Post – 2018-04-17

मैं अन्य उलझनों के कारण अधिक व्यस्तता के बाद भी इस हठ के कारण कि आज की पोस्ट हर हाल में लिखनी ही है, लिखता तो हूं, पर वह कई बार अधूरा भी रह जाता है और उसमें गलतियां भी रह जाती हैं। कल भी ऐसा हुआ। दो मित्रों ने उसकी तारीफ भी की जिसे पढ़ कर खिन्नता हुई। यदि उन्होंने इसे पढ़ा तो गलतियों की ओर संकेत क्यों नहीं किया, और नहीं पढ़ा तो सराहना क्यों की। कृपया भविष्य में इसका ध्यान रखें। इस भुलावे में पोस्ट संपादित करने में अनावश्यक विलंब हुआ।

अब हम पिछली पोस्ट की में कुछ तथ्य संक्षेप में जोड़ना जरूरी समझते हैंः

जिस आरा की व्याख्या करते हुए सायण ने इसे तीक्ष्णाग्र लौहदंड कहा है उसी से चिराई का आरा निकला है इसे आसानी से समझा जा सकता है, परन्तु अं. आर्ट art, आर्टिकल artcle, और संभवतः आर्टिकुलेट artiiculate का भी संबध है और सं. अर्दन= पीडन का भी, ऎसी दशा में जनार्दन का क्या अर्थ हुआ परमात्मा या कालदेव जिसका दर्शन कृष्ण अर्जुन को कराते हैं और अर्जुन उनको जनार्दन के रूप में संबोधित करते हैं और इस तरह यह विष्णु के पर्यायों में से एक बन जाता है.
अल से अललाना = विकल होकर अस्पष्ट ध्वनि में आर्तनाद करना . ऋग्वेद में अललाभवंती का प्रयोग ऊंचाई से गिरती जलधारा की ध्वनि के कारण क्रिया विशेषण के रूप में किया गया है और संभवतः अलल टप्पू जैसे प्रयोगों में प्रकट हो जाता है.
अल में लकार के मूर्धन्य होने पर आंड = डंक का अग्रभाग, अड़ना = *खूंटा गाड़ना, अड़ना, अडाना, अडियल, अड्डा और अड्डेबाजी का सम्बन्ध दिखाई देता है.