Post – 2018-03-27

चमकता अंधेरा
कृष्ण का मतलब

अंधेरे के लिए एक दूसरा शब्द है कृष्ण। कृष्ण द्वैपायन व्यास, कृष्ण आंगिरस, कृष्णयोनि, कृष्ण पक्ष, कृष्ण मृग, कृष्ण यजुर्वेद, कृष्ण अजिन, कृष्णाः= काले लोगों का कबीला और सबसे ऊपर श्री कृष्ण। इन प्रयोगों पर नजर डालने पर इसमें कोई संदेह नहीं झ जाता कि कृष्ण शब्द का प्रयोग (1) काले और (2) अंधेरे के आशय में होता रहा है। इस शब्द को यह अर्थ कैसे मिला, केवल यह विचारणीय रह जाता है। क्या उसका भी काले पन से कोई संबंध है, और है तो किस रूप में? कृष्ण शब्द का उच्चारण करते हुए हमारी स्मृति में दो शब्द उपस्थित होते हैं, एक कृशानु और दूसरा कृष् । कृशानु का अर्थ हम जानते हैं कि आग होता है। आग किसी वस्तु को जलाती है और उसका परिणाम होता है काला जो अंगार के मामले में भी हम देख आए हैं। यह तो इसके आर्थ-विकास का क्रम है, परंतु कृशानु का अनुनादी स्रोत क्या है, यह इससे स्पष्ट नहीं होता । कृष् के विषय में अवश्य आश्वस्त हो सकते हैं कि यह पत्थर पर या पकी हुई मिट्टी पर नुकीले पत्थर से खरोंच लगाने से पैदा हुई आवाज है। इसका एक अर्थ हुआ लकीर खींचना, ‘कृष् विलेखने’, और कर्ष जिसे भी कृष् का उच्चार भेद माना जा सकता है। परन्तु कृशानु भी तो कृष से समबन्ध रखता है क्योंकि पत्थरों के आपसी घर्षण से चिंगारियां फूटती हैं।

लकीर बनाने के लिए जैसा हमने कहा नुकीले पत्थर से या किसी दूसरी चीज से लकीर खींचनी पड़ती है । इससे इसके दो आशय निकलते हैं। ‘क्षीण करना’ और अपनी ओर खींचना अर्थात ‘आकर्षण’। यदि खींचने की दिशा उल्टी हो तो इसे कहेंगे ‘विकर्षण’। कृष्ण के रंग में कृशानुदग्ध वस्तु के रंग का भाव है और साथ ही ‘कर्ष’ के ‘आकर्षण’ का भाव है जिसके कारण वह मनमोहन हो जाते हैं।

जब हम किसी को ‘कृशकाय’ कहते हैं तो क्षीणता का भाव ही प्रधान रहता है। और यदि अं. कर्स – कोसनो का आर्थीस्रोत जाननो चाहते हैं तो कृशानु को याद करना होगा और अपने कर्सर का तो कर्ष को। कर्सरी ग्लांस को समझने में कृशानु के प्रकाश पक्ष पर ध्यान देना होगा।

एक मजेदार बात कहने से रह गई। उत्कर्ष मेरी कल्पना के अनुसार कुंए से कलश आदि को ऊपर खींचने का विस्तार है तो निष्कर्ष सोम लता को पत्र से कुचल कर दोनों हाथों से ऐंठ कर उसका रस बाहर निकालने का। गन्ने का रस निकालने का यह सबसे पुराना तरीका है जिसका कर्मकांड में बाद में भी प्रयोग होता प्रतीत होता है, पर यदि आप पूछें कि ऐसे सन्दर्भों से ऋग्वेद में इस शब्द का प्रयोग हुआ है? मुझे उत्तर नहीं में देना होगा, क्योंकि जिस शब्द का प्रयोग रूढ़ लगता है वह है नि:सृज।