Post – 2020-08-12

जो लोग मोदी के केन्द्र में आकर, केन्द्र में या उसके इर्द-गिर्द बने रहने के आदी दलों को हाशिए पर डालने से घबरा कर फासिस्ट आगया, फासिज्म आने वाला है का शोर मचाते आ रहें हैं, उन्हें पता है, फासिज्म किसी व्यक्ति के आने जाने से आता जाता नहीं है, ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जो उसे अपरिहार्य बना देती हैं, ऐसी परिस्थितियाँ होती हैं जब जनता यह सोचने लगती है कि कोई शख्त कदम उठाने वाला शासन आना चाहिए। यही कारण है कि अपनी कठोरता के बाद भी फासिस्ट सबसे लोकप्रिय नेता होता। फासिज्म न आए इसकी जिम्मेदारी जिन पर होनी चाहिए, वे ऐसी परिस्थितियाँ लगातार पैदा कर रहे हैं जिनमें फासिज्म एकमात्र रास्ता रह जाता है। विडंबना यह भी है कि ये वही लोग हैं जो तानाशाही के विविध रूपों को पसन्द करते, जनता को मूर्ख समझते है, इसलिए प्रकृति से अभिजनवादी और लोकतंत्र विरोधी होते हैं, विधि-विधान सहित संविधान की अवहेलना करते हैं और जनवादी होने का दावा करते हैं, संविधान की दुहाई भी देते हैं और न अपने को पहचान पाते हैं न अपने समाज और समय को क्योंकि उनकी दुहरी निजता होती है जिसे लैग ने (द डिवाडेड सेल्फ) रीयल सेल्फ और फाल्स सेल्फ का विभाजन कहा है। ये शिज़ोफ्रेनिया के मरीज होते हैं, असाधारण प्रतिभाशाली और आदर्शवादी (बर्ड्स ऑफ पैराडाइज) होते हैं, पर सामाजिक रूप में गैरजिम्मेदार और कम भरोसे के। वे स्वयं अपने, अपने देश और समाज के शत्रु होते हैं।