Post – 2018-04-16

संताप सूचक शब्द और जल (१)

महिमा परक और विपुलता सूचक शब्दों पर विचार करते हुए हमने अर और अल पर भी विचार किया था। परंतु आज हम संताप, पीड़ा,और यातना से जुड़े शब्दों के संदर्भ में इस पर पुनर्विचार करने जा रहे हैं। अर/आर का अर्थ है जल, यह हम पहले देख आए हैं।

अर/ अल =जल बचपन में परिवार में मैंने आरो आना का प्रयोग सुना था जिसका अर्थ था पुरानी याद या आत्मीय की दशा देखकर करुणा से भर जाना । एक दूसरा शब्द का अरुआना – बासी भारत का गर्मी के प्रभाव से सड़ने से पहले पनियल हो जाना। अर्ण = ज्वार, अर्णव = समुद्र, अर्च , अर्ज, अर्क = सूर्य, अर्घ का उल्लेख हम पहले कर आए हैं और यह संकेत कर आए हैं एक और इसका संबंध जलसे है तो दूसरी ओर प्रकाश और रंग से भी जिससे सूर्य और उमके रंग के लिए अरुण, अरुष, अरुंधति, अर्क, अर्जुन का जनन करता है तो दूसरी और अर्घ, अर्चना, अर्ज । अर्ज (* जल पैदा करना, धन पैदा करना,)।
आर्त का मूल अर्थ है ‘प्यास से विकल’, और इसका अर्थ विस्तार हुआ ‘किसी अभाव या आवेग से विकल’ के रूप में . अब इस विविधता के कारण इसके निश्चित अर्थ के लिए उसका नाम जोड़ना जरूरी समझा जाने लगा, जिससे क्षुधार्त, कामार्त, जैसे शब्दों की उत्पत्ति हुई. । अब आर्त का अर्थ ‘कातर भाव से किसी चीज की याचना करने वाला हो गया’ । आर्तनाद में मरणान्तक पीड़ा अनुभव करते हुए सहायता की पुकार लगाने का भाव प्रमुख है । आरती शब्द उसी अर- निकला है जिससे आर्तनाद । भारत में दीप की परिक्रमा कब आ गई यह हम नहीं जानते। आरती का शाब्दिक अर्थ किसी कामना की पूर्ति के लिए देवता को याद करना ।

अधिक रोचक है अरार – दरका हुआ कगार, अरराना = कगार या किसी पेड़ का टूट कर गिरना और अराल – ‘टेढा या तिर्यक, या झुका हुआ । अराल पर्वतमाला से इसका कोई संबंध है या नहीं यह हम नहीं जानते ।

परंतु अर का प्रयोग नुकीले डंडे के लिए एक हुआ, जो खेती की आदिम अवस्था में बीज को मिट्टी में दबाने के लिए जमीन को पहुंचने के लिए प्रयोग में लाया जाता था । आर्य शब्द की उत्पत्ति इसी के प्रयोग के कारण हुई और जल का पवित्र और पूज्यता का भाव भी इसमें जुड़ गया और आर्य अर्य = पूज्य भी हो गया ।

अर का प्रयोग नुकीले सिरे वाले किसी भी उपकरण के लिए होने लगा जिससे पहिए के अरों को भी अर कहते थे और शरीर का तापमान जांचने के लिए वह यन्त्र (थर्मामीटर) जो मुंह में लगाया जाता है उसके अगले सिरे के पतला होने के कारण आला कहते हैं । कहें नुकीलेपन का आशय अल के साथ भी जुड़ा रहा।

हमारी चेतना में शब्दों के आदिम अर्थ इतने रहस्यमय तरीके से बने रह जाते हैं कि हम नई चीजों के लिए भी उनका प्रयोग कर लेते हैं, यह हमारी समझ में नहीं आता ।

जो भी हो, कठोर फलक पर लिखने के लिए नुकीले यंत्र का प्रयोग किया जाता था उसके लिए भी आरा शब्द का प्रयोग किया जाता है जो अंग्रेजी में awl बना है। ऋग्वेद में इसका दो बार प्रयोग हुआ है जहां सायण इसका अर्थ तीक्ष्ण लौहाग्रदंड करते हैं :
आ रिख किकिरा कृणु पणीनां हृदया कवे ।
अथ ईंम अस्मभ्यं रन्धय ।। 6.53.7
यां पूषन् ब्रह्मचोदनीं आरां बिभर्षि आघृणे ।
तया सं अस्य हृदयं आ रिख किकिरा कृणु ।। 6.53.8
जो अंग्रेजी के स्टाइलस की याद दिलाता है।

परंतु इसका सबसे सटीक रूप एरो arrow है। अंग्रेजी के arive और arrier के पीछे जल की गत्यर्थाक्ता का हाथ देखा जा सकता है, और संभव है हेरो में भी ‘अर’ की भूमिका हो । आर्म arm = हथियार, आर्मी army= हथियारबंद दल, आर्मर armour = प्रहार से बचाव करने वाला, अरि = शत्रु , अलि = भ्रमर. सहचरी, अरिष्ट, अर की गत्यात्मकता यह से उत्पन्न है ।

जिन लकड़ियों को रगड़ कर आग पैदा की जाती थी उन्हें अरणी अरण्योर्निहितो जातवेदा)
कहा गया है । कहीं जाते समय लोग इन्हें अपने साथ ले जाते थे । इनका एक प्रतीकात्मक का अर्थ यह था कि हम ज्ञान पिपासु हैं, दीक्षा के लिए प्रस्तुत हैं अतः कोई व्यक्ति किसी बड़े विद्वान के पास जिज्ञासा करने के लिए जाता था तो वह भी अपने साथ अरणी लेकर जाता था और उसके सामने प्रस्तुत करता था ।

अरति = दूत, विशेषता जनता की ओर से राजा के समक्ष समस्याएं रखने वाला व्यक्ति होता था परंतु देवताओं के पास धरती का संदेश लेकर जाने वाले अग्नि के लिए भी इसका प्रयोग हुआ है । (मूर्धानं दिवो अरतिं पृथिव्या वैश्वानरमृत आ जातमग्निम्) ।

जिस आरा की व्याख्या करते हुए सायण ने इसे तीक्ष्णाग्र लौहदंड कहा है उसी से चिराई का आरा निकला है इसे आसानी से समझा जा सकता है, परन्तु अं. आर्ट art, आर्टिकल artcle, और संभवतः आर्टिकुलेट artiiculate का भी संबध है और सं. अर्दन= पीडन का भी, ऎसी दशा में जनार्दन का क्या अर्थ हुआ परमात्मा या कालदेव जिसका दर्शन कृष्ण अर्जुन को कराते हैं और अर्जुन उनको जनार्दन के रूप में संबोधित करते हैं और इस तरह यह विष्णु के पर्यायों में से एक बन जाता है.

अल से अललाना = विकल होकर अस्पष्ट ध्वनि में आर्तनाद करना . ऋग्वेद में अललाभवंती का प्रयोग ऊंचाई से गिरती जलधारा की ध्वनि के कारण क्रिया विशेषण के रूप में किया गया है और संभवतः अलल टप्पू जैसे प्रयोगों में प्रकट हो जाता है.

अल में लकार के मूर्धन्य होने पर आंड = डंक का अग्रभाग, अड़ना = *खूंटा गाड़ना, अड़ना, अडाना, अडियल, अड्डा और अड्डेबाजी का सम्बन्ध दिखाई देता है.