Post – 2018-01-11

बौद्धिक लकड़बग्घे (3)

‘एक भरोसो एक बल एक आस बिस्वास
हुलसी मोदी जदि हटे निसि-दिन होय प्रकास’
पर हटे कैसे यह लकड़बग्घ बुद्धि की समझ में नहीं आता ।
– करना तो कुछ होगा, बिना कुछ किए तो हटने वाला नहीे। सोचो, सतह पर उपाय नहीं सूझता तो जमीन में धंस कर सोचो।
– जमीन में तो धंस ही चुके है, ऊपर से मिट्टी पड़ना ही बाकी है।
– फिर ऐसा करो कि देश को ही तोड़ दो। न रहेगा देश न रहेगा उसका राज। जब उसका नहीं रह जाएगा तब हमारा अपने आप हो जाएगा।
– पर हममें से किसका, या किसके हिस्से में कौन सा टुकड़ा यह तो तय करो।
– वह बाद में तय कर लेंगे, या जिसके हाथ जो लगा वह उसका। पहले तोड़ो फिर बांटेंगे।
– पर टूटेंगा कैसे। सभी तो डरे हुए हैं। सभी असुरक्षित हैं। दुनिया को पता है भारत में तानाशीही हे, जबान खोलते ही गोली मार दी राती हे।
– जिन देशों को यह मालूम हे उनकी मदद लेंगे, जिन देशों की भारत से दुश्मनी है उनकी मदद लेंगे, जो भारत को तोड़ कर अपने में जोड़ना चाहते हैं उनका साथ। तोड़ना भारत को है तो भारत को तोड़ने वाले सभी हमारे दोस्त हे. दुश्मन का दुश्मन अपना दोस्त होता है। वह भीतर हो या बाहर, संसद में हो या सड़क पर, न्यायालय में यक अन्यायालय में. तोड़ने के लिए जुड़़ो, जोड़ने वालेो को तोड़ो। समय आ गया हे, सेकुलरिज्म को बचाने के लिए देश की बलि देनी होगी।
– बात तो समझ में आती हे ॉ, यार।