मुझे जिन कामों के निबटाने के लिए फेस बुक पर चल रहे विषय को रोकना पड़ा उनमें सबसे पहला है रामविलास जी पर एक लेख लिखना। उसे लिखने से पहले के ऊहापोह की बानगी:
रामविलास शर्मा और प्राचीन भारत
रामविलास जी की प्राचीन भारत में रुचि कब और कैसे पैदा हुई यह पता नहीं परन्तु प्राचीनता के प्रति भारतीय कम्युनिस्टों का जैसा विकर्षण रहा है, उसे देखते हुए यह हैरानी पैदा करने वाली रुझान लगती है, इसलिए यह मानने का प्रलोभन पैदा होता है कि इसके पीछे निराला के संपर्क में आना एक कारण हो सकता है। अतीत के प्रति यह लगाव ही नहीं भाषा की समस्या पर भी उनका दृष्टिकोण कम्युनिस्ट पार्टी से, पार्टी के जुडे़ दूसरे विचारकों (राहुल सांकृत्यायन, शिवदान सिंह चौहान, जोगींद्र शर्मा), राजभाषा हिंदी की प्रकृति को लेकर एक ओर संंस्कृतनिष्ठता के समर्थकों और दूसरी और उर्दू को पृथक भाषा मानने वालों से आरंभ से ही तीखी असहमति चली आ रही थी। ठीक ऐसी ही असहमति कला के रूप पक्ष, वस्तु पक्ष और विचार पक्ष को ले कर है। यदि हम शर्मा जी के समस्त लेखन पर दृष्टि डालें तो इन सभी को ले कर उनके मत में ऐसी दृढ़ता है जिसे ले कर किसी को शिकायत हो सकती है, पर इस बात की शिकायत कदापि नहीं हो सकती कि उन्होंने किसी विशेष चरण पर अपने दृष्टिकोण में परिवर्तन कर लिया।
आश्चर्य की बात है कि वैचारिक असहमति के बाद भी कभी उस तरह के चरित्रहनन का प्रयास नहीं किया गया जो ठीक उस कालरेखा के बाद आरंभ हुआ जब इतिहास लेखन का वह संगठित, केन्द्र समर्थित, हिंदुत्वद्रोही, प्राच्य (प्राचीन और पूर्व) -ध्वंसक इतिहास का लेखन प्रोफेसर से शिक्षा मंत्री बने नूर-उल-हसन के निर्देशन और “यह दिल माँगे और” मानसिकता वाले हिंदू (इस हद तक कि मध्यकाल पर, पाठ्यपुस्तकों के इतिहास लेखन के लिए भी केवल हिंदू इतिहासकारों को लगाया गया, नीति निर्धारक पद मुस्लिम इतिहासकारों को सौंपे गए, जिन्होंने अपने उद्देश्य की पूर्ति के लिए सभी प्रलोभनों से अपने को दूर रखा) मुँह में चांदी और माथे पर चाँदनी भरने वाले,सभी प्रॉजेक्ट हिंदू इतिहासकारों को सौंपे गए, टुकड़खोरों का मेड टु आर्डर इतिहास इतिहास का सच बनाया गया जिसमे “जो गावे सो पावे” की होड़ में गाने वालों ने जबान खोलने वालों को गालियाँ दे कर चुप कराना आरंभ कर दिया। जो लोग समझते हैं, भक्त की गाली मोदी को सही मानने वालों और मोदी से नफरत करने वालों के बीच टकराव में, उनके द्वारा आरंभ किया गया , जिनके पास अपने को सही सिद्ध करने का कोई तर्क, प्रमाण या औचित्य नहीं था, वे इसका इतिहास नहीं जानते। इस जुमले का प्रयोग रामविलास जी की स्थापनाओं से सहमत होने वालों, और उन पर होने वाले प्रहारों का प्रतिवाद करने वालों के विरुद्ध आरंभ हुआ था, उसका उन्हीं कारणों से मोदी को सही मानने वालों के विरुद्ध आरंभ किया गया। इससे एक नया समीकरण बना:
रामविलास शर्मा = संघ>भाजपा> मोदी
दूसरा समीकरण
मोदी= कम्युनिज्म – (माइनस) मुस्लिम कम्युनलिज्म = सबका साथ, सबका विकास।
पर यह भी एक सतही समीकरण है। इसकी गहराई में जाना होगा।