रुको मैं चांद तारों को
जमीं पर ही बुला लूंगा।
न तुम कहना जमीं है यह
न वे समझें जमीं है यह ।।
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मैं किसको मिटाऊं कि खुद आबाद हो सकूं।
वीरानियों में मेरा भी घर घर रहेगा क्या ?
बर्वादियों के बीच भी आए कई मुकाम
घबरा गए हमदर्द, ‘यहीं पर रहेगा क्या?’
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न वह मुझको समझता है न मैं उसको समझता हूं।
मगर नादानियों के बीच भी रिश्ते कई निकले।
मैं पहुंचा उस गली में पूछता उसका पता साहब
तो पूछा उसने ‘मेरे घर से क्या तुम वाकई निकले?’
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