Post – 2018-01-14

१. न्यायपालिका का एक भर्त्सना वाक्य है ‘मीडिया ट्रायल’, अर्थात् संचार माध्यमों से दवाव बना कर निर्णय को प्रभावित करना। असन्तुष्ट जजों ने स्वयं मीडिया ट्रायल का सहारा लिया, यह अक्षम्य अपराध है।
२. अभी तक न्यायालय सही गलत के निर्णय के लिए सर्वोपरि था जिसके निर्णय को उच्चतर न्यायालय में ही चुनौती दी जा सकती थी। इन जजों ने मीडिया को सर्वोपरि बना दिया, जो न्यायांग पर कुठाराघात है।
३. रोस्टर की निर्धारित प्रक्रिया के निर्वाह से लोकतंत्र के लिए खतरा पैदा हो गया, जैसी उत्तेजक टिप्पणी करने वाले लोग संतुलित भाषा और सन्तुलित बुद्धि के व्यक्ति नहीं हो सकते। यह राजनीतिज्ञों की भाषा है और उनके किसी राजनीतिक दल से जुड़े ही नहीं उसके इशारे पर काम करने का प्रमाण है।
४. न्यायविचार में सेंसिटिव कुछ नहीं होता। सेंसिटिविटी वस्तुपरकता का अभाव है। ऐसे जज जाति और धर्म के अनुसार निर्णय करके अपनी जाति और धर्म के अनुसार पक्षपात करते रहे हैं।
ऐसा मेरा विचार है जिसे यदि उन्होंने इस सार्वजनिक डोमेन में न ला दिया होता तो कुछ कहने का मेरा साहस न होता।