महिमापरक/ विपुलतासूचक शब्द
अब हम ऐसे शब्दों को विचार करेंगे जिनका संबंध महिमा समग्रता और सहयोग पर सहयोग से संबंधित हैः
अरं/ अलं
अर = जल; अर्क- सार, रस, सूर्य, अर्घ = अर्चना का जल, अर्चन- जल देना, अर्चि – किरण – अर्ण = ज्वार; अर्णव =समुद्र, अरंकरण = सज्जित करना, अलंकरण , अलं – हद, बहुत , allegater- जलचर, ale- पेय , all -समस्त।
सम सं – जल, समसना -आर्द्र पदार्थ का प्रवेश करना, समास, समस्त- सारा, समग्र , समाहित/ सम्मिलित, समेटना =एकत्र करना, समय – सीमा, हद।
चह – जल, चहबच्चा- पानी की हौज, चाह, सह – *जल, > बल स्पृधो बाधस्व सहसा सहस्वान्, ऐ बली अग्नि अपने बल से शत्रुओं को रोको) (, .> सहसा (क्रिया विशे.)= बलपूर्वक (यस्तस्तम्भ सहसा वि ज्मो अन्तान् – जिसने अनपे बूते धरती के छोर को टांग रखा है,’ साहस = *असाधारण शक्ति, अपराध, सह – दमन कर – अग्ने सहस्व पृतना अभिमातीरपास्य, ‘अग्निदेव घमंडी शत्रुओं का दमन करके दूर भगाओ. ( सहस्वान- , सहीयस – आत ईं राज्ञे न सहीयसे सचा। ), सहसा – बलात, हठात, एकाएक; सहना – दमन करना (ये सहांसि सहसा सहन्ते – जो शातिशाली शत्रुओं का अपनी शक्ति से दमन करते हैं; हिं. सहना- दमन/अन्याय/कष्ट झेलना; साथ, संह = साथ, संहति – जमाव, ढेर; सहस्तम – बहुत अधिक (भूरेः सहस्तमा सहसा वाजयन्ता ।) सहस्र – बहुत अधिक (अतः सहस्रनिर्णिजा रथेना यातमश्विना – अपने बहुत सारे रथों के साथ), सहस्र (त्रीणि शतान्यर्वतां सहस्रा दश गोनाम्) >*हजस्र – हजार।
पु (प, प्, पी, पू =जल )> पुरु = कई (त्वं पुरू सहस्राणि शतानि च यूथा दानाय मंहसे ।), पुरु – बहुत अधिक (पुरूवसुं पुरु प्रशस्तं ऊतये), पुरू = बहुत बड़ा (पुरूतमं पुरूणामीशानं वार्याणाम् ) पूरू = वंश नाम, बहुत बड़े, पुर = बदल, जत्था, बड़ी बस्ती, पूर्ण – पूरा, अधिकतम, full, प्रु/प्लु – जल, बहना, पृत/प्लुत बहुत अधिक (जैसे ह्रस्व-दीर्घ-प्लुत), plenty, तमिल – पल = बहुत, हिं. पल्ली- छोटी बस्ती ।
प्र /प्ल – जल, ( अधिकता, अग्रता, श्रेष्ठता और उच्चता मत;क उपसर्ग प्र/ प्रा/पर् ) प्रवण = ढलान (सिन्धूँरिव प्रवण आशुया यतो), प्रणय = आगे ले जाना, प्रतर – अच्छे से अच्छा (इन्द्र प्र णः पुरएतेव पश्य प्र नो नय प्रतरं वस्यो अच्छ), प्रतम/प्रथम – पहला, अग्रणी, *प्लु/ प्रवण/प्लवन -flow, प्लव – float, प्लावन – बाढ़, प्लवन – तैरना,
पू /फू (full)/ बू (boost)/भू <>बहु – (तु. पुर-भूरि)
बाढ़ – प्लावन, शक्तिशाली, बहुत अच्छा, प्रचुर
विपुल – प्रचुर
अत/इत = यहाँ, अतः – यहाँ से आगे; अतर – इत्र; अति – बीता (अतीत ) अति = हद, अंत
/अधि,- रजस्वला, ऊपर, अपने वश में, अधिकार- नियंत्रण, अधिक
मघ/ मह, – जल, मघवा = जल दाता इंद्र, माघ – सबसे अधिक ठंडा मास, इंद्र को मघवा के अतिरिक्त महान/महाँ -जल से भरपूर या मघवा (ययाथेन्द्र महा मनसा सोमपेयम्; त्वं महाँइन्द्र ) लगता है, दे. मेघ/ मेह, मिह सेचने . महान – बहुत बड़ा।
अपार – जिसको पार न किया जा सके. पार का प्रयोग जलराशि के प्रसार के लिए होता है. अपार – जिसके फैलाव या परिमाण या समृद्धि का अंत न हो।