Post – 2018-03-26

टिप्पणी -तीन

मुझे ऐसा लगता है कि उच्च शिक्षा केंद्रों की स्वायत्तता की आड़ लेकर है, प्रकारांतर से शिक्षा का उसी तरह निजीकरण किया जा रहा है जैसे स्वतंत्रता प्राप्ति के साथ ही प्राथमिक शिक्षा का निजीकरण आरंभ किया गया था। अपनी पोस्टों के माध्यम से मैं जब तब शिक्षा पर अपने विचार प्रकट करता रहा हूं इसलिए यह आवश्यक हो जाता है कि मैं इसे नीति पर भी अपना पक्ष रखूं।

मैं वर्तमान सरकार के किन्हीं मामलों में किए जाने वाले गलत फैसलों को कुटिलता से प्रेरित नहीं मानता । परंतु जो कुटिलता से प्रेरित नहीं है वह भी नादानी से भरा तो हो ही सकता है। मैं केवल अनुमान के आधार पर यह सोचता हूं कि शिक्षा के विषय में बहुत कामचलाऊ दृष्टि रखने के कारण वर्तमान सरकार इस नतीजे पर पहुंची है कि यदि लोगों को रोजगार देना है तो तकनीकी शिक्षा को बढ़ावा देना होगा । ऐसे में कुछ जिम्मेदारी उनकी भी बनती है जो तकनीकी शिक्षा प्राप्त प्रतिभाशाली छात्रों का उपयोग अपने कारोबार में करते हैं इसलिए उच्च शिक्षा का काम यदि उन को सौंप दिया जाए तो वे इस काम को अधिक सलीके से कर पाएंगे और सरकार को भी अधिक व्यय नहीं करना पड़ेगा।

यह सोच घटिया है। इसमें हम मान लेते हैं कि मैकाले ने अंग्रेजी भाषा की शिक्षा का प्रस्ताव इसलिए रखा था कंपनी के दफ्तरों के लिए क्लर्क पैदा किए जा सकें, जबकि मैकाले ने न तो अंग्रेजी के माध्यम से शिक्षा की बात सोची थी और न ही यह यह भारतीय भाषाओं के विकास में बाधक थी। उल्टे उसकी समझ यह थी संस्कृत और फारसी के माध्यम से जब तक शिक्षा दी जाएगी तब तक इसे सेकुलर नहीं बनाया जा सकता । संस्कृत और फारसी शिक्षा साधारण जनों को नहीं दी जा सकती, न ही इसमें ज्ञान विज्ञान की पढ़ाई की जा सकती है । शिक्षा शास्त्रीय बनी रहेगी और इसका भार सरकार को उठाना पड़ेगा परंतु इसका कोई लाभ नहीं हो सकेगा ।उसके प्रस्ताव में व्यक्त था कि अंग्रेजी के माध्यम से आधुनिक विषयों की जानकारी प्राप्त करने वाले भारतीय दक्षता पूर्वक अंग्रेजी में अपने को व्यक्त नहीं कर पाएंगे इसलिए लिखने का काम वे अपनी मातृभाषा में करेंगे और इस तरह की भारतीय भाषाओं का विकास होगा और वे कुछ समय के बाद शिक्षा का माध्यम भी बन सकेगी।

इसके बाद भी लोगों की आशंका कुछ दूर तक सही हो सकती है परंतु वर्तमान सरकार की शिक्षा नीति कुछ ऐसी लगती है शिक्षा का काम लोगों को रोजगार के योग्य बनाना मात्र है और वह शिक्षा के माध्यम से केवल देश देशांतर में काम करने वाले मजदूर पैदा करने जा रही है। बेशक, कुशल मजदूर।

पूंजीपति कुशल मजदूर पैदा करने के लिए अपना पैसा नहीं लगाएंगे। होगा यह कि उच्च शिक्षा एक अधिक बड़े कारोबार में बदल जाएगी और मोदी सरकार के उस दावे को झुठलाएगी जिसमें वह अपनी प्राथमिकताओं मैं गरीबों को सबसे ऊपर रखने की बात करती है। गजट में घोषणा हो जाने के बाद भी मेरा सुझाव है इसे वापस लिया जाना चाहिए। देश का भविष्य गजट की छपाई पर खर्च होने वाली रोशनाई से कुछ अधिक कीमती है। होना यह चाहिए शिक्षा और स्वास्थ्य के विषय में हम अमेरिका से प्रेरणा न लेकर ब्रिटेन से प्रेरणा लें ।