हमारी भाषा (6)
डर से डार्क डार्क से डर
हमारी भाषा बहुत जटिल और बहुआयामी है। इसकी निर्माण प्रक्रिया में विभिन्न रुचियों योग्यताओं और मानसिकताओं के लोगों का हाथ रहा है। लोक-व्यवहार गंगा का ऐसा प्रवाह है जिसमें आकर सब की मलिनताएं समाप्त हो जाती हैं। डरपोक शब्द का अगर दृश्य तैयार करें तो आपको डर से भागते हुए और इसी के साथ गोबर-विसर्जन करते हुए जानवर का चित्र उभरेगा। प्रयोग हमारी सुरुचि के अनुरूप नहीं है, परंतु निरन्तर प्रयोग में आते रहने के कारण हमारा ध्यान इस विद्रूप की ओर नहीं जाता, इसका भावसत्य और उसका तेवर संप्रेषित होता है। यही हाल उन गालियों और हमें क्षुब्ध करने वाले न प्रयोगों का है जो अपनी उजड्डता को ही अपने खरेपन का प्रमाण मानते हैं। हम जिसे अश्लील समझते हैं वह उनके परिवेश में कथन को जोरदार बनाने के लिए प्रयुक्त अलंकार होता है। अंगों गर उस परिवेश के लोगों का ध्यान नहीं जाता। ये सामाजिक स्तरभेद से जुड़ा पहलू है, पर सबसे चकित करने वाला है ध्वनि और अर्थ का परिसर।
डर शब्द तर और दर से अलग शब्द न था। तर, दर, डर, अघोषप्रेमी, घोषप्रेमी, मूर्धन्य प्रेमी समुदायों द्वारा एक ही प्राकृत ध्वनि के वाचिक उच्चार थे जिनका प्राथमिक अर्थ पानी ही रहा होगा। यही लकारान्त रूपों के विषय में कही जा सकती है। पारस्परिक संपर्क में आने और चेतना में निखार और अनुभव संसार के विस्तार के चलते इनका अर्थ विस्तार हुआ ।
पानी की संज्ञा भय के आशय में प्रयुक्त हो सकती है यह समझने में है हमें कठिनाई होती है। परंतु तड़पने का पानी से संबंध हो सकता है इसे समझने में कठिनाई नहीं होती। पानी के बिना छटपटाती हुई मछलियों का दृश्य बिंब बनता है जब हम तड़पना शब्द का प्रयोग करते हैं तो। दर से दर्द का संबंध है यह भी आसानी से हमारे गले नहीं उतरता। इसका अर्थ विकास और भी टेढ़ा है। तर से तरु, दर से दारु का संबंध सीधा है, पर दारु के कटने,चीरने के साथ उत्पन्न ध्वनि दारण, दरकने और दर्द का जनक है ।
तर जब संस्कृतीकरण के कारण तृ हो जाता है तो पानी के अभाव या तलब के लिए हम तृषा शब्द का प्रयोग करते हैं और यही जब किसी वस्तु की आकांक्षा में बदल जाती है तो उसे तृष्णा कहते हैं । तृषा न मिटे तो इसकी उग्रता त्रास में बदल जाती है, और अपनी पराकाष्ठा पर पहुंचकर संत्रास बन जाती है ।
क्या आपने कभी त्राहि शब्द पर ध्यान दिया है। त्राहि का शाब्दिक अर्थ है पानी पिलाओ। यह युद्ध स्थल में मरणाासन्न व्यक्ति की कातर पुकार है, इसका भाव है कि पानी पिलाकर मेरे प्राणों की रक्षा करो और यह रक्षा करो के आशय में रूढ़ हो गया। और त्राण-रक्षा, त्राता- उद्धारक के व्यापक अर्थ में प्रयोग मेंआने लगा । यह पानी से बचाने वाला भी हो सकता है और पाप से बचाने वाला भी हो सकता है और आर्थिक दुर वस्था से बचाने वाला भी हो सकता है ।
रक्षा के आशय में एक दूसरा शब्द प्रयोग में आता है पाहि। इसमें भी पा का अर्थ पानी है और पाहि का अर्थ है पिलाओ। पाहि मां का अर्थ (पानी पिलाकर) प्राण रक्षा करो। यह शब्द इन बातों से अलग इतिहास की सच्चाई को भी प्रकट करते हैं हमारी भाषा का विकास भौगोलिक परिवेश में हुआ।
तृषा अंग्रेजी में थर्स्ट बन जाती है, और त्रास का टेरर से संबंध हो सकता है। अंग्रेजी कोशों में व्युत्पत्ति के नाम पर दिेए गए शब्दविशेष के प्रतिरूपों से इसका निर्ण करना कठिन है और मेरी अपनी सीमाओं और साधनों के अभाव के कारण निश्चयात्मक रूप में कोई दावा करना उचित न होगा।
पानी से इसका कोई संबंध यूरोपीय पंडितों को सुझाने पर भी दिखाई न देगा।
अंग्रेजी के माध्यम से डर-ड्र-अं. ड्राई और ड्रिंक से डर का पानी से नाता भले पता चल जाय, भारतीय बोलियों में भय के आशय में इसके रूढ़ हो जाने के कारण, यह तक भुला दिया गया कि जल से इसका कभी कोई नाता रहा है। मेरी समझ से अं. के डार्क, और हिन्दी डर की संकल्पना के विकास में संभवत है पानी में डूबने का हाथ रहा है। पानी से डर सभी को लगता है ओर पानी से प्रेम भी सभी को होता है, प्रश्न जल के वेग, प्रसार और गहराई का है। डूबने के बाद लुप्त वस्तु अदृश्य हो जाती है और लोप के भाव ने ही शायद अंग्रेजी के डार्क को जन्म दिया हो। इसी डार्क या डबने से डर का भी संबंध है।