तुकबंदी
सोचिए, हम भी आप के ही हैं
आप हमको भला-बुरा तो कहें।
आप पर अब भी जान देते हैं
‘मर, परे हट’, कभी कदा तो कहें।
बे नियाजी सी बेनियाजी है
लाख परदों को चीरता सा हुस्न
छिपते जितने हैं और खुलते हैं
आप की खास है अदा तो कहें।।
इश्क कहते हैं तड़प भी है वही
दर्द तो है मगर लजीज भी है
हुस्न तो है ही जलाने के लिए
है सितमगर भी मेहरबाँ तो कहें।।