Post – 2018-02-24

पारिवारिकता और मित्रता में एक बात समान है। कोई दूसरे के प्रति सम्मान प्रदर्शित नहीं करता। आत्मीयता हो तो प्रदर्शन की जरूरत नहीं होती। कई बार सम्मान जताने वाले अनजाने ही हमारा अपमान कर बैठते हैं। ऐसा तब होता है जब वे हमारा गलत परिचय देते हैं, हम जो नहीं हैं वह बता बैठते हैं। इस अपमान से मुझे अक्सर गुजरना पड़ता है। फेसबुक पर मेरे परिचय में साफ लिखा है, मैं हिन्दी से एम.ए. हूं अर्थात् संस्कृत का विद्वान नहीं हूं। डाक्टर नहीं हूं। जो अनलिखा रह गया वह यह कि मेरी उत्कट इच्छा के होते हुए भी, अध्यापन का अवसर नहीं मिला अतः प्रोफेसर या आचार्य नहीं रहा। सरकारी चाकरी की। अपने गुरुओं, अग्रजों और अधिकारियों सम्कोमान होते हुए भी कभी सर नहीं कहा।
गरज कि मेरे लिए मेरा सीधा नाम मेरा सबसे बड़ा सम्मान है और जो नही हूं
उस रूप में संबोधित होना अपमान, जिसे लाचारी में झेला जा सकता है, पर प्रसन्न नहीं हुआ जा सकता।
मैंने बड़े श्रम और संकल्प के साथ अपनी जानकारी अनेक क्षेत्रों में बढ़ाई है, पर किसी विषय का विद्वान नहीं। विद्वान मान लिया जाना भी एक तरह का दंड भोग है, आप डरे रहते हैं कि मेरी गलतियों को भी लोग सही न मान बैठें।