मजदूर अनमना रहता है तो भी काम करता है, काम न किया तो अपना पेट कैसे भरेगा।
गृहणियां अनमनी रहती हैं तब भी काम करती हैं, काम न किया तो अपनों का पेट कैसे भरेगा। कभी कभी अनमनापन इतना बढ़ जाता था कि स्वयं खाए बिना सो जाती थीं।
मैं किस कोटि में आता हूं, पता ही नहीं। पता यह है कि आज की पोस्ट पूरी न कर पाया।
इसलिए इतना कहना तो बनता है, किः
पैसे में दम है
सच में कुछ कम है
जेसिका की हत्या हुई
किसी ने की नहीं
हेमराज मरा
मारा नहीं गया
आरुषी मरी
पता लगाओ किसने मारा
सुमिरनी में मनके असंख्य हैं।
जो सच नहीं हैै
वह पैसे ने कही है
ऊंचाइयों पर चढ़कर ।