक्केबाजी भी अच्छी है।

लीजिए, संस्कृत के प्रचार का तन्त्र, और मध्येशिया से लेकर लघु एशिया तक चलने वाले हजार डेढ़ हजार या इससे भी लंबे समय तक चलने वाली गतिविधि पर तो बात ही न हो पाई।